Saturday 14 January 2023

नँदावत संस्कृति संस्कार

 नँदावत संस्कृति संस्कार


देख जवनहा टुरी टुरा मन ला,

मनमाड़े हाँसत हे।

रिकिम रिकिम के लोभ दिखाके,

विदेशी संस्कृति फाँसत हे।

परब तिहार मा इटिंग ग्रीटिंग,

हाय हलो चलत हे।

दाई ददा बर टेम नइहे,

पांव परई खलत हे।

भुलागे बरा सोंहारी,

अउ गुलगुल भजिया।

ऐना मैना नाम बतावत हे,

रामबाई रमशीला रधिया।

बुधारू समारू होगे राहुल रोहन,

सूट बूट मा नाँचे।

पहिर जींस टोपी चश्मा,

मोबाइल धरे हे हाथे।

दोस्त यार संग दारू भट्ठी,

आर बार मा झपाय हे।

कहाँ सुरपुट दार भात,

आनी बानी के बिरयानी खाय हे।

नइ दिखे सुर संगीत,मया पिरित के गीत,

सुनावत हे भांगड़ा डिस्को।

जवनहा मन नाचो गाओ,

सियनहा मन खिसको।

इभी टीभी बीबी बोहागे,

एमा रच बस के।

दाई ददा ल देख के,

टुरी टुरा मन टसके।

आज लाज ढाबा होटल,

बनके किसनहा के खेत मा।

अखमुंदा झपात हें जम्मों,

विदेशी चपेट मा।

बर बिहाव के सात भाँवर,

सात दिन मा टूटत हे,

थोरिक लइका बाढ़िस ताहन,

पार परिवार ले छूटत हे।

धरे हे बीड़ी सिगरेट,

रहिरहि के फूकत हे।

चगलत हे तंबाकू गुटका,

इती उती थूकत हे।।

इंग्लिश विस्की रम मा रमके,

नाचत हे अँटियात हे।

कागत के पंख लगाके,

अगास मा उड़ियात हे।

ठीक हे  सब आज, नवा जमाना मा ढलव।

फेर नाम तको बचे रहै,अइसन राह म चलव।

उड़ाव विदेशी संस्कृति के पाँख लगाके।

फेर अपन संस्कृति ला बचाके।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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