कुंडलियाँ- बन रमकलिया/फुटु रमकल
मिलथे डोली खार मा, बन रमकलिया खूब।
राँधव भूंज बघार के, खावव घर भर डूब।।
खावव घर भर डूब, मिठाथे अड़बड़ भारी।
शहर रथे अंजान, गाँव के ये तरकारी।।
कोंवर कोंवर देख, फूल फर मन हा खिलथे।
गुण जाने ते खाय, खेत भर्री मा मिलथे।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा(छग)
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