Thursday 13 May 2021

अइसे म भागही कोरोना

 अइसे म भागही कोरोना


                 हमर भारत देश गाँव के देश ये, गाँव म ही हमर जनसंख्या के आधा ले जादा आबादी निवास करथे।  गाँव म हॉस्पिटल अउ डिग्री धारी डॉक्टर नही बल्कि हल्का फुल्का जानकार डॉक्टर जेला, सरकार झोला छाप कहिके लताड़थे, उही मन जमाना ले सेवा करत आवत हे, छोट मोट बीमारी ओखरे दवा पानी म ठीक होत आय हे, जादच बढ़थे तभो गाँव वाले मन शहर कोती जाथे। उही डॉक्टर मन गाँव वाले मन बर भगवान आय। वर्तमान समय म सरी दुनिया कोरोना के दंश ल झेलत हे, येमा भारत घलो अछूता नइहे। दिन ब दिन मरीज मनके संख्या बढ़त जावत हे, हॉस्पिटल म बिस्तर घलो कम पड़ जावत हे। शहर त शहर, गांव के जम्मो मनखे मन घलो ये रोग के इलाज बर शहरे कोती भागत हे। कोरोना के भयावह डर देखाके, सरकार गाँव के डॉक्टर मनके हाथ ल बाँध देहे, अइसन म भयावह स्थिति बनबेच करही। गाँव के मनखे  हॉस्पिटल के हालत ल देखत शुरुवात म ये रोग के प्रति कोनो प्रकार के ध्यान नइ देवत हे, अउ जब बाढ़ जावत हे, त हॉस्पिटल जाये बर मजबूर हो जावत हें।  का कोरोना हॉस्पिटले म सरकार के ठप्पा वाले डॉक्टर मन से ही ठीक होवत हे? का कोरोना के दवाई सिर्फ उँहिंचे हे? यदि कोरोना के कोनो प्रामाणिक दवाई हे त वोला का गाँव के डॉक्टर मन नइ दे सके? का हॉस्पिटल म ही जाना जरूरी हे? हाँ भले जब रोग बढ़ जावत हे या ऑक्सीजन के जरूरत पड़त हे त बात अलग हे। जेन सुरक्षा हास्पिटल के डॉक्टर खुद बर अपनाथे, उही सुरक्षा ल जरूरी करत गाँव के डॉक्टर मन ल घलो ये रोग के मरीज मनके सेवा करे बर प्रोत्साहित करें बर पड़ही, तभे ये सरलग बाढ़त कोरोना ल रोके जा सकत हे, नही ते आदमी डरे म दम तोड़ दिही, प्राथमिक सहायता अउ दवाई देवइया ल आघू लाय बर पड़ही, तभे हमर विशाल जनसंख्या कोरोना ले लड़ पाही, अउ भयमुक्त हो पाही। आधा तो रोग ले जादा डर छाये हे, ये डर अउ ये रोग तभे भागही जब एखर इलाज सहज सुलभ ढंग ले होही।


                 हॉस्पिटल म सेवा देवइया मन घलो कोनो आन लोक के तो प्राणी नोहे, उही मन मनखेच आय। जब वो मन कोरोना के मरीज ल ठीक कर सकत हे, त मोर खियाल से दवा पानी उपलब्ध कराये जाय त, गाँव के डॉक्टर म घलो ठीक कर सकत हे, अउ नही त मरीज के संख्या ल तो जरूर कम कर सकत हे। पहली ले साव चेत करत दवाई पानी देय म रोग नइ बाढ़ पाही। येखर बर वो जम्मो दवाई ल सहज उपलब्ध कराय बर पड़ही, जे हॉस्पिटल म भर्ती होय के बाद चलथे। कोरोना के रोगी घर म बिना डॉक्टर के कोरेण्टाइन होके आखिर का कर सकही, कोनो न कोनो थेभा तो चाही न, ऊंखर मन बर स्पेशल शहर ले तो कोनो डॉक्टर नइ आवय, त घर म कोरेण्टाइन के का फायदा। हर गाँव म कोई न कोई डॉक्टर सूजी पानी देथे, बात बात म कोनो ब्लाक या शहर के अस्पताल म जाना सहज नइ हे। अस्पताल म सूजी लिख देथे, त लगइया भी तो चाही, का सुजीच लगाये बर वो मरीज अस्पताल म भर्ती रहिथे, नही न, आखिर म इही डॉक्टर मन तो काम आथे। हो सकथे कुछ मन कम जानत होही, फेर सबे डॉक्टर ल झोला छाप कहिके गरियाना गलत हे। पहली जमाना से आज तक इंखरे थेभा म गाँव के स्वास्थ भला चंगा हे। ये महामारी ल देखत उन सबला जिम्मेदारी देय के जरूरत हे। आवश्यक सुरक्षा के संग सरकार अपन दिशा निर्देश देके उन सबला काम  सौपे त सहज अइसन महामारी ले निपटे जा सकत हे। भले आज डॉक्टर नर्स के संख्या पहली ले बहुत जादा बाढ़ गेहे, तभो सुदूर गाँव म स्वास्थ सेवा देवइया, उही गाँव के डॉक्टर मन हे। कुछ सरकारी या डिग्री धारी डॉक्टर मन शहर के नजदीक वाले गांव म सेवा देथे, जेमन सुबे क्लीनिक खोलथे अउ संझा बन्द करके शहर भाग जाथे। का तबियत रात म नइ बिगड़त होही, तब कोन काम आथे, यहू बात ल सोचना चाही।


