Monday, 30 December 2024

गजल

 गजल


पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे।

दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे।


वोट देके कोन ला जनता जितावैं।

झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे।


खात हावँय घूम घुमके अरदली मन।

सिर नँवइयाँ के मुड़ी ला फोड़ होगे।


बड़ सरल हावय बुराई के डहर हा।

सत कहूँ मुश्किल लगिस ता छोड़ होगे।


मौत के मुँह मा समागे देवता मन।

काल के असुरन तिरन अब तोड़ होगे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


कुंडलियाँ


पानी बरसे पूस मा,गरज बरस के साथ।

कथरी कम्बल संग मा,छत्ता खुमरी हाथ।

छत्ता खुमरी हाथ,पूस मा अटपट लागे।

खाय मनुस ला जाड़,सुरुज ला बादर खागे।

पड़े दुतरफा मार,कहाँ ले फूटय बानी।

अड़बड़ जाड़ जनाय,ओतको मा ये पानी।


खैरझिटिया

सर्दी दिसम्बर के-लावणी छंद

 सर्दी दिसम्बर के-लावणी छंद


हाड़ा गोंडा काँप जात हे, सर्दी देख दिसम्बर के।।

धरती के हालत खस्ता हे, खस्ता हालत अम्बर के।।


किनकिन किनकिन जाड़ करत हे, कुड़कुड़ाय हे चोला हा।

सुरुज नरायण बिजरावत हे, नइ भावै घर कोला हा।।

धुंध कोहरा मा का करही, चश्मा कोनो नम्बर के।

हाड़ा गोंडा काँप जात हे, सर्दी देख दिसम्बर के।।


बइला भँइसा कुकरी बकरी, काल सबे बर आगे हे।

बघवा भलवा हाथी तक के, ताकत जमे हरागे हे।।

कथरी भीतर मनुष दुबकगे, नोहे क्षण आडम्बर के।

हाड़ा गोंडा काँप जात हे, सर्दी देख दिसम्बर के।।


शीत गिरत हे टपटप टपटप, पेड़ पात अउ छानी ले।

गरम चीज बर फिरैं ललावत, बैर करैं सब पानी ले।।

बबा संग मा कई जवान तक,  नाहे हवँय नवम्बर के।

हाड़ा गोंडा काँप जात हे, सर्दी देख दिसम्बर के।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गीत-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

गीत-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

नवा बछर मा नवा आस धर,नवा करे बर पड़ही।
द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।

साधे खातिर अटके बूता,डॅटके महिनत चाही।
भूलचूक ला ध्यान देय मा,डहर सुगम हो जाही।
चलना पड़ही नवा पाथ मा,सबके अँगरी धरके।
उजियारा फैलाना पड़ही, अँधियारी मा बरके।
गाँजेल पड़ही सबला मिलके,दया मया के खरही।
द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।

जुन्ना पाना डारा झर्रा, पेड़ नवा हो जाथे।
सुरुज नरायण घलो रोज के,नवा किरण बगराथे।
रतिहा चाँद सितारा मिलजुल,रिगबिग रिगबिग बरथे।
पुरवा पानी अपन काम ला,सुतत उठत नित करथे।
मानुष मन सब अपन मुठा मा,सत सुम्मत ला धरही।
द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।

गुरतुर बोली जियरा जोड़े,काँटे चाकू छूरी।
घर बन सँग मा देश राज के,संसो हवै जरूरी।
जीव जानवर पेड़ पकृति सँग,बँचही पुरवा पानी।
पर्यावरण ह बढ़िया रइही, तभे रही जिनगानी।
दया मया मा काया रचही,गुण अउ ज्ञान बगरही।
द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

नवा बछर के बहुत बहुत बधाई

घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

             1
बिदा कर गाके गीत,बारा मास गये बीत।
का खोयेस का पायेस,तेखर बिचार कर।।
गाँठ बाँध बने बात,गिनहा ला मार लात।
अटके ला चौबीस के,पच्चीस मा पार कर।।
बैरी झन होय कोई,दुख मा न रोय कोई।
तोर मोर छोड़ संगी,सबला जी प्यार कर।।
जग म जी नाम कमा,सबके मुहुँ म समा।
बढ़ा मीत मितानी ग,दू ल अब चार कर।।

              2
गुजर गे बारा मास,बँचे जतके हे आस।
पूरा कर ये बछर,हटा जमे रोक टोंक।।
मुचमुच हाँस रोज,पथ धर चल सोज।
बुता काम बने कर,खुशी खुशी ताल ठोंक।
दिन मजा मा गुजार,बांटत मया दुलार।
खाले तीन परोसा जी,लसून पियाज छोंक।।
नवा नवा आस लेके,दिन तिथि खास लेके।
हबरे बछर नवा,हमरो बधाई झोंक।।

              3
होय झन कभू हानि,चले बने जिनगानी।
बने रहे छत छानी,बने मुड़की मिंयार।।
फूल के बिछौना रहै, महकत दौना रहे।
जीव शिव प्रकृति के,सदा मिले जी पिंयार।।
आदर सम्मान बढ़े,भाग नित खुशी गढ़े।
सपना के नौका चढ़े,होके घूम हुसियार।।
होवै दिन रात बने,मनके के जी बात बने।
नवा साल खास बने,भागे दूर अँधियार।।

               4
सबे चीज के गियान,पा के बनो गा सियान।
गाँव घर देश राज,छाये चारो कोती नाम।।
मीठ करू खारो लेके,सबके जी आरो लेके।
सेवा सतकार करौ,धरम करम थाम।।
खुशी खुशी बेरा कटे,दुख के बादर छँटे।
जिनगानी मा समाये,सुख शांति सुबे शाम।।
हमरो झोंको बधाई,संगी संगवारी भाई।
नवा बछर मा बने,अटके जी बुता काम।।

                5
अँकड़ गुमान फेक,ईमान के आघू टेक।
तोर मोर म जी मन, काबर सनाय हे।।।
दुखिया के दुख हर,अँधियारी म जी बर।
कतको लाँघन परे, कतको अघाय हे।।।
उही घाट उही बाट,उही खाट उही हाट।
उसनेच घर बन,तब नवा काय हे।। ।।।।
नवा नवा आस धर,काम बुता खास कर।
नवा बना तन मन,नवा साल आय हे।।।।

जीतेंद्र वर्मा""खैरझिटिया
बाल्को,कोरबा
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

गजल- जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बिछे जाल देख के मोर उदास हावे मन हा।
बुरा हाल देख के मोर उदास हावे मन हा।।1

बढ़े हे गजब बदी हा, बहे खून के नदी हा।
छिले खाल देख के मोर उदास हावे मन हा।2

अभी आस अउ बचे हे, बुता खास अउ बचे हे।
खड़े काल देख के मोर उदास हावे मन हा।।3

गला आन मन धरत हे, सगा तक दगा करत हे।
चले चाल देख के मोर उदास हावे मन हा।।4

कती खोंधरा बनावँव, कते मेर जी जुड़ावँव।
कटे डाल देख के मोर उदास हावे मन हा।5

धरे हाथ मा जे पइसा, उही लेगे ढील भँइसा।
गले दाल देख के  मोर उदास हावे मन हा।।6

कई खात हे मरत ले, ता कहूँ धरे धरत ले।
उना थाल देख के  मोर उदास हावे मन हा।7

जे कहाय अन्न दाता, सबे मारे वोला चाँटा।
झुके भाल देख के  मोर उदास हावे मन हा।8

नशा मा बुड़े जमाना, करे नाँचना नँचाना।
नवा साल देख के मोर उदास हावे मन हा।9

जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

बधाई नवा बछर के(सार छंद)

हवे  बधाई   नवा   बछर   के,गाड़ा  गाड़ा  तोला।
सुख पा राज करे जिनगी भर,गदगद होके चोला।

सबे  खूँट  मा  रहे  अँजोरी,अँधियारी  झन  छाये।
नवा बछर हर अपन संग मा,नवा खुसी धर आये।
बने चीज  नित नयन निहारे,कान सुने सत बानी।
झरे फूल कस हाँसी मुख ले,जुगजुग रहे जवानी।
जल थल का आगास नाप ले,चढ़के उड़न खटोला।
हवे  बधाई  नवा  बछर  के,गाड़ा  गाड़ा  तोला----।

धन बल बाढ़े दिन दिन भारी,घर लागे फुलवारी।
खेत  खार  मा  सोना  उपजे,सेमी  गोभी  बारी।
बढ़े बाँस कस बिता बिता बड़,यश जश मान पुछारी।
का  मनखे  का  जीव जिनावर, पटे  सबो सँग तारी।
राम रमैया कृष्ण कन्हैया,करे कृपा शिव भोला-----।
हवे  बधाई  नवा  बछर के,गाड़ा  गाड़ा  तोला------।

बरे बैर नव जुग मा बम्बर,बाढ़े भाई चारा।
ऊँच नीच के भेद सिराये,खाये झारा झारा।
दया मया के होय बसेरा,बोहय गंगा धारा।
पुरवा गीत सुनावै सबला,नाचे डारा पारा।
भाग बरे पुन्नी कस चंदा,धरे कला गुण सोला।
हवे बधाई नवा बछर के,गाड़ा गाड़ा तोला---।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

नव वर्ष उछाह मंगल धरके आये
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

Tuesday, 17 December 2024

रऊनिया म...

