Sunday 6 November 2022

लावणी छंद- जानवर ले गय बीतिस मनखे

 लावणी छंद- जानवर ले गय बीतिस मनखे


मानव मन ले मानवता के, नाम निशान मिटावत हे।

मार काट होवत हे भारी, रोज रक्त बोहावत हे।।


मया बाप बेटा मा नइहे, कलपत हे महतारी हा।

भाई भाई लड़त मरत हे, थकगे टँगिया आरी हा।

धरम जात पद पइसा खातिर, कतको मर खप जावत हे।

मानव मन ले मानवता के, नाम निशान मिटावत हे।।।


मोल भुलाके मनुष जनम के, मनखे बनगे बजरंगा।

मया प्रीत के गाँव शहर मा, फैलावत हावय दंगा।।

उफनत हावय रिस मा कोनो, ता कोनो उकसावत हे।

मानव मन ले मानवता के, नाम निशान मिटावत हे।।।


सरग नरक अउ पाप पुण्य ला, कहिके ढोंग दिखावा सब।

बिना डरे काटत भूँजत हे, बनके मिर्मम लावा सब।

शिक्षा हे संस्कार सिरागे, ये कलयुग मतलावत हे।

मानव मन ले मानवता के, नाम निशान मिटावत हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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