रोला छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
आगे रंग तिहार, चलत हे बड़ पिचकारी।
बाजे मांदर झाँझ, नँगाड़ा तासक भारी।
लइका संग सियान, मगन सब मिलजुल नाँचे।
चिक्कन कखरो गाल, आज के दिन नइ बाँचे।
भजिया बरा बनाय, खाय सब झन मिलजुल के।
होके मस्त मतंग, फाग मा नाँचे खुलके।।
काय बड़े का छोट, पटत हे सबके तारी।
कोई होगे लाल, गाल कखरो हे कारी।
धरती संग अगास, रंग गेहे होली मा।
परसा सेम्हर साल, प्लास नाँचे डोली मा।
नवा नवा हे पात, फूल हे आनी बानी।
सज धज हे तइयार, गजब के धरती रानी।
छोड़ तोर अउ मोर, तभे होली हे होली।
मिल अन्तस् ला खोल, बोल मधुरस कस बोली।
चुपर मया के रंग, धोय मा नइ धोवाये।
नीला पीला लाल, रंग दू दिन के ताये।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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