मँय रखवार, उतेरा - ओन्हारी के।
मँय रखवार, उतेरा - ओन्हारी के।
कुहकी पारत ,
बइठे कुंदरा म।
बिहनिया के जाड़,
अउ घपटे धुंधरा म।
राखत हँव चना-गहूँ,
अरसी-लाखड़ी-लाख।
मूड़ म बांधे पागा,
धरे लउठी हाथ।
कँसे लाल गमछा ,
कनिहा म।
आँखी गड़ाय हँव,
राहेर,मसूर,सरसो धनिया म।
बने संगवारी,बांस,बोइर,बम्भरी,झाड़-झाड़ी के।
मँय रखवार, उतेरा - ओन्हारी के।।
ठाढ़ कूदे बेंदरा,
हरही गाय,घेरी-बेरी आय।
नइ खेपे, काँटा- खूँटी ल,
चाहे कइसनो खेत रुंधाय।
मँय भागत रहिथों,
ए मुड़ा ले ; ओ मुड़ा।
ताकत रिथे भाजी टोरइया
अउ अतलंगहा टूरा।
रोजेच डर रिथे , चोरी - चकारी के।
मँय रखवार, उतेरा - ओन्हारी के।।
संझा-मुन्द्रहा मोला,
खेत म पाबे।
मिलना हे मोर ले,
त खेत कोती आबे।
चलही पुरवाही,
तोर मन भर जाही।
झूल-झूल के सरसो,
राहेर;नाच देखाही।
करहूँ जोरा,चना,बटकर,राहेर,मुखारी के।
मँय रखवार, उतेरा - ओन्हारी के।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
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