 ....रऊनिया म...

------------------------------

हाथ-पॉव म का किबे?

जाड़ हमागे हे जिया म|

कतरो बेरा पहा जथे,

बइठे-बइठे रऊनिया म|


अगोरा हे चाहा के,

बिहनिया ले उठ के|

टुकुर-टुकुर देखे लइका,

खटिया म सुत के|

फेंक-फेंक के फरिया ल,

गोड़ ल मढ़ात हे|

किनकिनात भुइयाँ,

चाबे ल कुदात हे|

चुल्हा तीर म,

बइठे हे बहिनी जकड़ी|

अऊ हुरसे ऊपर हुरसत हे,

चुल्हा म लकड़ी |

बखरी के बिहनिया ले,

नइ हिटे हे सँकरी |

बबा लादे हे कमरा,

डोकरी दाई ओढ़े हे कथरी|

अंगरा-अंगेठा  भूर्री चाही,

कइसे जाड़ भगाही दिया म....?

कतरो बेरा पहा जथे,

बइठे-बइठे रऊनिया म ..........|


छेरी-बोकरा;बईला-भंईस्सा,

कुड़कुड़ा गेहे जाड़ म|

जमकरहा सीत परे हे कॉदी म,

मुंदरहा नइ हे कोनो खेत-खार म|

ऊगिस घाम ,तिपिस चाम |

कमइया मनके,बाजिस काम|

धान गंजाय कोठार म,

गहूं -चना गेहे जाम |

बिहनिया के बेरा,

कोन टेंड़े टेंड़ा|

ताते-तात खवइया ल,

नइ भात हवे केरा|

सियान बइठे लइका धरे,

दाई धरे मुखारी ल,

चॉंऊर निमारत बहू बइठे,

रॉध-गढ़ के हाड़ी ल |

तापत बइठे घाम टुरा,

किताब धरे भिंया म.........|

कतरो बेरा पहा जथे,

बईठे-बईठे रऊनिया म.......|


घंटा भर नंहवइया,

छिन म नहा डरिस |

तापत-तापत घाम ल ,

दिन ल पहा डरिस |

किनकिनाय दॉत,

कुड़कुड़ाय जॉंगर|

तभो ले कमइया के,

नइ छुटे नांगर |

जइसने बाढ़े जाड़,

तइसने बाढ़े बुता |

अतलंगहा टुरा मन तापे बर,

बार देहे चरिहा सूपा |

आनि -बानि के साग-भाजी,

तात-तात चूरे हे |

गिल्ली,भंवरा-बॉटी खेले बर,

लईका मन जुरे हे |

जमकरहा जाड़ म ,

बड़ मया बाढ़े हे गिंया म....|

कतरो बेरा पहा जथे,

बइठे-बइठे रऊनिया म......|


रचनाकाल-2004

           📝 जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"📝

                 बाल्को( कोरबा )


💐💐💐💐💐💐💐💐💐


पागा कलगी 26 बर 

परयास"आसो के जाड़ "विषय म


आसो के जाड़

________________

जाड़ म  जमगे, माँस-हाड़।

आसो बिकट बाढ़े हे जाड़।

आंवर-भाँवर  मनखे जुरे हे,

गली  - खोर   म भुर्री बार।


लादे उपर लादत हे,

सेटर कमरा कथरी।

तभो ले कपकपा गे,

हाड़ -मांस- अतड़ी।


जाड़ म घलो,जिया जरगे।

मुँहूं  ले   निकले  धूंगिया।

तात पानी पियई झलकई,

चाहा  तीर  लोरे  सूँघिया।


जाड़  जड़े    तमाचा;  हनियाके।

रतिहा- संझा अउ   बिहनिया के।

दाँत किटकिटाय,गोड़-हाथ कापे,

कोन  खड़े  जाड़  म,  तनियाके?


बिहना धुँधरा म,

सुरुज अरझ गे।

गुंगवा के रंग म ,

चोरो-खूंट रचगे।


दुरिहा के मनखे,

चिन्हाय    नही।

छंइहा जाड़ म ,

सुहाय      नही।


जाड़  ल   जीते  बर,

मनखे करथे  उपाय।

साल चद्दर के तरी म,

लुकाय ऊपर लुकाय।


फेर  ठिठुर के   मर जथे,

कतको   आने    परानी।

जे न जाड़ म कथरी मांगे,

न घाम  म  ;मांगे   पानी।


जब  बनेच   जाड़  बढ़थे।

सुरुज     थोरिक   चढ़ते।

त बइठे-बइठे रऊनिया म,

गजब    मया        बढ़थे।


बाढ़े     हे    बनेच,

आसो   के  जाड़।

लेवत   हे     मजा,

अंगरा-अंगेठा बार।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795



Sunday, 15 December 2024

अइसने म दिल कइसे नई जलही..

 अइसने म दिल कइसे नई जलही..

ओट म लगाय रिही लदफद ले लाली.
कान म झुलत रिही रही रही के बाली.
पूर्वाइया हवा संग चुंदी उड़ात रिही.
हाई हील के सेन्डिल पहिरे हाथ ल झुलात रिही.
कजरारी ऑखी ले जब ठॉय-ठॉय  गोली चलही.........
त बता भला,अइसने म दिल कइसे    नई जलही.......

छटपटावत हे चोला
देख के वोला|
खॉद म झुलत हे
नवा डिजाईन के छोला|
चुंदी ल मुड़ी म
चिमटा कसें हे|
चमचमाय कुर्ता जींस
जऊहर फभे हे |
फुकफुक ले पड़ड़ी
न करिया न बलही............|
त बता भला ...................|

ओट ल चाटही
अऊ दॉत ल कटरही|
त भला जवनहा टुरा मनके
नींद कइसे परही|
देखईया मन देखते रीथे
गड़ाके ऑखी|
परी बनके उड़ावत हे
अगास म लगाके पॉखी|
छलिया बनके घेरीबेरी
तनमन ल छलही..............|
त बता भला ...................|

आगी लगे हे फेसन
नवा डिजाईन म छाके|
हेन्सम कहिलात हे
चुंदी कुरथा कटवाके|
धरे हे मोबाईल
हॉस हॉस के गोठियात हे|
घेरी बेरी चुंदी ल
ऑखी ले हटात हे |
नाम हे पिंकीं रिंकीं
नोहे मन्टोरा अंकलही...........|
त बता भला अईसने.............|
                       जीतेन्द्र वर्मा
               खैरझिटी(राजनॉदगॉव)


Monday, 25 November 2024

संगे संग मया

संगे संग मया

अब कइसे रचही, मधूबन म रास रे ? मोर तीर हे बंसरी, अऊ तोर तीर हे साँस रे ।

कलेचुप खड़े हे, कदम के रूखवा । तंय पूर्वाइयाँ, अऊ मंय हर पात ||

कइसे ममहाही, मया के मोंगरा ? मंय हर पतझड़, अऊ तंय मधूमास रे ।।

चलत हे बरोड़ा, उड़ावत हे धूर्रा । तंय हर बिरौनी, मंय हर आँख रे ।।

मइलहा मन, मनभात नइहे मनखे के । मया के तरिया म, मन ल काँच रे ।।

फेंक के देख मया के गरी, छत्तीसगढ़ भर । अइसने अरझ जही, फेर छल ले झन फाँस रे ।।

न रो, न रोवा, खा तेंदू -चार - कोवा ।

टपका मुंहुँ ले मंदरस, अऊ मन भर हाँस रे ।।

थोरकिन ते खा, थोरकिन भूखाय ल खवा । कर सिंगार महतारी के, नंवाके माथ रे ।।

ओनहा- कोनहाल, करदे अंजोर । मया के माटी ले, उँच-नीच ल पाट रे ।।

का हे भरोसा, जिनगी के सिरतोन म ? मया - पिरीत ल, झंऊहा- झंऊहा बाँट रे ।।

जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

सड़क सुरक्षा- गीत

 सड़क सुरक्षा- गीत


चलना है सड़क में, तो मानो ये बात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


जल्दीबाजी करने वाले, चले हथेली पर रख जान।

उस इंसान का नही ठिकाना,किये हैं जो मदिरा पान।।

नसा नाश की जड़ है, इससे पाओ निजात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


काबू में रखकर चलो, गाड़ी की रप्तार।

सीटबेल्ट हेलमेट लगाओ,बनकर समझदार।

होश गँवाकर पछताओगे, मौका ए वारदात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


