Monday 18 December 2023

छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर नवा पीढ़ी

 छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर नवा पीढ़ी


आलेख :- जीतेन्द्र कुमार वर्मा ' खैरझिटियां " बाल्को,कोरबा (छग)


                          हमर बबा के ददा बिना नउकरी के अपन जांगर के थेभा, अपन महतारी ला पालिस-पोसिस, हमर बबा तको बिना नउकरी के जाँगर चलावत अपन महतारी ला पालिस- पोसिस अउ इही कतार मा ददा तको, फेर आज मैं अउ मोर सहीं कतको नवा पीढ़ी के लइका मन महतारी के सेवा जतन करे बर सरकारी नवकरी के मुँह ताकत हें। एखर एके कारण हे, बबा के ददा होय चाहे बबा होय या मोर ददा उन सबके पास आधार रिहिस, खेती रिहिस। ओखरे दम मा महिनत करत अपन फर्ज निभाइन, फेर मैं या तो आधार ला बिसरा चुके हँव या फेर महिनत ले भागत हँव। बिना आधार के कखरो नैया पार नइ लगे। चील चाहे कतको ऊँचा आगास मा उड़े, भोजन पानी धरा मा ही पाथे। अइसनेच होवत हे, हमर भाँखा महतारी संग घलो। मनखे सेखी मा अपन आधार ला, बड़का के बताये सीख ला, उंखर धरे पाँत ला छोड़त हे, अउ देखावा मा कागज के पाँख लगाए, आगास अमरत हे। अइसन मा कइसे बनही? अउ का चीज सिद्ध परही। आधार अउ जाँगर-नाँगर छोड़े ले, न तो महतारी अउ न ही महतारी भाँखा, कखरो के बढ़वार नइ हो सके।

                     छत्तीसगढ़ी हम सब छतीसगढ़िया मन बर कोनो बोली या भाँखा नो हरे। छत्तीसगढ़ी हमर मान ए, सम्मान ए, या कहन ता  ये हम सब छतीसगढ़िया के पहिचान ए। ह हो हमर, अंतस के उद्गार ए, हमर महतारी बोली छत्तीसगढ़ी । छतीसगढ़ी ला हमर पुरखा मन अउ आज के वरिष्ट गुणी विद॒वान  मन अपन खाँध मा बोह के सरलग सजावत-सँवारत ये नवा युग मा, नवा पीढ़ी के आघू मा लाके खड़ा करे हे। महतारी भाँखा के बढ़वार बर करें पुरखा अउ वरिष्ट विद्वान मन के योगदान ला नइ भुलाये जा सके। चाहे वो कोनो साहित्यकार होय, कलाकार होय, समाज-सेवक होय या हमर संस्कृति संस्कार के साथ संवाहक, सबकें अहम योगदान हें। अइसने नवा पीढ़ी ला तको नवा जोश-जज्बा के साथ छत्तीसगढ़ी बर बूता करेल लगही। जइसे महतारी ला ओखर लइका ही महतारी कथे, वइसने हम सब ला छत्तीसगढ़ी के मान बर बेटा बरोबर सरलग कारज करेल लगही। चाहे जनम देवइया महतारी होय, चाहे माटी महतारी होय, या भाँखा महतारी, सबके सेवा हमर फर्ज अउ धरम करम आय। तभे तो कथों--   "सरग मा जघा पाही छत्तीसगढ़ी जोन बोलही।

हम छत्तीसगढ़िया नइ बोलबों छत्तीसगढ़ी ता कोन बोलहीं।।"

फेर हम सब ला सिर्फ बोलना भर नइहे, महतारी बरोबर छत्तीसगढ़ी भाँखा के मान गउन करेल लगही।


                    नवा पीढ़ी जिंखर करा पुरखा मनके धरे पाँत हे, वरिष्ट विद्वान मनके साथ हे, नवा-नवा तौर तरीका अउ तकनीक हाथ हे, संगे संग जोश-जज्बा अउ आत्मविश्वास हे।

