Friday, 14 May 2021

वीर महाराणा प्रताप -आल्हा

 वीर महाराणा प्रताप -आल्हा


नौ  तारिक के  मई  महीना, नाचै  अउ गावै  मेवाड़।

बज्र शरीर म बालक जन्मे,काया लगे माँस ना हाड़।


उगे उदयसिंह के घर सूरज,जागे जयवंता के भाग।

राजपाठ के बने पुजारी,बैरी मन बर बिखहर नाग।


अरावली पर्वत सँग खेले,उसने काया पाय विसाल।

हे हजार हाथी के ताकत,धरे  हाथ  मा  भारी भाल।


सुरुज सहीं अंगार खुदे हे,अउ संगी हे आगी देव।

चेतक मा चढ़के जब गरजे,डगमग डोले बैरी नेव।


खेवन हार बने वो सबके,होवय जग मा जय जयकार।

मुगल राज सिंघासन डोले,देखे अकबर  मुँह ला फार।


चले  चाल अकबर तब भारी,हल्दी घाटी युद्ध रचाय।

राजपूत मनला बहलाके,अपन नाम के साख गिराय।


खुदे रहे डर मा खुसरे  घर ,भेजे  रण मा पूत सलीम।

चले महाराणा चेतक मा,कोन भला कर पाय उदीम।


कई हजार मुगल सेना ले,लेवय लोहा कुँवर प्रताप।

भाला भोंगे  सबला भारी,चेतक के गूँजय पदचाप।


छोट छोट नँदिया हे रण मा,पर्वत ठाढ़े हवे  विसाल।

डहर तंग विकराल जंग हे, हले घलो नइ पत्ता डाल।


भाला  धरके किंजरे रण मा, चले बँरोड़ा संगे संग।

बिन मारे बैरी मर जावव,कोन लड़े ओखर ले जंग।


धुर्रा  पानी  लाली होगे,बिछगे  रण  मा  लासे लास।

बइरी सेना काँपे थरथर,छोड़न लगे सलीम ह आस।


जन्मभूमि के रक्षा खातिर,लड़िस वीर बन कुँवर प्रताप।

करिस नहीं गुलामी कखरो,छोड़िस भारत भर मा छाप।


रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

9981441795

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