Monday 18 December 2023

देवउठनी एकादशी(सरसी छंद)

 देवउठनी एकादशी(सरसी छंद)


एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार।

घरघर तोरन ताव सजे हे,गड़े हवे खुशियार।


रिगबिगात हे तुलसी चँवरा,अँगना चँउक पुराय।

तुलसी सँग मा सालि-ग्राम के,ये दिन ब्याय रचाय।

कुंकुम हरदी चंदन बंदन,चूड़ी चुनरी हार---।

एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार।


ब्याह रचाके पुण्य कमावै,करके कन्यादान।

कांदा कूसा लाई लाड़ू,खीर पुड़ी पकवान।

चढ़ा सँवागा नरियर फाटा,बन्दै बारम्बार---।

एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार।


जागे निंदिया ले नारायण,होवय मंगल काज।

बर बिहाव अउ मँगनी झँगनी,मुहतुर होवै आज।

मेला मड़ई मातर जागे,बहय मया के धार--।

एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार।


लइका लोग सियान सबे झन,नाचे गाये झूम।

मीत मितानी मया बढ़ावय,गाँव गली मा घूम।

करे जाड़ के सबझन स्वागत,सूपा चरिहा बार।

एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार--।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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देवउठनी तिहार- रूपमाला छंद 


देवउठनी आज हे छाये हवे उल्लास।

हूम के धुँगिया उड़े महकै धरा आगास।

चौंक चंदन मा फभे अँगना गली घर खोर।

शंख  घन्टी मन्त्र सुन नाँचे जिया बन मोर।


घींव के दीया बरै कलसा म हरदी रंग।

ब्याह बंधन मा बँधे बृंदा बिधाता संग।

आम पाना हे सजे मंडप बने कुसियार।

आरती  थारी  म  माड़े  फूल गोंदा हार।


जागथे ये दिन बिधाता होय मंगल काज।

दान दक्षिणा करे ले पुण्य मिलथे आज।

लागथे  मेला  मड़ाई  बाजथे  ढम ढोल।

रीस रंजिस छोड़ के मनखे रहै दिल खोल।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को (कोरबा)


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महँगा होगे गन्ना(कुकुभ छंद)


हाट बजार तिहार बार मा


जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना।

तभो किसनहा पातर सीतर,साँगर मोंगर हे धन्ना।


भाव किसनहा मन का जाने,सब बेंचे औने पौने।

पोठ दाम ला पावय भैया,खेती नइ जानै तौने।

बिचौलिया बन बिजरावत हे,सेठ मवाड़ी अउ अन्ना।

जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना----।


पारस कस हे उँखर हाथ हा,लोहा हर होवै सोना।

ऊँखर तिजोरी भरे लबालब,उना किसनहा के दोना।

होरी डोरी धरके घूमय,सज धज के पन्ना खन्ना।

जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना।


हे हजार कुशियार खेत मा,तभो हाथ हावै रीता।

करम ठठावै करम करैया,जग होवै हँसी फभीता।

दुख के घन हा घन कस बरसे,तनमन हा जाथे झन्ना।

जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना------।


कमा घलो नइ पाय किसनहा,खातू माटी के पूर्ती।

सपना ला दफनावत दिखथे,सँउहत महिनत के मूर्ती।

देखव जिनगी के किताब ले,फटगे सब सुख के पन्ना।

जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको कोरबा

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देवउठनी तिहार


खाये बर कुशियार ला,चाही चंगा दाँत।

चबा चबा चूसव रसा,रइही बढ़िया आँत।

खैरझिटिया

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देव उठनी तिहार के सादर बधाई

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