                  मान ले कोनो मनखे के गोड़ टूट गेहे, अउ यदि ओखर घर दू तीन कदम दुरिहा हे त वो बपुरा दर्द ल सहत कूद फांद के घर घलो चल देथे, फेर कहूँ कई कोस दुरिहा हे त,,,, ओखर मन म संसो छा जथे, वो घबरा जथे, डर जथे। अउ जहाँ डर तहाँ जर स्वाभाविक हे। आज कोरोनाकाल म घलो इही स्तिथि देखे बर मिलत हे, इलाज के सुविधा कई कोस दुरिहा म हे, इही कहूँ नजदीक हो जही, त मरीज ल सम्बल मिलही, ओखर डर भय भागही, येखर बर नजदीक के जेन जानकार डॉक्टर हे ओला सेवा के अवसर दे बर पड़ही। सबे चीज डिग्री म सम्भव नइहे, कुछ म दिमाक अउ अनुभव घलो काम करथे। गाँव होय या फेर शहर होय सबे कोती के मनखे मन अपन जर बुखार बर एक झन डॉक्टर धरे रहिथे, फेर आज वो डॉक्टर मन मजबूर होके हाथ बाँध के बइठे हे, मरीज ल प्राथमिक साथ अउ सलाह नइ मिलत हे। कथे न अपन अपन होथे, आज उही अपन के सलाह, साथ के अभाव के कारण डर बाढ़त हे अउ जर घलो। 


               सरकारी अस्पताल मरीज मन ले भराय हे, प्रायवेट चिन्हित अस्पताल म घलो जघा नइहे, आज ये भयावह स्थिति हे, मरीज बिगड़े हालत म अस्पताल आवत हे, आखिर हालत बिगड़त काबर हे, हो सकथे उन ला प्राथमिक उपचार नइ मिल पावत होही। का छोटे छोटे क्लीनिक वाले अउ गाँव शहर के जानकार डॉक्टर मन कोरोना बर कुछु नइ कर सकय। मोर खियाल ले जेन अतिक दिन ले सूजी पानी, दवा दारू करत हे, ते मन बहुत कुछ कर सकत हे, बसर्ते ऊंखर बंधाये हाथ ल सरकार खोले, अउ उनला आघू लावय। कोरोना हे कहिके गम्भीर बीमारी ले तड़पत मनखे मन ल कोविड हॉस्पिटल म डार देना घलो दुखद हे। डाकडाउन म काम धंधा बंद हे, कतको घर दाना पानी के घलो किल्लत मच गेहे, अइसन समय म घलो कतको मन दवाई दारू नइ कर सकत हे, अउ कोरोना ल बढ़ा डरत हे। सरकार ल जानकार डॉक्टर मनके माध्यम ले उंखर मदद करना चाही। अस्पताल म भर्ती होय के नवबत झन आय ये डहर सोचे के जरूरत हे, आज तो सर्दी खाँसी बुखार माने कोरोनच होगे हे, त पहली ले सचेत रहन अउ दवा पानी करन। कतको जघा तो बिना कोरोना टेस्ट के सर्दी खाँसी बुखार के दवाई घलो नइ मिलत हे, ते दुखद स्थिति हे। कतको मन टेस्ट म पॉजिटिव आय के डर म टेस्ट नइ करावत हे, कि  कहीं पॉजिटिव आही त सरकार धर बाँध के अस्पताल म डार दिही। कतको झन अस्पताल म दम तोड़त मरीज मन ल देख के सदमा म हे, अउ अस्पताल ले बचना घलो चाहत हे। सही सलाह अउ दिलासना देवइया नजदीक के डॉक्टर मन ल येखर बर आघू लाय बर पड़ही, कोरोना के टेस्ट अउ इलाज के दायरा(गांव गांव तक) बढ़ाय बर पड़ही, तभे कोरोना के डर भागही, अउ जब डर भागही, तभे जर भागही।


(मोर लिखे के मतलब कोनो ल बने गिनहा या छोटे बड़े साबित करना नही, बल्कि सबे कोती अइसन महामारी के इलाज के प्रक्रिया ल सरल सहज बनाय बर जोर देना हे)


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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