फेर, का हे-छत्तीसगढ़ी मा? छत्तीसगढ़ी मा सुवा हे, छत्तीसगढ़ी मा ददरिया हे,  छत्तीसगढ़ी मा करमा हे, रहस हे, नाचा हे, गम्मत हे, पंथी हे, पंडवानी हे, लोरिक चंदा हे,भरथरी हे, रामधुनी हे, रामसत्ता हे, सेवा हे, जस हे, भाव हे, भजन हे, गीत हे, कविता हे, कहानी हे,निबंध हे , व्यंग्य हे·---- अरे का नइ हे छत्तीसगढ़ी मा? सबे चीज तो हे, अउ कहूँ यदि कुछु नइहे तो येला सिरजाय के जिम्मेदारी हे, नवा पीढ़ी ऊपर हे। 

                      आज के नवा पीढ़ी बड़ भागमानी हे, जेन मन ला सोसल मीडिया वरदान बरोबर मिले हे। जुन्ना सियान मन चिमनी के झिलमिल अँजोर मा कागत करिया करें या कोनो कला के रियाज करे, तेखर बाद छपे छपवाए या कोनो ला देखाय सुनाय बर पर के मुँह ताकँय। फेर आज जमे चीज चाहे कला होय, साहित्य होय या फेर आने अउ कुछु भी तुरते फेसबुक,वाट्सअप, यू ट्यूब के माध्यम ले हजारों-लाखों तक चंद सेकंड मा पहुँच जावत हे। सियान मन कहय कि "नेकी कर दरिया मा डाल" फेर आज सोसल मीडिया के जमाना मा कुछु भी कर फेसबुक,वाट्सअप, इंस्टाग्राम, यूट्यूब मा डार चलत हे। जइसने देखबे तइसने दिखथे, मैं युवा वर्ग मा बने बने चीज देखे हँव, उही ला ओरियाये बर जावत हँव। सोसल मीडिया के आय ले कला-साहित्य, गीत-संगीत सबे मा क्रांतिकारी परिवर्तन आय हे। सर्जक वर्ग लिखइया-गवइया-बजइया सहज सोसल मीडिया के जरिये दिख जथे ता सहज पाठक-दर्शक-स्रोता वर्ग तको मिल जथे। एखरे परिणाम आय जे आज युवा वर्ग सोसल मीडिया मा डूब के छत्तीसगढ़ी बर काम करत हें। चाहे हमर गोठ वाले त्रिवेंद्र साहू होय या मोर मितान वाले दिलीप देवांगन, चाहे सुपर शर्मा ब्लॉग वाले रवि शर्मा होय या कवि संग चाय वाले जितेंद्र वर्मा वैद्य, चाहे D न्यूज वाले दिनेश साहू होय या वैभव बेमेतरिहा, दीपक साहू, भीषम वर्मा, ईश्वर तिवारी, ईश्वर साहू आरुग,ईश्वर साहू बंधी,शरद यादव अक्स, रेणुका सिंह,दामिनी बंजारे,मिनेंद्र चन्द्राकर,तृप्ति सोनी------- सब सोसल मीडिया के भरपूर उपयोग करत छत्तीसगढ़ी भाँखा अउ छत्तीसगढ़ के संस्कृति संस्कार, पार-परब, स्थान अउ हमर महान विभूति मन के गुण गाथा मन ला जनजन तक सरलग पहुँचावत हें।


