कविता ला।
तुरते ताही कागज मा झन छपन दे कविता ला।
अंतस के आगी मा थोरिक तपन दे कविता ला।
सागर मंथन कस मन ला मथ,निकाल अमरित।
कउड़ी के दाम कभू, झन नपन दे कविता ला।।
बइठ गय हे मन मार के, थक हार के यदि कोई।
भरे उन मा जोश जज्बा,ता अपन दे कविता ला।
कवि करम मा तोर मोर के, चिट्को जघा नइहे।
पर हित खातिर सबदिन, खपन दे कविता ला।।
का जुन्ना का नवा का सस्ता अउ का महंगा खैरझिटिया।
ओन्हा चेन्द्रा कस चिरा चिरा के, कपन दे कविता ला।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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