होली गीत
इरखा द्वेष जराबों, चलो रे संगी होली मनाबों।
अन्तस् ले अन्तस् मिलाबों, चलो रे संगी-----।
मन रूपी जंगल भीतरी जाबों।
अवगुण के छाँट लकड़ी लाबों।
गाँज के अगिन लगाबों, चलो रे संगी-----।
तन ला रंगबों मन ला रंगाबो।
घर ला रंगबों बन ला रंगबों।।
आघू पाँव बढ़ाबों, चलो रे संगी-----------।
सत सुम्मत ला देबों पँदोली।
भरबों सबके खाली झोली।।
हँसबो अउ हँसवाबों, चलो रे संगी---------।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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