इंडिकेटर हॉर्न सही हो,सही हो आँख और कान

दाँये बायें आगे पीछे, रखो सभी पर ध्यान।

चलो सड़क में सावधान हो, खुद को दो सौगात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


गीत

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।

कारण मौत का न बन जाये,

होश में आओ रे---


दुर्घटना से, देर भली है।

जिसने माना बला उसकी टली है।

सड़क नही करतब का मैदां,

मान भी जाओ रे------

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।


नशे में जो गाड़ी चलाये।

खतरा उसके सिर मंडराये।

चलो सड़क में हो चौकन्ना,

सूझ बूझ दिखाओ रे-------

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।


सब हँसते गाते घर जाये।

आफत न किसी पर आये।

सड़क नियम को खुद अपनायें,

औरों को बताओ रे-------

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

यम ले बड़े सड़क हे - गीत


जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।

गाड़ी घोड़ा धरके, माते हे इंसान।।


धूत नशा मा कतको, गाड़ी रथे चलात।

कतको ला हे जल्दी, कतको हे अँटियात।।

कतको हे नवसिखिया, ता कतको नादान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।।


हेलमेट बिन कतको,मोबाइल धर हाथ।

करतब कई दिखावै, पीटे पाछू माथ।।

मौत सड़क मा देखत,यम तक हे हलकान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।।


नियम भुला अँख मुंदा, गाड़ी जउन भगाय।

अपन संग मा वोहर, पर ला तक रोवाय।।

खँचका डिपरा गरुवा, लेवै छीन परान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।


हाथ लगे इस्टेरिंग, ताहन कहाँ लगाम।

होथे बड़ दुर्घटना, लागे रहिथे जाम।।

यम ले बड़े सड़क हे, खोल आँख अउ कान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।


धीर धरे सुधबुध मा, गाड़ी जउन चलाय।

नियम धियम ला जाने,सड़क ओखरे आय।

तन के मोल समझके, आने ला समझान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


[11/26, 9:31 AM] jeetendra verma खैरझिटिया: जान कीमती है, यह जानते हो।

सुरक्षा को क्यों नही मानते हो?



सुरक्षा नियम तोड़ने वाले।

जल्दी है जग छोड़ने वाले।।


💐💐💐💐💐💐💐💐💐

सड़क सुरक्षा- गीत


चलना है सड़क में, तो मानो ये बात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


जल्दीबाजी करने वाले, चले हथेली पर रख जान।

उस इंसान का नही ठिकाना,किये हैं जो मदिरा पान।।

नसा नाश की जड़ है, इससे पाओ निजात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


काबू में रखकर चलो, गाड़ी की रप्तार।

सीटबेल्ट हेलमेट लगाओ,बनकर समझदार।

होश गँवाकर पछताओगे, मौका ए वारदात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


इंडिकेटर हॉर्न सही हो,सही हो आँख और कान

दाँये बायें आगे पीछे, रखो सभी पर ध्यान।

चलो सड़क में सावधान हो, खुद को दो सौगात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


गीत

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।

कारण मौत का न बन जाये,

होश में आओ रे---


दुर्घटना से, देर भली है।

जिसने माना बला उसकी टली है।

सड़क नही करतब का मैदां,

मान भी जाओ रे------

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।


नशे में जो गाड़ी चलाये।

खतरा उसके सिर मंडराये।

चलो सड़क में हो चौकन्ना,

सूझ बूझ दिखाओ रे-------

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।


सब हँसते गाते घर जाये।

आफत न किसी पर आये।

सड़क नियम को खुद अपनायें,

औरों को बताओ रे-------

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

यम ले बड़े सड़क हे - गीत


जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।

गाड़ी घोड़ा धरके, माते हे इंसान।।


धूत नशा मा कतको, गाड़ी रथे चलात।

कतको ला हे जल्दी, कतको हे अँटियात।।

कतको हे नवसिखिया, ता कतको नादान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।।


हेलमेट बिन कतको,मोबाइल धर हाथ।

करतब कई दिखावै, पीटे पाछू माथ।।

मौत सड़क मा देखत,यम तक हे हलकान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।।


नियम भुला अँख मुंदा, गाड़ी जउन भगाय।

अपन संग मा वोहर, पर ला तक रोवाय।।

खँचका डिपरा गरुवा, लेवै छीन परान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।


हाथ लगे इस्टेरिंग, ताहन कहाँ लगाम।

होथे बड़ दुर्घटना, लागे रहिथे जाम।।

यम ले बड़े सड़क हे, खोल आँख अउ कान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।


धीर धरे सुधबुध मा, गाड़ी जउन चलाय।

नियम धियम ला जाने,सड़क ओखरे आय।

तन के मोल समझके, आने ला समझान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

[11/26, 9:57 AM] jeetendra verma खैरझिटिया: मत करो हड़बड़ी।

होगा नहीं गड़बड़ी।

[11/26, 3:54 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: सुरक्षा कविता


जो बने फिरता है लापरवाह।

उसी का होता है जीवन तबाह।।


हर काम मे ईमानदारी।

सुरक्षा अपनाओ सारी।

तभी सुगम होगीं राह।।

जो बने फिरता है लापरवाह।

उसी का होता है जीवन तबाह।।


आस विश्वास जरूरी है।

होशो हवास जरूरी है।।

पाने के लिये लक्ष्य थाह।

जो बने फिरता है लापरवाह।

उसी का होता है जीवन तबाह।।


हर काम मे अति।

पहुँचाती है क्षति।।

मानों सहीं सलाह।

जो बने फिरता है लापरवाह।

उसी का होता है जीवन तबाह।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

[11/26, 6:20 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी कविता-सुरक्षा


सुरक्षित जीवन जिये बर, सुरक्षा बहुत जरूरी हे।

हँसी खुशी के इही ए कुंजी, इही जिनगी के धुरी हे।।


कइसे करना हे कोन बूता, तेला पहली जानो।

काम बिगड़थे हड़बड़ी मा, सोचो समझो मानो।।

सुरक्षा तिहाँ समाधान हे, जंजाल तिहाँ दूरी हे।।

सुरक्षित जीवन जिये बर, सुरक्षा बहुत जरूरी हे।।

हँसी खुशी के इही ए कुंजी, इही जिनगी के धुरी हे।।


लापरवाही काम मा होथे, तब तब अंतस रोय।

सतर्क होके काम करे मा, भूल चूक नइ होय।।

जिहां सुरक्षा नइ हे तिहाँ, मातम अउ मजबूरी हे।

सुरक्षित जीवन जिये बर, सुरक्षा बहुत जरूरी हे।

हँसी खुशी के इही ए कुंजी, इही जिनगी के धुरी हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

💐💐💐💐💐💐💐💐

*निजात*- नशा ले(गीत)


*नशा ले निजात पाना हे।

पुलिस प्रशासन के कहना ला,

मानना अउ मनवाना हे---------


चरस अफिम सिगरेट ला छोड़ो।

सुख शांति ले नाता जोड़ों।।

ये सब के चक्कर मा पड़,

काल के मुँह मा समाना हे---------


दारू होवय या फेर गांजा।

सबे हे जिनगी बर फांदा।

खुद ला समझना हावै सँग मा,

आने ला समझाना हे---------------


तन हा सिराथे धन हा सिराथे।

झगड़ा झंझट तक हो जाथे।।

सादा जिनगी गाना हे ता,

मंद मउहा हा ताना हे--------------


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Saturday, 23 November 2024

मोर महिनत🌾🌾 ----------------------

 🌾🌾मोर महिनत🌾🌾

-------------------------------------------

तउलागे तराजू बॉट म मोर महिनत।

बेंचागे मंडी हाट म मोर महिनत।।


अबड़ दिन सिधोयेव,जांगर टोर-टोर के,

सकलागे दुई  दिन रात म मोर महिनत।


चर्ररस-चर्ररस चलिस,हँसिया धान मा,

गँजागे करपा बन, पाँत म मोर महिनत।


लुवागे, सकलागे, मिंजाके भरागे बोरा म,

गड़त हे ब्यपारी के दाँत म मोर महिनत।।


तउल दिस लकर धकर, दे दिस दाम औने-पौने ,

चार ठन कागज बन,माड़े हे ऑट म मोर महिनत।


सपना संजोये रेहेंव, हँरियर धान ला नाचत देख,

दाना के दाम म दबगे,एके साँस म मोर महिनत।


उधार-बाड़ी,लागा-बोड़ी छुटत-छुटत,

कुछु नइ  बांचिस, हाथ म मोर महिनत।


               जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

                 बालको(कोरबा)

                  9981441795

तइहा के सुरता-सीला बिनई

 तइहा के सुरता-सीला बिनई


               कभू पाँव म चप्पल, त कभू बिन चप्पल के झिल्ली नही ते झोला धरे स्कूल जाय के पहली अउ स्कूल ले आय के बाद, संगी संगवारी मन संग मतंग होके, ये खेत ले वो खेत म भाग भाग के सीला बिनन। मेड़ पार ल कूदत फाँदत, बिना काँटा खूंटी ले डरे, धान लुवई भर जम्मो धनहा खेत म भारा उठे के बाद, छूटे छाटे धान के बाली ल टप टप बिनत झोला ल भरन। सीला केहेन त धान के लुवत, भारा बाँधत अउ डोहारत बेरा म गिरे या छूटे धान के कंसी आय। सीला बीने बर  लइकापन म,एक जबरदस्त जोश अउ उमंग रहय, बिनत बेरा भूख प्यास, कम जादा, तोर मोर ये सब नही, बल्कि एके बूता रहय, गिरे छूटे धान ल सँकेलना।  सीला उही खेत म बिनन, जेमा के धान  उठ जाय रहय,कतको खेत के धान लुवाये घलो नइ रहय,न डोहराय। तभो मन म भुलाके घलो लालच नइ आय। वो खेत म जावत घलो नइ रेहेन। फेर कोन जन आजकल के लइका मन का करतिस ते? 

