गीत-आइस नही बसंत(सरसी छन्द)
आइस नही बसंत सखी रे, आइस नही बसंत।
बिन अमुवा का करे कोयली, कांता हा बिन कंत।।
बिन फुलवा के हावय सुन्ना, मोर जिया के बाग।
आसा के तितली ना भौरा, ना सुवना के राग।।
हे बहार नइ पतझड़ हे बस, अउ हे दुःख अनंत।
आइस नही बसंत सखी रे, आइस नही बसंत।।
सनन सनन बोलय पुरवइया, तन मन लेवय जीत।
आय पिया हा हाँसत गावत, धर फागुन के गीत।।
मरत हवौं मैं माँघ मास मा, पठो संदेश तुरंत।
आइस नही बसंत सखी रे, आइस नही बसंत।।
देख दिखावा के दुनिया हा, बैरी होगे मोर।
छीन डरिस सुख चैन पिया के, काट मया के डोर।
पुरवा पानी पियत बने ना, आगे बेरा अंत।
आइस नही बसंत सखी रे, आइस नही बसंत।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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