लावणी छंद - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"*
आत्मा वीर नारायण के
दुख पीरा हा हमर राज मा,जस के तस हे जन जन के।
देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।
जे मन के खातिर लड़ मरगे,ते मन बुड़गे स्वारथ मा।
तोर मोर कहि लड़त मरत हे, काँटा बोवत हें पथ मा।
कोन करे अब सेवा पर के,माटी के खाँटी बनके।
देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।
अधमी सँग मा अधमी बनके,माई पिला सिरावत हे।
पइसा आघू घुटना टेकत,सत स्वभिमान गिरावत हे।
परदेशी के पाँव पखारय,अपने बर ठाढ़े तन के।
देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।
बाप नाँव ला बेटा बोरे, महतारी तक ला छोड़े।
राज धरम बर का लड़ही जे,भाई बर खँचका कोड़े।
गुन गियान के अता पता नइ, गरब करत हे वो धन के।
देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।
लाँघन ला लोटा भर पानी,लटपट मा मिल पावत हे।
कइसे जिनगी जिये बिचारा,रो रो पेट ठठावत हे।
अपने होगे अत्याचारी,मुटका मारत हे हनके।
देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।
नेता बयपारी मन गरजे,अँगरेजन जइसन भारी।
कोन बने बेटा बलिदानी,दुख के बोहय अब धारी।
गद्दी ला गद्दार पोटारे, करत हवय कारज मनके।
देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।
छन्दकार - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
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