                      हप्ता दस दिन धान लुवई भर सीला बिनई चले,  ज्यादातर बड़े भाई बहिनी मन धान ल डोहारे के बूता करे अउ छोटे मन गिरे धान ल बीने के। संगी संगवारी मन सँग सीला बिनत बेरा काँटा गड़े के दरद तो नइ जनावत रिहिस, फेर घर आय के बाद बबा के चिमटा पिन म काँटा निकालत बेरा के पीरा बड़  बियापे। हाँ, फेर सीला बिनई नइ छूटे, चाहे कतको काँटा खूंटी गड़े। एक दू का?  कोनो कोनो संगवारी मन के गोड़ म, आठ दस काँटा घलो गड़ जावय, तभो कोनो फरक नइ पड़े। रोज रोज सीला बीने म, छोट मंझोलन चुंगड़ी भर  घलो धान सँकला जाये। जेला खुदे कुचर के दाना ल फुन-फान के अलगावन। जेन उत्साह अउ उमंग म सीला बिनन, उही उत्साह  ले वोला घर म लाके सिधोवन, अउ सब चीज होय के बाद नापे म जे आनंद मिले, ओखर बरनन नइ कर सकन।  कभू कभू ददा दाई मन पइसा देके सीला के धान ल रख लेवय त कभू दुकान म बेच देवन, त कभू हप्ता हप्ता लगइया हाट बाजार मा, धान के बदली मुर्रा अउ लाडू लेवन। का दिन रिहिस, कतका पइसा -धान सँलाइस ते मायने नइ रखत रिहिस, पर बढ़िया ये लगे कि सीला बिने के पइसा या धान मिले अउ मन भर उछाह। सीला के पइसा ल मंडई हाट बर घलो गठियाके रखन। 

                सीला बिनइया संगवारी मन म बनिहार घर के लइका संग गौटिया घर के लइका घलो रहय, पहलीच केहेंव पइसा कौड़ी धान पान मायने नइ रखत रिहिस, बल्कि धान फोकटे झन पड़े रहे अउ जुन्ना समय ले चलत आवत हे, कहिके सब मिलजुल सीला बिनन। ऋषि कणाद के सीख के निर्वहण करन। फेर आज ये बूता जोर शोर म नइ दिखे, न पहली कस सीला बीने के माहौल हे, न कखरो सँऊख। आजकल खेत म ही मिंजई हो जावत हे। थ्रेसर हार्वेस्टर के लुवई मिंजई म सिर्फ कंसी(बाली) नही, दाना  घलो गिर जाथे, उहू बहुत ज्यादा, ओतना तो चार पाँच खेत ल किंजरे म मिले। ये सब देख के दुख होथे, फेर का करबे नवा जमाना के ये बदले रूप रंग ल बोकबाय सब देखते हन। काम बूता नवा नवा तकनीक ले भले तुरते ताही हो जावत हे, फेर मनखे, बचे बेरा के बने उपयोग नइ कर पावत हे, येमा न लइका लगे न सियान। हमर संस्कृति अउ संस्कार मा अन्न धन ला जान बूझ के कोनो नइ फेके, बल्कि ओला अन्न देव मानत सँकेले जाथे, इही भावना ले ओतप्रोत रहय सीला बिनई। जे आज कमसल होवत हे।

ना थारी मा भात छूटे, ना खेत मा अन्न।

फेर आज के गत देख, मन हो जाथे सन्न।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


फ़ोटो-साभार फेसबुक( श्री सौरभ चन्द्राकर)

बाल दिवस विशेष---- *छत्तीसगढ़ी गीत अउ लोकगीत मा बाल साहित्य/बाल गीत*

 बाल दिवस विशेष---- *छत्तीसगढ़ी गीत अउ लोकगीत मा बाल साहित्य/बाल गीत*


                 हमर छत्तीसगढ़ के गीत संगीत गजब पोठ हे। मधुरस कस मीठ छत्तीसगढ़ी भाँखा जब  गीत संगीत मा गुथाथे तब, सुनइया सुनते रही जथे। लोक गीत माने जनमानस के अंतर्मन मा रचे बसे गीत। कुछ गीत जुन्ना समय ले परम्परागत चलत आवत रथे ता कुछ गीत के अइसे कवि गायक होथें जउन जनमानस के मन मा अपन छाप छोड़ देथें। हमर लोक गीत घर द्वार, खेती खार, डोंगरी पहाड़, नदी नाला, तीज तिहार, चंदा सुरुज, नता गोता, छोटे बड़े, दया मया, सुख दुख जमे ला समेटे हे,अइसन मा बाल मन के गीत छूट जाए, ये होई नइ सके। लोक गीत मा बाल साहित्य के बात होइस ता, मोला वो दौर के सुरता आवत हे,जब घर घर सुबे शाम रेडियो बजे, जिहाँ सरलग रिकिम रिकिम के गीत सुने बर मिले, वोमा के बाल वाटिका, चौपाल, घर आँगन कस अउ कतकोन कार्यक्रम मा बाल गीत गजब बजय। रेडियो आजो हे,गीत संगीत आजो बजत हे, फेर पहली कस कान मा सहज नइ सुनाय, ना पहली कस परछी मा अर्वाय,बजत दिथे। नवा जमाना के चका चौंध हम सब ला दुरिहा दिस। अइसन मा रेडियो मा ही सुने कुछ बाल गीत मन ला ओरियाये के प्रयास करत हँव।  रेडियो मा बद्री विशाल परमानंद, मेहत्तर राम साहू,दानेश्वर शर्मा, केयूरभूषन, हरि ठाकुर,प्यारेलाल गुप्त, दारिकाप्रसाद तिवारी विप्र, उधोराम झकमार, कोदूराम दलित, सुशील यदु, लक्ष्मण मस्तूरिहा, मुकुंद कौशल, पी सी लाल यादव, रामेश्वर शर्मा, दीप दुर्गवी कस कतको अउ गीतकार मन के किसम किसम के मनभावन गीत बजे।  जेला शेख हुसैन,परसराम यदु, मेहत्तर राम साहू, पंचराम मिर्झा, केदार यादव, नवलदास मानिकपुरी, फिदा बाई मरकाम,किस्मत बाई, बैतल राम साहू, गंगा राम, दुखिया बाई, लता खपर्डे, धुरवा राम मरकाम, लक्ष्मण मस्तुरिया, साधना यादव, कविता वासनिक, ममता चन्द्राकर, कुलेश्वर ताम्रकर कस अउ कतको सुर साज के धनी गायक मन स्वर देवयँ। इही सब हस्ती मन के लिखे अउ स्वर देय छत्तीसगढ़ी लोक गीत मन मा बाल गीत छाँट के परोसे के प्रयास करत हँव। कोन गीत ला कोन गाये हे अउ कोन सिरजाये हे, ठीक ठीक बता पाना मुश्किल हे,काबर कि वो सब गीत मन ला सुने बड़ दिन होगे, अउ कुछ परम्परागत रूप ले बड़ जुन्ना समय ले चलत आवत हें, तभो सुरता के गगरी मा भराय कुछ गीत के मुखड़ा पेस हे---


              खेल के बात होथे, ता सबें लइका मन एक जघा जुरिया जथे। एक मौका मा बासी पेज नइ मिलही ता चल जही, फेर खेल बिगन लइका मन नइ रही सके। तभे तो ये गीत मा उमंग उछाह मा लइका मन आपस मा मिलके रेलगाड़ी खेल खेलबों कहिके,एक दूसर ला बुलावत काहत हे----

*रेलगाड़ी रेलगाडी रेलगाड़ी रेलगाड़ी रेल*

*चलो चली मिलके खेलबों,रेलगाड़ी खेल*

*कोनो बनबों इंजन, अउ कोनो डिब्बा*


              अइसनेच एक गीत अउ हे जेला दानेश्वर शर्मा जी लिखे हे अउ कुलेश्वर ताम्रकर जी मन आवाज देय हे-