              सोसल मीडिया के जमाना मा आज रोज रोज नवा नवा गीत कविता जनमानस बीच आवत हे। हजारों संख्या मा गीतकार,गायक - गायिका व भावपक्ष मा अपन प्रतिभा देखावत युवा संगी मन  सहज दिखथे। मिनेश साहू, दिग्विजय वर्मा, क्रांति कार्तिक यादव, अनिल सलाम, ओपी देवागंन,शालिनी विश्वकर्मा, रामकुमार साहू, धनराज साहू, श्रवण साहू, किशन सेन,अमलेश नागेश,अश्वनी कोशरे, डी.पी. लहरे, डीमान सेन, कंचन जोशी, सहीवानी जंघेल, शोभामोहन  श्रीवास्तव, भूपेंद्र साहू, जितू विश्वकर्मा, बृजलाल दावना, महादेव हिरवानी, आराध्या साहू,ममता साहू, आरु साहू, स्वेच्छा साहू, सेलिना दावना, बरखा सिन्हा, कविता साहू, हिमानी वासनिक, अनुराग शर्मा, नितिन दुबे------- कस अउ कतकोन हस्ती हें, जेमन आनी बानी के गीत-संगीत' छत्तीसगढ़ मा परोसत हें। 


            पत्रकारिता/ टी.वी/ रेडियो/नाचा गम्मत/ ब्लॉग/ लोक गीत/ लोकनृत्य/सांस्कृतिक मंच/ कला जत्था/ सेवा/साहित्य/फिल्म------ आदि कतको माध्यम ले आज के नवा पीढ़ी छत्तीसगढ़ी भाखा महतारी अउ छत्तीसगढ़ के सेवा करत हें। New 36, आखर अँजोर, मोर बस्तर, मोर भुइयाँ छतीसगढ़, सुरता.com, छत्तीसगढ़ी.इन, गुरतुर गोठ, छंद के छ,आरुग चौरा, मोर छत्तीसगढ़, गाँव के गोठ, गांव गुड़ी,आरुग चौरा------एखर आलावा अउ कतकोन आनलाइन ब्लॉग अउ टी- वी चैनल, पत्र- पत्रिका हें, सबे के वर्णन कर पाना सम्भव नइहे।  छत्तीसगढ़ी के सेवा युवा पीढ़ी मन छत्तीसगढ़ मा तो करते हें, संगे संग भारत ले बाहिर तको गणेश कर,मीनल मिश्रा, विभाश्री साहू-----आदि कतको मन छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर सरलग बूता करत हें।  संगे संग युवा पीढ़ी पाठ्यपुस्तक मा तको छतीसगढ़ी ला पूर्णतः लाये बर उदिम करत हें।


                  मंचीय युवा कवि मन, मंच ले सरलग  छत्तीसगढ़ी मा कविता पाठ करत हें। चाहे मनीराम साहू मितान होय, शशिभूषण स्नेही होय, घनश्याम कुर्रे होय, ग्वाला प्रसाद यादव होय, उमाकांत टैगोर होय, दिलीप वर्मा होय, ईश्वर साहू होय या सुकदेव सिंह अहिलेश्वर------- । प्रमोद साहू,धनेश साहू, ईश्वर बंधी------- कस कतको गुनी शख्स मन चित्रकारी के माध्यम ले छत्तीसगढ़ के कला संस्कृति संस्कार ला बगरावत हें। छत्तीसगढ़ी शब्द कोष बर होय या खेलकूद बर सबे मा युवा पीढ़ी मन के बरोबर भागीदारी दिखथे।


