शरद पुन्नी के आप सबो ला सादर बधाई
सूरज कस उजियार कर, हवस कहूँ यदि एक।
चंदा बन चमकत रहा, तारा बीच अनेक।।।।।।
पुन्नी के चंदा(सार चंदा)
सज धज के पुन्नी रतिहा मा, नाँचत हावै चंदा।
अँधियारी रतिहा ला छपछप,काँचत हावै चंदा।
बरै चँदैनी सँग में रिगबिग, सबके मन ला भाये।
घटे बढ़े नित पाख पाख मा,एक्कम दूज कहाये।
कभू चौथ के कभू ईद के, बनके जिया लुभाये।
शरद पाख सज सोला कला म,अमृत बूंद बरसाये।
सबके मन में दया मया ला,बाँचत हावै चंदा--।
सज धज के पुन्नी रतिहा मा,नाँचत हावै चंदा।
बिन चंदा के हवै अधूरा,लइका मन के लोरी।
चकवा रटन लगावत हावै,चंदा जान चकोरी।
कोनो मया म करे ठिठोली,चाँद म महल बनाहूँ।
कहे पिया ला कतको झन मन,चाँद तोड़ के लाहूँ।
बिरह म रोवत बिरही ला अउ,टाँचत हावै चंदा--।
सज धज के पुन्नी रतिहा मा, नाँचत हावै चंदा।
सबे तीर उजियारा हावै,नइहे दुःख उदासी।
चिक्कन चिक्कन घर दुवार हे,शुभ हे सबके रासी।
गीता रामायण गूँजत हे, कविता गीत सुनाये।
खीर चुरत हे चौक चौक मा,मिलजुल भोग लगाये।
धरम करम ला मनखे मनके,जाँचत हावै चंदा----।
सज धज के पुन्नी रतिहा मा, नाँचत हावै चंदा।
शरद पुन्नी के चंदा,
ए,शरद पुन्नी के चंदा,
टुकनी म बइठार के तोला।
देखाहूँ मोर गाँव घर,
खेत खार घर कोला---।।
तोर बरसत अमृत ले,
सींचहूँ खेत खार ल।
तोर तेज ले टारहूँ,
इरसा जर बुखार ल।
बाँटहूँ मैं सबला,
तोर कला सोला-----।।
घुमाहूँ,मयारु मनके,
नजर ले बँचावत।
नान नान लइका मन ल,
टुहूँ देखावत।
उतारहूँ आमा तरी म,
तोर डोला------------।।
जिहाँ सुरुज घलो नइ जाय,
उँहचो ल उजराहूँ।
जागत मनखे मन बर,
दाई लक्ष्मी बन जाहूँ।
मोर टुकनी के लाड़ू खा ले,
बिरथा हे धनी के झोला----।।
नदी धार म,दीया ढील के,
मनभर डुबकी लगाहूँ।
हूम धूप दे पूजा करहूँ,
तोर महिमा ल गाहूँ।
आसा के पुल बाँधत हावै
मोर गरीबिन चोला----।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
अपने ही जलाते हैं, तो आग ढूँढकर क्या करूँ।
आस्तीन ही डसते हैं, तो नाग ढूँढकर क्या करूँ।
तेरे-मेरे; इसके-उसके; सब में तो है,
फिर कोसों दूर चंद्रमा में दाग ढूँढकर क्या करूँ।
खैरझिटिया
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