*रेलगाड़ी झुकझुक रेलगाड़ी*

*रायपुर ले वोहा छूटे रे संगी*


                 लइका मन के खेल खेलवारी मा, झूलना झूलई के अलगे मजा हे,बिगन झूला के कहाँ  लइका मन  रथे, तभे तो ये गीत नोनी मन ला झूलना झुलावत हे----

*झूलना के झूल नोनी,कदम्ब के फूल वो।*

*झूलना झूलत नोनी हाँसे खुलखुल वो।*


                  गाँव के  तरिया, नरवा, परिया, दैहान अउ गली खोर संग लइका मन अमरइया मा घलो खेलत दिखथें। तभे तो अपन संगी साथी ला सँकेलत घरघुन्दिया खेले बर कविता वासनिक जी मन अपन कोयली कस आवाज मा काहत हे----

*चलो बहिनी जाबों अमरइया मा खेले बर घरघुंदिया*

*घर के खेलई मा दाई खिसियाथे, खोर के खेलई मा ददा*

(ये गीत ला परसराम यदु जी मन घलो अपन अलगे अंदाज मा गाये हे)


              बेंदरा, भलवा, हाथी, घोड़ा, मुसवा,कुकूर, बिलई लइका मन ला बड़ सुहाथे। तभे तो गाँव मा खेल मदारी वाले आये ता सब ले पहली भागत लइका मन घर ले निकले, अउ मँझोत मा डेरा डार देवयँ। कुलेश्वर ताम्रकर जी के ये गीत सियान मन संग लइका मन के बीच बड़ सुने जाथे---

*नाच नचनी वो झुमझुमके झमाझम नाच नचनी*

*बरसे तोर पांव तरी रुपिया खनाखन वो नचनी।*

(लक्ष्मण मस्तुरिया जी के लिखे ये मनभावन गीत उंखर स्वयं के स्वर मा घलो बड़ मनभावन हे।)


               मदारी अउ भलवा बर एक लोकगीत, बैतल राम साहू के गाये बड़ चलथे। जेला लइका मन खूब पसन्द करथें-----

*मदारी वाले आय हे।*

*भलवा ला धरके।*

*खेल देखावय अउ भलवा नचावय*

*जुरियाये गाँव भरके।*


            बिलई अउ मुसवा ऊपर घलो गीत सुने बर मिलथे। जेन गीत के बात करत हँव,ये गीत हबीब तनवीर जी के नाटक चरणदास चोर मा घलो बजे---

*बलई ताके मुसवा, भाँड़ी ले सपट के।*


             लइका मन बबा, डोकरी दाई, ममा दाऊ, ममा दाई के नजदीक जादा रथे,अउ अपन बात  झट ले उन ला बताथे, तभे तो एक लइका ये गीत मा अपन ममादाई ला काहत हे--

*चीला ला ले गे बिलइया वो ममा दाई*

*चीला ला ले गे बिलइया*


               पहिली सब कुकरा के बांग सुनत उठयँ। कुकरा के बोली सुन लइका मन नकल करत बड़ खुश होथे। यर गीत मा लइका मन जुरियाके कुकरा के आवाज निकालत,पढ़े लिखे जाए बर काहत गावत हें,---

*बड़े फजर ले कुकरा बोलय*

*कुकरुस कु भइ कुकरुस कु*

*चल वो सीता चल वो गीता*

*बड़े बिहनिया स्कूल जाबों*


                   सबें चीज मा अघवा रहवइया लइका मन,देश भक्ति मा कइसे पीछू रही। ये गीत मा देशभक्ति के रंग मा रँगे, लइका मन अपन ददा ला काहत हे---

*ददा ग महूँ बनहूँ सिपाही*

*सीमा मा जाहूं, बंदूक चलाहूँ*

*तभे मोर छाती जुड़ाही।*


                मेला मड़ई, हाट बाजार गांव गौतरी जाये बर लइका मन एक टांग मा खड़े रथे। अउ उहाँ मोटर गाड़ी, कुकूर बिलई, फुग्गा लेय के जिद करत घलो दिखथें। बैलतराम साहू जी के गाये ये गीत हर फुग्गा बेचइया के जुबान मा रथे-----

*दाई वो दीदी वो लइका बर फुग्गा ले ले*


              हाथ मा राहेर काड़ी धरे बरसात के मौसम मा फांफा फुरफुंदी के पाछू भागत लइका मन मारे खुशी मा देश राज के बढ़वार के कामना करत इही गीत गाथें---

*घानी मुँदी घोर दे, पानी दमोर दे*

*हमर भारत देश ला भैया, दूध दही मा बोर दे*

(ये गीत दाऊ रामचन्द्र देशमुख जी के द्वारा सिरजाये चंदैनी गोंदा के प्रमुख गीत मा एक रिहिस।)


               का सुबे अउ का शाम,,, बरसा घरी घानी मुंदी खेलत लइका मन यहू गीत ला बड़ गुनगुनाथे---

*अँधियारी अंजोरी*

*घानी मुंदी खेबलों वो*


              गर्मी घरी लइका मन सुते सुते जब जब आगास ला देखथे, चंदा ममा ला अपन तीर बुलाथे। अउ चंदा, ममा कस लइका मन के सब ले पसंददीदा होथे। दाई ददा मन चंदा ला लइका मन ला ममा कहिके रटवा देथे, तभे तो  थोरिक बड़े होके नोनी मन चंदा ममा ला काहत हे---

*ए ममा चंदा ।।2*

*देश बर दे हम ला हंडा*


                पुतरी, घुँघरू, तुतरु लइका मन ला बड़ पसंद आथे। रोवत या फेर रिसाय नोनी बाबू मन ला खेलावत ये गीत सबें गाथें---

*करू करेला वो मीठ कुंदरू*

*नाचत हे नोनी बजत हे घुँघरू*

*पुतरी ला देख के नोनी कइसन हँसत हे*


                तिहार बार ला घलो लइका मन के किलकारी अउ उंखर उछाह उमंग विशेष बनाथे। हरेली मा गेड़ी चढ़ई होय, या पोरा मा नन्दिया बइला दौड़ई। राखी, दही लूट, गणेश पक्ष, दीवाली,दशहरा, होली, छेरछेरा सबें तिहार बार मा लइका मन नाचत गावत अपन छाप छोड़थे। अउ उंखर गीत घलो बरोबर सुनावत रहिथे---


1,*छेरिकछेरा छेर मरकिन छेरछेरा*

2,*दाई मोर बर पिचका लेदे वो*

3, *हाथी घोड़ा पालकी*

4, *रिगबिग रिगबिग बरत दियना*

5, *आगे तीजा पोरा के तिहार ,ममा घर जाहूं*

6, *अटकन बटकन दही चटाका*

7,*फुगड़ी रे फुन्ना फुन


               बाबू मन गिल्ली, भौरा बाँटी, ता नोनी मन फुगड़ी खोखो खेलत मगन रथें। चाहे कोनो खेल होय मुख ले बरोबर मया के गीत झरत रथे। अइसने एक  गीत बिन तो फुगड़ी होबे नइ करे, ये गीत हे---

*गोबर दे  बछरू गोबर दे*

*चारो खूँट ला लिपन दे*


          लइका मन के मन के खुशी ला लक्ष्मण मस्तूरिहा जी एक गीत  के रूप मासिरजाये रिहिस, जे चंदैनी गोंदा के प्रमुख गीत के रूप मासबके मन मोहे।

*चंदा बनके जीबों हम*


                एखर आलावा अउ कतकोन जुन्ना लोक गीत हे, जे बाल साहित्य, बाल गीत के रूप मा सुनावत रथे। नवा नवा गीतकार,गायक मन घलो बाल मन के गीत लिखत हें, अउ जनमानस बीच लावत हें। बाल साहित्य छत्तीसगढ़ी मा अभी खूब सिरजाये जात हे। बलदाऊ राम साहू, मुरारीलाल साव,कन्हैया साहू अमित, मनीराम मितान, दिलीप वर्मा, बोधनराम निषादराज,मिनेश साहू, राम नाथ साहू,अजय अमृतांशु, रामकुमार चन्द्रवंसी, मनोज वर्मा, मिलन मिलरिया, बलराम चन्द्राकर, सुशील भोले,डी पी लहरे, सुखदेव सिंह अहिलेश्वर, चोवाराम वर्मा बादल, जीतेन्द्र वर्मा कस कतको नवा अउ जुन्ना कवि मन अभो बाल गीत, कविता सिरजावत हे। अरुण निगम जी द्वारा बनाये ब्लाग ""बालगीत खजाना" मा 600 ले घलो जादा एकजई बाल गीत हे। खोजे मा बाल गीत, बाल साहित्य छत्तीसगढ़ी मा बहुत अकन मिल जही। मैं विषयानुसार सिरिफ छत्तीसगढ़ी गीत, लोक गीत के रूप मा रचे बसे बाल गीत ला ,जउन सुरता आइस उही ला रखे के प्रयास करे हँव। नवा गीत मन तो आज यू ट्यूब,फेसबुक आदि मा हे, पर पुराना कतको गीत संगीत के अभाव हे। आज जरूरत हे,उन सब ला नवा माध्यम मा संघेरे के। रेडियो या फेर रिकार्डिंग स्थल मा आजो ये सब गीत मन होही, जेला नवा माध्यम मा बगराना चाही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐


गिल्ली भौरा बाँटी, खेलत नइ दिखे बचपन।

 हाँसत गावत मया, मेलत नइ दिखे बचपन।

बस्ता म लदकागे, मोबाइल मैगी म भुलागे,

आमा अमली बोइर,झेलत नइ दिखे बचपन।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

खैरझिटिया


दिल से जउन बच्चा हे, उन सबला बाल दिवस के सादर बधाई

आ जाबे नदिया तीर म

 गीत--आ जाबे नदिया तीर म


आ जाबे नदिया तीर म, अगोरत हौं या ।

कुनकुन-कुनकुन जाड़ जनावै, मँय कोयली कस बोलत हौं या ।


महुर लगे तोर पांव लाली, धूर्रा म सनाय मोर पांव पिंवरा हे ।

चिंव-चिंव करे चिरई-चिरगुन, नाचत झुमरत मोर जिवरा हे ।।

फूल गोंदा कचनार केंवरा, चारों खुंट ममहाये रे ।

तोर मया बर रोज बिहनिया, तन-मन मोर पुन्नी नहाये रे । 

मया के दीया बरे मजधारे, मारे लहरा मँय डोलत हौं या ।

आ जाबे नदिया तीर म, अगोरत हौं या ------------------


कातिक के जुड़ जाड़ म घलो, अगोरत होगेंव तात रे ।

आमा-अमली ताल तलैया, देखत हे तोर बॉट रे ।

परसा पारी जोहत हावै, फागुन ल बूता सुझावत हे।

होरी जरे कस तन ह भभके, देखे बिन नइ बुझावत हे। 

आमा मँउर कस सपना ल, झोत्था-झोत्था जोरत हौं या।

आ जाबे नंदिया तीर म, अगोरत हौं या -----------


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


कातिक पुन्नी अउ संत श्री गुरुनानक जयंती के सादर बधाई

नोट के माया..........

 ..........नोट के माया.............

-----------------------------------------

पहिली चक्की-चक्की गुड़ राहय,

बोरी-बोरी सक्कर।

टीपा-टीपा तेल रखे,

कोन लगाय रासन बर चक्कर।


काठा-काठा नून राहय,

बोरा-बोरा आलू,पियाज।

आनी-बानी  के खोइला राहय,

मजा म बीते काली आज।


रंग-रंग के साग,निकले कोलाबारी म।

कभू कुछु कमी नइ होय,घर के हांड़ी म।

भराय राहय पठंऊवा म,

लकड़ी,छेना,पेरा-भूंसा।

गंहु -चना , खरी- बरी,

पुरे सालभर कांदा-कुसा।


खई-खजानी रोटी - पीठा,

रंग-रंग के रोज चूरे।

धनिया,मेथी,मिरचा,मसाला,

बनेच दिन ले पूरे।


बिन चिंता फिकर के गुजारा होय।

खाय कमाय अउ घर बन ल सिधोय।

फेर अब तो ले ले के खवई चलत हे।

चांउर-दार,तेल-नून ल,सकलई खलत हे।


धान,गंहु,चना,सरसो,

कोठी म अब कहाँ धरात हे?

पइसा के चक्कर म,

कोठारे ले बेंचात हे।


कोठी,पठंउवा,मइरका के जघा,

घर-घर तिजोरी बनगे हे।

चांउर,दार,तेल,नून नही,

रुपिया-पइसा मनखे के जोड़ी बनगे हे।


मनखे धरेल धरिस धन,

बढ़ेल लगिस मंहगई।

फेर आज बड़े नोट बेन होगे,

कतको के होगे कल्लई।


खाये के चीज हरे,

त खा अब।

पइसा म दार-चांउर,

बना अब।


जेन मनखे रिहिस पोठ।

जोड़े रिहिस गजब नोट।

तेला आज लगगे,

भारी भरकम चोट।


सिरतोन म छलथे माया।

छोड़े म बड़ रोथे काया।

नोट घलो मोह माया ए,

आज छोड़ दिस देख।

जोड़ना हे त मया जोड़,

कतको ल बोर दिस देख।


नोट बर बेंक हे,

उंहचे धर।

फेर पहिली कस,

मइरका,कोठी ल भर।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

कानून के आँखी म पट्टी-,जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 कानून के आँखी म पट्टी-,जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


                     जान ले बढ़के का हे? तभो मनखे जान ल जोखिम म लेके जियत हे। रोज के हाय हटर, अउ चारो मुड़ा  मुँह उलाय खड़े काल कतको ल रोज लील देवत हे। तभो मनखे कहाँ चेतत हे। आज मनखे मनके मौत घलो कुकुर बिलई कस सहज होगे हे, तभे तो मनखे मन आज  माड़े अर्थी ल घलो देख के रेंग देवत हे। अर्थी कर सिरिफ घर वाले, सगा सम्बन्धी अउ एकात झन भावुक मनखे भर दिखथे। नही ते एक जमाना रहय, कहूँ एक भी मौत होय त देखो देखो हो जाय, मनखे दुख म डूब जाय। फेर आज आन बर काखर तीर टाइम हे। धन दौलत संग मरनी हरनी सबे चीज म तोर मोर होगे हे। मरे के हजार अलहन हे, फेर जिये के दू चार आसरा, तभो मनखे मन दया, मया, सत, सुमत जइसन जरूरी चीज ल बरो के  मुर्दा बरोबर जीयत हे। बड़खा बड़खा सड़क ल देख के यमदूत मन घलो संसो म हे, कि ये मनखे मन बिन बेरा मरे के साधन बना डरे हे। हाय रे अँखमुंदा भागत गाड़ी, हाय रे नेवरिया चलइया, हाय रे जल्दीबाजी अउ हाय रे दरुहा मँदहा तुम्हर मारे बने सम्भल के चलत मनखे मन घलो निपट जावत हे। 


          चार दिनिया जिनगी पाके घलो मनखे मन अति करत हे, कोन जन अजर अमर रितिस त का करतिस ते। रोज अपराध बाढ़त हे। इही ल रोके बर आज रोज नवा नवा कानून कायदा बनत हे, तभो अपराध रुके के नांव नइ लेवत हे। कानून म कई प्रकार के सजा हे, फेर मनखे मन डरथे कहाँ। हाँ,, डरत उही हे जेन बपुरा मन गरीब अउ अनपढ़ हे, पुलिस ल देख घलो उँखर पोटा काँप जथे। फेर पढ़े लिखे अउ पइसा वाले म डर नाँव के चीज नइहे, अउ रहना भी नइ चाही, पर अपराध करके कानून ले मुँहजोरी बने थोरे हे। पर जमाना अइसने हे, पद पइसा के आघू कानून कायदा घलो लाचार हे। धरम करम के डर ल तो छोड़िच दे।