                कथे कि साहित्य समाज के आईना आय, फेर साहित्य सिरिफ आईना भर नही बल्कि अस्तित्व तको आय। अइसन मा नवा पीढ़ी साहित्य के सेवा करे बर कइसे पिछवा सकथे? अरुण निगम जी के "छंद के छ" रूपी आंदोलन ले एक छंदमय क्रांति आइस, जेखर परिणाम स्वरूप आज विशुद्ध छंद मा कोरी ले तको आगर छत्तीसगढ़ी छंद संग्रह साहित्य जगत आ चुके हे। रमेश चौहान, मनिराम साहू मितान, रामकुमार चंद्रवंसी, कन्हैया साहू'अमित', बोधनराम निषादराज, सुखदेवसिंह अहिलेश्वर,विजेन्द्र वर्मा, सुचि भवि, धनेश्वरी सोनी 'गुल', डी.पी लहरे 'मौज, जगदीश साहू, राजकुमार चौधरी, आशा देशमुख, शोभामोहन ------आदि कतकोन युवा छंदकार मनके छंदबद्ध संग्रह पढ़ सकत हन। सुधीर शर्मा जी, सरला शर्मा जी, विनोद वर्मा जी, अनिल भटपहरी, पीसी लाल यादव,अरुण निगम जी ------ अउ लोकाक्षर पटल के कतकोन विद्वान मन के निर्देशन  मा छत्तीसगढ़ी गद्य के लगभग सबे विधा मा युवा संगी मन सरलग काम करत हें । जेमा ओमप्रकाश साहू अंकुर, चंद्रहास साहू, हरिशंकर गजानन देवांगन, राजकुमार चौधरी 'रौना, मेहन्द्र बघेल, आशा देशमुख, हीरा लाल गुरुजी समय, चित्रा श्रीवास, देवचरण धुरी, हेमलाल सहारे, ग्यानु मानिकपुरी, अजय अमृतांशु,धरमेन्द्र निर्मल, नीलम जायसवाल,पोखनलाल जायसवाल------- आदि कतकोन संगी मन सरलग कहानी, निबंध, संस्मरण, व्यंग्य अउ गद्य के कतकोन विद्या मा काम करत हें। साहित्य के संग कला, संस्कृति, सेवासमाज अउ अन्य सबे क्षेत्र मा नवा पीढ़ीं छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर सतत लगे हें। सबके वर्णन तको सम्भव नइहे।


             फेर एक ठन बात अउ हे--- का नवा पीढ़ी मतलब हमी तुम्ही मन आन?  वो लइका जेन घर मा टाटा, बाय-बाय, गुडनाइट, गुडमार्निंग, काहत रथे, कविता सुना कथन ता कथे--जानी जानी यस पापा--ईटिंग सुगर नो पापा------का ये मन नवा पीढ़ी के नो हरे? का इंखर खांध मा छत्तीसगढ़ी के भार नइहे? का येमन ला छत्तीसगढ़ी के सेवा करे बर नइ लगे? हमन ला हमर बबा डोकरीदाई, नाना नानी मन कहानी कन्थली सुना सुना के अउ बड़े भाई मन खेल खेला खेला के छत्तीसगढ़ी के रंग मा रँगिन। का आज के नवा लइका मन ऊपर छत्तीसगढ़ी के रंग चढ़त हे?  का हमन हमर कका, बबा, भाई भगिनी कस नवा पीढ़ी ला जुन्ना बात बानी ला परोसत हन? का हमर छत्तीसगढ़ के संस्कृति संस्कार नवा पीढ़ी ला पहुँचत हे? यदि हाँ ता बने बात हे, अउ नही--- ता घोर चिंतनीय हे। मोला तो जेन दिखथे ते हिसाब ले लगथे ये नवांकुर पीढ़ी(नवा लइका मन) चुकता छत्तीसगढ़ी ले दूर भागत हे, जे हमर महतारी भाँखा बर अच्छा संकेत नोहे।


"चिरई के पीला चिंव चिंव करथे,

कौआ के काँव काँव।।

गइया के बछरू हम्मा कइथे,

हुड़ड़ा के हॉंव हाँव।।

फेर मंदरस कस गुरतुर बोली, बन बरसत हावय गोली।

मोर छत्तीसगढिया बेटा बदलत हे बिसराथे भाँखा बोली।।"


                  मनखे मन के बोली के इही बिडम्बना हे। अंत मा इही कहना चाहहूँ जइसे हमन ला सियान मन छत्तीसगढ़ी के प्रति हमर मन मा लगाव बढ़ाइन, वइसने खुद संग नवांकुर पीढ़ी ला तको छत्तीसगढ़ी कोती लेगेल लगही, तभे छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी के साख नवा पीढ़ी मा बचे रही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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