दोहा-राम जी
थर-थर कापत हे धरा, का बिहना का शाम।
आफत ला झट टार दौ, जयजय जय श्री राम।
खैरझिटिया
घनाक्षरी
आशा विश्वास धर, सियान के पाँव पर।
दया मया डोरी बर, रोज सुबे शाम के।।
घर बन एक जान, जीव सब एक मान।
जिया कखरो न चान, स्वारथ म लाम के।।
मीत ग मितानी बना, गुरतुर बानी बना।
खुद ल ग दानी बना, धर्म ध्वजा थाम के।।
डहर देखात हवे, जग ला बतात हवे।
अलख जगात हवे, चरित्र ह राम के।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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