मकर सक्रांति परब की ढेरों बधाइयाँ।।
लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।
दया मया के माँजा धरके, सुख शांति के पतंग उड़ाबों।
दान धरम पूजा व्रत करबों, गाबों मिलजुल के गाना।
छोट बड़े के भेद मिटाबों, धरबों इंसानी बाना।
खीर कलेवा खिचड़ी खोवा,तिल गुड़ लाडू खाबों।
नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।
सुरुज देव ले तेज नपाबों,मंद पवन कस मुस्काबों।
सरसो अरसी चना गहूँ कस,फर फुलके जिया लुभाबों।
रात रिसाही दिन बढ़ जाही, कथरी कम्म्बल घरियाबों।
नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।
मान एक दूसर के करबों,द्वेष दरद दुख ले लड़बों।
आन बान अउ शान बचाके, सबके अँगरी धर बढ़बों।
लोभ मोह के पाके पाना, जुर मिल सब झर्राबों।
नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा(छत्तीसगढ़)
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मकर सक्रांती आगे
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बर पीपर पाना के,
बनाके फिलफिल्ली।
रस्सी डोरी म बाँध के,
कागत अउ झिल्ली।
मगन होके लइका,
हवा के उल्टा भागे।
मकर सक्रांती आगे।
मकर सक्रांती आगे।
कखरो खिसा म हे,
तिली लाड़ू,मुर्रा लाड़ू
त कखरो खिसा म,
अंगाकर,चीला रोटी।
खेले बर निकले हे,
संगी संगवारी संग,
बिहनिया के होती।
जुड़ - जुड़ जाड़ हे,
घाम तीर सब लोरे हे।
कोनो लइका नाचत हे,
त कोनो कुड़कुडाय,
हाथ जोड़े हे।
माँघ के महीना देख,
जाड़ ;जाय बर लागे।
मकर सक्रांती आगे।
मकर सक्रांती आगे।
चूल्हा तीर ले दाई,उठत नइ हे।
चाहा चलत हे , ददा पानी ;
पूछत नइ हे।
घाम ल घलो,
पारा भर मिल के ;तापत हे ।
डोकरी दाई लइका खेलाय,
त डोकरा बबा ढेरा आँटत हे।
कोनो बांटी अउ गिल्ली खेले,
त कोनो मताय भँवरा।
चूरे सेमी साग;तात-तात भात,
झड़क उपरहा कँवरा।
बहिनी खेले बिल्लस,
छुन - छुन छांटी बाजे।
मकर सक्रांती आगे।
मकर सक्रांती आगे।
मिंसा - कुटा के धान,
धरागे कोठी - मइरका म।
हरही गाय ल ढिल मिलगे,
बियारा के ओधे खइरपा म।
उतेरा-ओन्हारी के रखवारी,
भारी चलत हे।
पढ़इया - लिखइया मनके,
तियारी; भारी चलत हे।
मेला - मड़ई नाचा - कूदा,
गाँव - गाँव म छागे।
मकर सक्रांती आगे।
मकर सक्रांती आगे।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
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मकर सक्रांति(सार छंद)
सूरज जब धनु राशि छोड़ के,मकर राशि मा जाथे।
भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे।
दिशा उत्तरायण सूरज के,ये दिन ले हो जाथे।
कथा कई ठन हे ये दिन के,वेद पुराण सुनाथे।
सुरुज देवता हा सुत शनि ले,मिले इही दिन जाये।
मकर राशि के स्वामी शनि हा,अब्बड़ खुशी मनाये।
कइथे ये दिन भीष्म पितामह,तन ला अपन तियागे।
इही बेर मा असुरन मनके, जम्मो दाँत खियागे।
जीत देवता मनके होइस,असुरन नाँव बुझागे।
बार बेर सब बढ़िया होगे,दुख के घड़ी भगागे।
सागर मा जा मिले रिहिस हे,ये दिन गंगा मैया।
तार अपन पुरखा भागीरथ,परे रिहिस हे पैया।
गंगा सागर मा तेखर बर ,मेला घलो भराथे।
भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे।
उत्तर मा उतरायण खिचड़ी,दक्षिण पोंगल माने।
कहे लोहड़ी पश्चिम वाले,पूरब बीहू जाने।
बने घरो घर तिल के लाड़ू,खिचड़ी खीर कलेवा।
तिल अउ गुड़ के दान करे ले,पायें सुख के मेवा।
मड़ई मेला घलो भराये, नाचा गम्मत होवै।
मन मा जागे मया प्रीत हा, दुरगुन मन के सोवै।
बिहना बिहना नहा खोर के,सुरुज देव ला ध्यावै।
बंदन चंदन अर्पण करके,भाग अपन सँहिरावै।
रंग रंग के धर पतंग ला,मन भर सबो उड़ाये।
पूजा पाठ भजन कीर्तन हा,मन ला सबके भाये।
जोरा करथे जाड़ जाय के,मंद पवन मुस्काथे।
भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
मकर सक्रांति लोहड़ी,पोंगल,बीहू के बहुत बहुत बधाई
आज के पबरित बेरा अउ मकर सकरांती तिहार के आप मन ल सपरिवार बधाई।
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