Sunday 6 November 2022

तइहा समय म देवारी तिहार के जोरा-खैरझिटिया

 तइहा समय म देवारी तिहार के जोरा-खैरझिटिया


             तइहा समय म चाहे कोनो परब तिहार होय, गांव के गांव ओखर जोरा म लग जावय। पहली सबके घर माटी खपरैल के होय तेखर सेती ओखर देख रेख बड़ जरूरी रहय। तिहार बार म लिपई पोतई, रोटी पीठा, सगा पहुना  आदि आदि जमे नेंग जोग, तन मन धन ले होवय, फेर बड़खा तिहार देवारी के जोरा करई के बाते अलग हे, जे दशहरा के बाद पाख भर ले घलो जादा दिन ले चले।  काबर कि चौमासा लगे के पहली घर के कोठ ल बरसा के पानी ले बचाय बर चारो मुड़ा झिपारी बाँधे जाय,तेला दशहरा मानके पानी बादर कम होय के कारण हेरेल लगे। तेखर सेती छाभना मूँदना लीपना पोतना देवारी के खास बूता रहय।


                   चार महीना पानी बादर म  घर के बाहिर का भीतर के घलो हालत खस्ता हो जावय। ते पाय के गाँव भर अपन अपन घर ल छाभ मूँद के लिपई पोतई इही देवारी तिहार म करे। देवारी तिहार के जोरा म घर के संगे संग कोठार बियारा ल घलो सिधोय बर लगे, काबर कि देवारी के बाद धान लुये के लइक हो जाय, अउ ओखर मिंजई कोठारे म होवय। कोठार बियारा के काँदी ल छोल छाल के बराबर पाटे बर माटी, कुधरील लाके, बढ़िया मता के छाभेल लगे।      


कोठ बियारा छाभे बर माटी मताये के घलो अलगे आंनद रहय। पहली माटी ल कुचर के गोलाकार  बनाके भिंगोय जाय। भींगे के बाद ओमा पिरोसी, कोदो पैरा या फेर अरसी के ठेठरा(चीला) ल मिलाके मनमाड़े खूँदे जाय। माटी म पैरा, पिरोसी मिलाके मताय ले छभे के बाद चटके(दरार) के समस्या नइ होत रिहिस। जादा अकन  माटी मताय बर बइला के उपयोग घलो होवय। मते के बाद राफा म छोपियाके गोलाकार सँकेल के, मते माटी ल छाभे मूँदे के काम म लाये जाय। कोठ या  फेर कोठार बियारा ल छाभे के बाद गोबर म बरण्डना घलो जरूरी रहय, अइसन करे ले छभे माटी के छोटे मोटे दरार मूंदा जाय, अउ लीपे पोते के लइक बराबर हो जाय। ये सब बूता सरलग घर परिवार जे जमो छोटे बड़े सदस्य मन मिलके करत रहय। टूटे फूटे कप सासर के टुकड़ा ल, दुवार अँगना छभात बेरा गड़ियाके फूल बनाये के घलो चलन रिहिस, जे देखे म बड़ सुघ्घर लगे। कोनो देखे होहू त सुरता आवत घलो होही, गोलाकार, चौकोर फूल मन मोहे।


             पड़ड़ी छूही, पिंवरी छूही, घेरू रंग अउ टेहर्रा रंग पोतई म लगे। परवा के खाल्हे पड़ड़ी छूही तेखर बाद आधा या आधा ले कमती कोठ म पिवरी छूही पोते जाय, अउ बीच म घेरू रंग के पट्टी अउ फूल।  पोते बर टेहर्रा रंग घलो चले। घर के आघू भाग के कोठ अउ मुख्य दीवाल टेहर्रा रंग म शोभा पाय। आज कस ब्रस पहली कमती रिहिस, ठूँठी बाहरी, नही ते जड़ के कूची पोते के काम आय। लकड़ी के दरवाजा मन म सकउ हिसाब कोनो मन पेंट त कतको मन तेल चुपरबके चमकावय।


             पोतई लिपई के बाद चालू होय नोनी अउ बाबू मनके कलाकारी। घर के कोठ म बाबू मन रंग रंग के फूल, फ़ोटो अउ नोनी मन अँगना दुवार म रंगोली बनाये के जोरा करे। पाँच सात किसम के रंग ल कप म घोर के राहेर काड़ी या फेर दतवन ल ब्रस बनाके नोनी बाबू मन कम्पास बॉक्स के प्रकार म पेंसिल फँसा के गोल गोल फूल बनाये, अउ वोला रंगे। कतको मन रंगोली लेय त कतको मन घुरहा पथरा के बुरादा म रंग मिलाके, कई कलर के रंगोली बनाय। घर के दीवाल म शुभ दीपावली अउ शेरो सायरी घलो लिखे। टीना के डब्बा ल छेद के वोमा कनकी पिसान भरके चँउक घलो पूरे। रंगोली बनई आजो जारी हे, फेर कोठ म कलाकारी कमती होगे हे।


                    देवारी के दीया के संग गियास घलो घरो घर रोज बरे।  लोगन मन एक दूसर ले ऊंच ऊंच गियास बनाये।गियास बनाय बर, बड़खा बाँस, तोरण ताव, डोरी अउ दीया रखे बर एक प्लेट लगे। प्लेट ल झिल्ली के तोरन म सजाके, डोरी के सहारा दीया बार के ऊपर चढ़ाये उतारे जाय। गियास ऊंच म रिगबिग रिगबिग बरत, मन मोहे। देवारी तिहार म जमे कोती चिक्कन चाँदुर दिखे, सार्फ़ सफाई, साज सज्जा सहज मन मोहे।


                   देवारी म बाजार हाट के का कहना, दीया,पुतरी कपड़ा लत्ता, पटाका, खई खजानी, साज सज्जा के समान चारो मुड़ा बेचाय। कतको लइका मन टीकली फटाका फोड़े बर बॉस के बंदूक घलो बनाये। राउत मन गाय बइला के गला म बाँधे बर सोहई बनाय बर लग जाय, त दफड़ा दमउ वाले मन बाजा-रूँगी ल सजाय बर। काँदा खोम्हड़ा के जोरा घलो तिहार के अकताही होय। देवारी के ये सब जोरा ले घर द्वार साफ स्वक्छ होके चमचम चमचम चमके, अउ लइका सियान मनके कई किसम के कला सामने आय, आज ये सब  बस सुरता के सन्दूक म धराये हे।


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)

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