गीत--आ जाबे नदिया तीर म
आ जाबे नदिया तीर म, अगोरत हौं या ।
कुनकुन-कुनकुन जाड़ जनावै, मँय कोयली कस बोलत हौं या ।
महुर लगे तोर पांव लाली, धूर्रा म सनाय मोर पांव पिंवरा हे ।
चिंव-चिंव करे चिरई-चिरगुन, नाचत झुमरत मोर जिवरा हे ।।
फूल गोंदा कचनार केंवरा, चारों खुंट ममहाये रे ।
तोर मया बर रोज बिहनिया, तन-मन मोर पुन्नी नहाये रे ।
मया के दीया बरे मजधारे, मारे लहरा मँय डोलत हौं या ।
आ जाबे नदिया तीर म, अगोरत हौं या ------------------
कातिक के जुड़ जाड़ म घलो, अगोरत होगेंव तात रे ।
आमा-अमली ताल तलैया, देखत हे तोर बॉट रे ।
परसा पारी जोहत हावै, फगुवा राग सुनाही रे ।
होरी जरे कस तन ह भभके, देखत तोला बुझाही रे ।।
आमा मँउर कस सपना ल, झोत्था-झोत्था जोरत हौं या।
आ जाबे नंदिया तीर म, अगोरत हौं या -----------
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
कातिक पुन्नी अउ संत श्री गुरुनानक जयंती के सादर बधाई
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