Monday 18 December 2023

छंद त्रिभंगी- छत्तीसगढ़ी भाँखा

 https://youtu.be/4Cg8K-SM8kA?feature=shared


छंद त्रिभंगी- छत्तीसगढ़ी भाँखा


सबके मन भावय, गजब सुहावय हमर गोठ, छत्तीसगढ़ी।

झन गा बिसरावव,सब गुण गावव,करव पोठ,छत्तीसगढ़ी।

भर भर के झोली, बाँटव बोली, सबे तीर, छत्तीसगढ़ी।

कमती हे का के, देखव खाके, मीठ खीर, छत्तीसगढ़ी।

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महतारी भाँखा- दोहा गीत


दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।

मधुरस कस गुरतुर गजब, छत्तीसगढ़ी बोल।


खुशबू माटी के उड़े, बसे हवै सब रंग।

तन अउ मन ला रंग ले, रख ले हरदम संग।

हरे दवा नित खा खवा, बोल बने तैं तोल।

दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।


परेवना पँड़की रटय, बोले बछरू गाय।

गुरतुर भाँखा हा हमर, सबके मन ला भाय।

जंगल झाड़ी डोंगरी, गावय महिमा डोल।

दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।


इहिमे कवि अउ संत मन, करिन सियानी गोठ।

कहे सुने मा रोज के, भाँखा होही पोठ।।

महतारी ले कर मया, देखावा ला छोल।

दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।

 

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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छत्तीसगढ़ी बानी(लावणी छंद)- जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।

पी के नरी जुड़ा लौ सबझन, सबके मिही निशानी अँव।


महानदी के मैं लहरा अँव, गंगरेल के दहरा अँव।

मैं बन झाड़ी ऊँच डोंगरी, ठिहा ठौर के पहरा अँव।

दया मया सुख शांति खुशी बर, हरियर धरती धानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।।।।।


बनके सुवा ददरिया कर्मा, माँदर के सँग मा नाचौं।

नाचा गम्मत पंथी मा बस, द्वेष दरद दुख ला काचौं।

बरा सुँहारी फरा अँगाकर, बिही कलिंदर चानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।


फुलवा के रस चुँहकत भौंरा, मोरे सँग भिनभिन गाथे।

तीतुर मैना सुवा परेवना, बोली ला मोर सुनाथे।

परसा पीपर नीम नँचइया, मैं पुरवइया रानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।


मैं गेंड़ी के रुचरुच आवौं, लोरी सेवा जस गाना।

झाँझ मँजीरा माँदर बँसुरी, छेड़े नित मोर तराना।

रास रमायण रामधुनी अउ, मैं अक्ती अगवानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।


ग्रंथ दानलीला ला पढ़लौ, गोठ सियानी धरलौ जी।

संत गुणी कवि ज्ञानी मनके, अंतस बयना भरलौ जी।

मिही अमीर गरीब सबे के, महतारी अभिमानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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बिसराथे भाँखा बोली


मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे, बिसराथे भांखा बोली । 

बड़ई नइ करे अपन भांखा के, करथें नित ठिठोली ।।


गिल्ली भँवरा बांटी भुलाके, खेले किरकेट हॉकी । 

माटी ले दुरिहाके रातदिन, मारत रहिथें फाँकी ।। 

चिरई के पिला चिंव-चिंव करथें, कँउवा के काँव-काँव ।

गइया के बछरू हम्मा कइथें, हुँड़रा के हाँव-हाँव ।।

मंदरस कस गुत्तुर बोली बन, बरसत हवय गोली ।

मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे, बिसराथे भांखा बोली ।


हरर-हरर जिनगी भर करें, छोड़े मीत मितानी ।

देखावा ह आगी लगे हे, मारे बस फुटानी ।।

पाके माया गरब करत हे, बरोवत हवैं पिरीत ला ।

नइ जाने सत दया-मया ल, तोड़त फिरथें रीत ला।।

होटल-ढाबा लाज ह भाये, नइ झांके रंधनी खोली। 

मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे, बिसरात हे भांखा बोली।।


छत्तीसगढ़ महतारी के भला, कोवने नाम जगाही ?

हमर छोड़ के कोन भला, छत्तीसगढ़िया कहाही ?

सनहन पेज, मही बासी, अउ अंगाकर अब नइ चुरे ।

सिंगार करे बर माटी के, छत्तीसगढ़िया मन नइ जुरें ।।

तीजा-पोरा ल कइसे मनाही ? नइ जाने देवारी-होली।

मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे, बिसरात हे भांखा बोली।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


राजभाषा दिवस के सादर बधाई

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