                जंगल तीर के एक ठन गाँव म विकास के गाड़ी पहुँच गे, लोगन मन पढ़ लिख के हुसियार होगे, स्कूल कालेज कोर्ट कछेरी सब बन गे, अब जंगल अउ गाँव कहना सार्थक घलो नइ रही गे। कागत म कानून कायदा लिखाय हे, तभो ले जीयत मनखे मन, गलती ऊपर गलती करत हे, फेर एक झन *मरे मनखे* के फांदा होगे, काबर कि उही गाँव के एक झन पढ़े लिखे आदमी ह, कोर्ट म केस करदिस, कि फलाना ह,अपन जमाना म कानून कायदा के गजब धज्जी उड़ाय हे, बन बिरवा ला अँखमुंदा काटे हे, जंगल के कतको जीव जिनावर मन ल घलो मारे हे।  कानून म ये सब करना अपराध हे तेखर सेती वोला उम्र कैद के सजा होगे। फेर वोहा कानून ले लड़े बर जिंदा नइ रिहिस, दू चार पेसी देखे के बाद जज वकील मन सजा सुना दिन। आदेश जारी होइस वोला पकड़ के जेल म डारे जाय, खोजबीन म पता चलिस कि वो तो परलोक वासी होगे हे, अब गाज गिरिस ओखर परिवार वाले मन ऊपर। बड़े बेटा आन जात म बिहाव कर डरे रहय त, वो समाज से बहिष्कृत रिहिस, ददा ले कोनो नता नही। पुलिस वोला कुछु करिस घलो नही , फेर  छोटे बेटा घर ओखर ददा के फोटू  टँगाय रहय, उही ल पुलिस मन धरिस अउ कोर्ट लेग गे। उहू अकचका गे रहय, का होवत हे कहिके, आखिर म सब चीज जाने के बाद कहिस- कि, ददा के जमाना म शिकार के चलन रिहिस, जंगल म रहय अउ पेड़ पात के सहारा जिये, अब वो जऊन करिस जीयत म सजा पातिस मरे म काबर? अउ येमा मोर का गलती हे? जवाब आइस कि तोर गलती ये हे कि तैं ओखर टूरा अस। कार्यवाही आघू बढ़िस, छोटे बेटा अपन पक्ष रखे बर वकील करिस, लाखो रुपिया खर्चा करिस, पइसा भरात गिस तारिक बढ़त गिस एक दिन ओखरो देहांत होगे। अब बारी आइस ओखर लइका मन के। ओखरो दू लइका रहय, एक झन कही दिस, मैं ददा बबा नइ माँनव, त दूसर जे ददा बबा के मया म बँधाय रहय ते केस लड़े बर तैयार होइस। आखिर म कम पइसा खर्चा अउ कमती धियान देय के कारण वो केस हारगे। अब उमर कैद के सजा अर्थ दंड म बदल गे, वो मरे आदमी ल 10,000 के जुर्माना होइस, अउ फाइल ल बन्द करे बर ओतका पइसा के माँग करिस। ओखर नाती  इती उती करके पइसा पटाइस, तब जाके वो फाइल बंद होइस। कहूँ नइ पइसा फेकतिस त बपुरा ल घलो हथकड़ी लग सकत रिहिस, कानून ए भई, अभियुक्त तो चाहिच। आज आदमी के जिनगी जतका दिन नइ चले, ओखर ले जादा दिन तो केस चलथे, तभे तो कोनो निर्दोष सजा नइ पाय, सत्य के जीत होथे, अउ सत्य बड़का, सजोर,पद पइसा वाले तीर रथे। देख आज कोनो राजा महाराजा मन के पोथी ल झन खोले, नही ते जे अपन आप ल,फलाना वीर के वंसज काहत हे,तहू कन्नी काट लिही, काबर कि वो जमाना म लड़ई झगड़ा, इकार शिकार चलते रिहिस।


              अउ कखरो फाइल खुले झन, नही ते आज के जमाना म वो मरे मनखे के कोई नइ मिलही, त ओखर आत्मा ल केस लड़े बर पड़ जाही। मरे आदमी के केस म कई साहेब सिपइहा पइसा पीट मोटा गे। जउन बबा ददा के मया म बँधाय रिहिस, तउन फोकटे फोकट पेरा गे। तभे तो कानून के डर म आज मनखे मन कोनो घटना ल, देख सृन के घलो आँखी कान ल मूंद देवत हे। इहाँ जीयत मनखे मन अत्याचार के ऊपर अत्याचार करत हे, अउ जे कुछ बोल नइ सके(मरे आदमी कस), जे कोट कछेरी ले डरथे, तेला सोज्झे फोकटे फोकट सजा मिल जावत हे। चाल बाज, पद पइसा, अउ पहुँच के जमाना हे। गलत ह सही अउ सही ह गलत, ये कोर्ट के मैदान म साबित हो जावत हे। "*नियाव के उप्पर वाले देवता शुन्न हे,त नीचे वाले देवता मन टुन्न*" पद,पइसा, मंद मउहा के भारी नशा हे। अतिक अकन कानून कायदा अउ दंड विधान होय के बाद घलो अपराध के नइ थमना, अउ सिधवा मनखे ल सजा हो जाना कानून के मुँह म तमाचा पड़े जइसे हे। कोनो सरकारी पद पाये बर अदालती कार्यवाही नइ होना चाही, फेर सरकार चलाये बर जे नेता के पद होथे, तेमा सब चलथे, चोर चंडाल,गुंडा बदमाश मन अघवा नेता कहलाथे, वाह रे कानून। कतको बड़े करम कांड होय पइसा के दम म सही हो जावत हे, बड़े बड़े अत्याचारी मन साबुत बरी हो जावत हे। का कानून के आँखी म पट्टी एखरे सेती बंधाय हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

खेती अपन सेती.......

 ......खेती अपन सेती.......

------------------------------------------------

किसन्हा के भाग मेटा झन जाय |

बांचे-खोंचे भुँइया बेचा झन जाय ||


भभकत हे चारो मुड़ा ईरसा के आगी,

कुंदरा  किसन्हा  के  लेसा  झन जाय |


अँखमुंदा भागे नवा जमाना के गाड़ी,

रेंगइया गरीबहा बपुरा रेता  झन जाय |


मूड़  मुड़ागे, ओढ़ना -चेंदरा चिरागे,

फेर सिर पागा गल फेटा झन जाय|


बधेव बधना बिधाता तीर रात-दिन,

कि सावन-भादो भर गोड.के लेटा झन जाय|


भूंजत हे भुंजनिया अऊ बिजरात हे हमला,

अवइया पिड़ही ल खेती बर चेता झन जाय |


हँसिया-तुतारी,नांगर -बइला-  गाडी़,

अब इती-उती कहीं फेका झन जाय |


साहेब बाबू बने के बाढ़त हे आस ,

देख के हमला किसानी के पेसा झन जाय|


दंऊड़े हन खेत-खार म खोर्रा पॉंव घाव ले,

कंहू बंभरी  कॉटा  तंहू ल ठेसा झन जाय |


जा अब सहर नगर म बुता कर,

मोर कस भूख मरे बर खेत कोनो बेटा झन जाय|


                 जीतेन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'

                      बाल्को( कोरबा)

कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


आलू राजा साग के, आज रूप देखाय।

किम्मत भारी हे बढ़े, हाड़ी ले दुरिहाय।।

हाड़ी ले दुरिहाय, हाथ नइ आवत हावै।

बिन आलू के संग, साग भाजी नइ भावै।

हे कालाबाजार, काय कर सकही कालू।

एक बहावै नीर, एक हाँसे धर आलू।।


होवत हावय सब जघा, आलू के बड़ बात।

का कहिबे छोटे बड़े, सबला हे रोवात।

सबला हे रोवात, सहारा जे सब दिन के।

आये आलू आज, सैकड़ा मा तक गिन के।

आलू के बिन साग, कई ठन रोवत हावय।

महँगा जम्मों चीज, दिनों दिन होवत हावय।


जादा के अउ चाह मा, बुरा करव ना काम।

होय बुरा के एक दिन, गजब बुरा अंजाम।

गजब बुरा अंजाम, भोगथे बुरा करइया।

का वैपारी सेठ, सबे मनखे अव भइया।

करव बने नित काम, राख के नेक इरादा।

बित्ता भर के पेट, काय कमती अउ जादा।


दाना पानी छीन के, झन लेवव जी हाय।

जीये खाये के जिनिस, सहज सदा मिल जाय।

सहज सदा मिल जाय, अन्न पानी सब झन ला।

मनखे झन कहिलाव, बरो के मनखेपन ला।

फैलाके अफवाह, जेन करथे मनमानी।

हजम कभू नइ होय, उसन ला दाना पानी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

कइसन कइसन मनखे हे

 कइसन कइसन मनखे हे

------------------------------------------

कोनो काटे - कोचके, ककोने   कका।

कोन जन ए मनखे मन,कोन ए कका।


का उंहला भारत माता ले,

पिंयार नइ ह?

लगथे वो दाई भारती के उद्धार बर ,

तियार नइ हे।

का भुखमरी ,गरीबी ल,

बाँधेच रिबोन घेंच म।

कोन जन कोन ए,

ए मनखे के भेस म।

बदलेल लगही चलत,

गलत परिपाटी ल।

सिधोएल लगही मिल,

बनखरहा माटी ल।

बढ़ेल लगही,

नवा-नवा सोच लेके।

फेर कतको ठोंनकत हे,

चोक्खी चोंच लेके।

कब पहिचानही,ए माटी सोन ए कका।

कोनो काटे - कोचके, ककोने   कका।

कोन जन ए मनखे मन,कोन ए कका।


कोनो करे काम बने,

टी गोड़ ल तिरईय्या हजार हे।

मनखे मनखे ल इंहा तोर मोर के,

धरे अजार हे।

झगरा-लड़ई झंझट ल,

चगलेल लगही।

सोंच  ल अपन,

बदलेल लगही।

दुनिया भर में भारत के,

नांव बगरही।

जब हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई,

एक दूसर के हाथ ल धरही।

तंय काम कर नेक।

सब साथ हे देख।

कतको के बोलइ-बखनई,तो टोन ए कका।

कोनो काटे - कोचके, ककोने   कका।

कोन जन ए मनखे मन,कोन ए कका।

  जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

   बालको(कोरबा)

