Monday 18 December 2023

रील बनई- दोहा चौपाई

 रील बनई- दोहा चौपाई


पर्दा के तक चीज ला, देखावत हे रील।

का होही अब कोन जन, आघू अउ पा ढील।।


रील बनइया टूरी टूरा। पगला गय हें सच मा पूरा।।

पाये बर कमेंट व्यू लाइक। धरें फिरें नित बक्सा माइक।।


दिखथें मन के गावत नाँचत। लोकलाज सत गत ला काँचत।।

काय सही अउ काय गलत हें। बिन जाँचे परखें झुमरत हें।।


कोनो ज्ञान बघारत दिखथे। कोनो घर बन बारत दिखथे।।

कोनो करत दिखे मनमानी। कोनो बहथे बनके पानी।।


बहरुपिया बन कोनो नाँचे। कोनो उल्टा कविता बाँचे।।

कई कोन जन काये बोले। कोनो बोले ता विष घोले।।


भिड़े हवैं घर भर कतको के। रील बनाये सुधबुध खोके।।

रील बनइया अउ देखइया। गिनती मा नइहे गा भइया।।


पहिर ओढ़ झकझक ले भौजी। रील बनावै नित मनमौजी।

सास ससुर बइठे धर तरवा। देय पँदोली हँस मनसरवा।।


करें नुमाइश कतको तन के। कतको मन नाँचे बन ठन के।।

दर्शक मन ला खींचे खातिर। कतको खेल करें बन शातिर।।


कतको नाँचत दिखे अकेल्ला। खोज खाज के हेल्ला मेल्ला।

कतको नाँचे डहर-बाट मा। कतको पर्वत नदी पाट मा।।


देखावा के राजा रानी। देखावा के दानी ज्ञानी।।

मरही हरनी छट्ठी बरही। रील भीतरी सबके खरही।।


फेमस होये बर मनखे मन। बने फिरें सावित्री सरवन।।

जोंतत हावैं जिद के हरिया।  पार करत हें हद के दरिया।।


इती उती के विडियो फोटू। खींच खींच के डारे छोटू।।

रील बनाये के चक्कर मा। कलह तको होवै बन घर मा।।


अजब नशा सब ला चढ़ गय हे। रीति नीति तन मन बर भय हे।।

बने चीज बगरइया कम हें। गलत चीज उपजत बड़ घम हें।।


बचे रहे इंसानियत, बचे रहे इंसान।

रील खील बन मत गड़े, लाये झन तूफान।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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