गीत-जा रे परेवना
जा रे परेवना पाती देके आ जा।
शहर नगर मा रइथे मोर राजा।।
जागे न सुते हँव बिना पिया के।।
रोई रोई लिखे हँव हाल जिया के।
बाजय घड़ी घड़ी दुःख के बाजा।
जा रे परेवना पाती दे के आ जा।
नइ चाही धन दौलत महल अटारी।
लाँघन रहिथे हँव भूख ला मारी।।
कइसे जीयत हँव लगा अंदाजा।
जा रे परेवना पाती दे के आ जा।
पाती पढ़के आही पिया जल्दी गाँव मा।
जिनगी बिताहूँ बढ़िया पिरीत के छाँव मा।
रद्दा जोहत हँव खोल दरवाजा।
जा रे परेवना पाती दे के आ जा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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