Monday 2 January 2023

लावणी छन्द गीत- मनखे रे स्वभिमानी बन

 लावणी छन्द गीत- मनखे रे स्वभिमानी बन


फोकट बनथस अभिमानी तैं, मनखे रे स्वभिमानी बन।

चाल चलन आदत कर बढ़िया, जग बर नवा कहानी बन।।


झन कखरो आघू पाछू हो, कुकुर बरोबर पुछी हला।

दुसर इशारा मा बन बानर, खून पछीना झने गला।।

अपन पाथ ला खुदे बनाले, नदिया के तैं पानी बन।

फोकट बनथस अभिमानी तैं, मनखे रे स्वभिमानी बन।।


मनखेपन के लाज राख ले, गदहा बन झन ढो झोला।

धरम करम धर काज करत रह,फल मिलही खच्चित तोला।

साध साधना करके सब ला, गुण गियान धर ग्यानी बन।

फोकट बनथस अभिमानी तैं, मनखे रे स्वभिमानी बन।।


समय गुलामी के अब नइहे, तभो गुलामी करथस तैं।

लोभ मोह के चक्कर में पड़, पर के पँवरी परथस तैं।।

सही गलत ला नाप तौल ले, झन हाँ भरत जुबानी बन।

फोकट बनथस अभिमानी तैं, मनखे रे स्वभिमानी बन।।


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)

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