Thursday 13 May 2021

सखी छंद

 सखी छंद


मन चंगा अउ तन चंगा,तभे कठौती मा गंगा।

जेहर बिहना ले जागे,ओखर किस्मत हा भागे।


करे अलाली जौने हा, दुख पाये बड़ तौने हा।

भोजन खावै जे ताजा,ओहर काया के राजा।


सुध लेवय जे काया के,अधिकारी सुख माया के।

तन मा मदिरा जे डाले,वो बिखहर नागिन पाले।


गिनहा रद्दा जे जाये,गारी गल्ला वो खाये।

करम बने जेखर होथे,नींद ससन भर वो सोथे।


मीत मितानी जे राखे,ओखर अंजोरी पाखे।

फिकर करे जे काली के,पिंवरा पाना डाली के।


आज म जिनगी जे जीथे,वो हरदम अमरित पीथे।

मीठा बोली जे बोले,जिनगी मा मधुरस घोले।


बात बड़े के जे माने,वो जिनगी जीना जाने।

धरम करम ला जे छोड़े,वो दुख कोती पग मोड़े।


पर पीरा मा जे हाँसे, गड़ जावै उहुला ला फाँसे।

जे बिरवा मा फर लागे,ओखर सब पाछे आगे।


बैर लड़ाई जे पाले,अपने जिनगी वो घाले।

छटकारे पर बर आँखी,झड़ जावव सुख के पाँखी।


जे पर बर खँचका कोड़े,ओखर गड्ढा मा गोड़े।

जौन दुवा सबके पाये,वोहर दुनिया मा छाये।


खैरझिटिया

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