     9981441795

Friday, 8 November 2024

धान पर कविता

 धान पर कविता


*किसम किसम के धान(सार छंद)*


धान कटोरा हा धन धरके, धन धन अब हो जाही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


हवै धान के नाम हजारो, कहौं काय मैं भाई।

देशी अउ हरहुना संकरित, मोटा पतला माई।

लाली हरियर कारी पढ़री, धान चँउर तक होथें।

सुविधा देख किसनहा मन हा, खेत खार मा बोथें।

मुंदरिया मरहन महमाया, मछलीपोठी मेहर।

मालवीय मकराम माँसुरी, कार्तिक कैमा कल्चर।

चनाचूर चिन्नउर चेपटी, छतरी चीनीशक्कर।।

बाहुबली बलवान बंगला, बाँको बिरसा बायर।

बिरनफूल बुढ़िया बइकोनी, बिसनी बरही माही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


पंत पूर्णिमा पंकज परहा, परी प्रसन्ना प्यारी।

पूर्णभोग पानीधिन पंसर, नाकपुरी नरनारी।

आईआर अर्चना झिल्ली, अजय इंदिरासोना।

समलेश्वरी सुजाता साम्भा, सागरफेन सरोना।

कालाजीरा कनक कामिनी, करियाझिनी कलिंगा।

साहीदावत सफरी सरना, सरजू सिंदुरसिंगा।।

स्वेतसुंदरी सादसरोना, सहभागी सुरमतिया।

गंगाबारू गुड़मा गोकुल, गोल्डसीड गुरमटिया।

बासमती दुबराज सुगंधा, विष्णुभोग ममहाही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


क्रांति किरण कस्तूरी केसर, नयना बुधनी काला।

कालमूंछ केरागुल कोड़ा, बरसाधानी बाला।

कंठभुलउ केकड़ा ककेरा, कदमफूल कनियाली।

कावेरी कमोद कर्पूरी, कामेश कुकुरझाली

रामकली राजेंद्रा रासी, राधा रतना रीता।

सहयाद्री सन सोनाकाठी, सोनम सरला सीता।

जसवाँ जीराफूल जोंधरा, जगन्नाथ जयगुंडी।

जया जयंती जयश्री जीरा, लौंगफूल लोहुंडी।

सत्यकृष्ण साठिया शताब्दी , बादशाह अन साही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


पूसा पायोनियर नन्दिनी, नाजिर नुआ नगेसर।

गटवन गर्राकाट गायत्री, खैरा रानीकाजर।

रतनभाँवरा राजेलक्ष्मी, आदनछिल्पा रामा।

तिलकस्तूरी तुलसीमँजरी, जवाँफूल सतभामा।

गाँजागुड़ा नवीन नँदौरी, काली कुबरीमोहर।

दन्तेश्वरी दँवर डॅक दुर्गा, दांगी खैरा नोहर।

हहरपदुम हंसा सन बोरो, हरदीगाभा ठुमकी।

लुचई भुसवाकोट भेजरी, लूनासंपद झुमकी।

कलम फाल्गुनी फूलपाकरी, इलायची ललचाही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

पिंयर-पिंयर करपा(गीत)

--------------------------------

आ नाच ले किसान संग म।

पाके धान के  पिंयर रंग म।


पिंयर -पिंयर हँसिया के बेंठ।

पिंयर -पिंयर   पैरा     डोरी।

पिंयर- पिंयर  लुगरा   पहिरे।

धान       लुवे            गोरी।

     पिंयर -पिंयर  पागा  बांधे।

     पिंयर -पिंयर  पहिरे धोती।

     पिंयर -पिंयर  बइला  फांदे,

     जाय किसान खेत  कोती।

खुशी        छलकत        हे,

किसन्हा    के ,अंग-अंग म।

आ नाच ले किसान संग म।

पाके धान के  पिंयर रंग म।


पिंयर  -  पिंयर     धुर्रा        उड़े,

पिंयर  -  पिंयर    मटासी   माटी।

पिंयर  -  पिंयर पीतल बँगुनिया म,

मेड़   म   माड़े    चटनी  -  बासी।

     पिंयर -पिंयर  बंभरी  के फूल,

     पिंयर -पिंयर  सुरुज  के घाम।

     पिंयर -पिंयर    करपा    माड़े,

     किसान पाये महिनत के दाम।

सपना   के    डोर     लमा,

उड़ जा बइठ   पतंग    म।

आ नाच ले किसान संग म।

पाके धान के  पिंयर रंग म।


पिंयर -पिंयर दिखे भारा,

पिंयर -पिंयर भरे गाड़ा।

पिंयर -पिंयर लागे खरही,

पिंयर -पिंयर दिखे ब्यारा।

           पिंयर -पिंयर छुही मा,

           लिपाहे  घर  के कोठ।

           पिंयर -पिंयर फुल्ली पहिरे,

           हाँसे    नोनी    मन  पोठ।

पिंयर - पिंयर बिछे पैर मा,

कूदे लइका मन उमंग मा।

आ नाच ले किसान संग म।

पाके धान के  पिंयर रंग म।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


करजा छूट देहूँ लाला(गीत)


धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।

तँय संसो झन कर,मोर मन नइहे काला।


मोर थेभा मोर बेटा बेटी, दाई ददा सुवारी।

मोरेच जतने खेत खार,घर बन अउ बारी।

येला छोड़ नइ पीयँव,कभू मैंहा हाला।

धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।


तैंहा सोचत रहिथस,बिगाड़ होतिस मोरे।

घर बन खेत खार सब,नाँव होतिस तोरे।

नइ मानों कभू हार,लोर उबके चाहे छाला।

धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।


जब जब दुकाल पड़थे,तब तोर नजर गड़थे।

मोर ठिहा ठउर खेत ल,हड़पे के मन करथे।

नइ आँव तोर बुध म,झन बुन मेकरा जाला।

धान  लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।


भूला जा वो दिन ला,जब तोर रहय जलवा।

अब जाँगर नाँगर हे,नइ चाँटव तोर तलवा।

असल खरतरिहा ले,अब पड़े हे पाला।

धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

धान लुवाई- सार छंद


पींयर पींयर पैरा डोरी, धरके कोरी कोरी।

भारा बाँधे बर जावत हे, देख किसनहा होरी।।


चले संग मा धरके बासी, धान लुवे बर गोरी।

काटय धान मढ़ावय करपा, सुघ्घर ओरी ओरी।


चरपा चरपा करपा माढ़य, मुसवा करथे चोरी।

चिरई चिरगुन चहकत खाये, पइधे भैंसी खोरी।


बड़े बगुनिया मा बासी हे, चटनी भरे कटोरी।

बासी खाये धान लुवइया, मेड़ म माड़ी मोड़ी।


भारा बाँधे होरी भैया, पाग मया के घोरी।

लानय भारा ला ब्यारा मा, गाड़ा मा झट जोरी।


हाँस हाँस के सिला बिनत हें, लइकन बोरी बोरी।

अमली बोइर हवै मेड़ मा, खावत हें सब टोरी।


बर्रे बन रमकलिया खोजे, खेत मेड़ मा छोरी।

लाख लाखड़ी जामत हावय, घटकत हवै चनोरी।


आशा के दीया बन खरही, बाँटे नवा अँजोरी।

ददा ददरिया मन भर झोरे, दाइ सुनावै लोरी।


महिनत माँगे खेत किसानी, सहज बुता ए थोरी।

लादे पड़थे छाती पथरा, चले न दाँत निपोरी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐


Tuesday, 29 October 2024

अतंर्राष्ट्रीय चमचागिरी दिवस म

 अतंर्राष्ट्रीय चमचागिरी दिवस म


चमचागिरी- लावणी छंद


एखर ओखर खास बने बर, जीभ लमा के करबे का।

सरग सिंहासन हावै रीता, बता आज तैं मरबे का।।


स्वारथ अउ देखावा खातिर, काबर चम्मच बनगे हस।

मनखे हो के स्वाभिमान खो, रब्बड़ जइसे तनगे हस।।

चापलुसी के चरम लांघ के, आन बान सत चरबे का।

एखर ओखर खास बने बर, जीभ लमा के करबे का।।


पद पइसा धन बल वाले के, तेवर तोरे सेती हे।

नेकी धर्मी सतवादी के, परिया परगे खेती हे।।

आदर देना अलग बात ए, चमचा बनके सरबे का।

एखर ओखर खास बने बर, जीभ लमा के करबे का।


असल गुणी ज्ञानी मनखे मन, चम्मच एको नइ पोसे।

चमचा गिरी करइया मन ला, सदा जमाना हा कोसे।।

कखरो आघू पाछू होके, भव सागर ले तरबे का।

एखर ओखर खास बने बर, जीभ लमा के करबे का।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


जीभ लमाये के का जरूरत


जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।

शोभा देय नही चम्मच हा, कलम दवात साथ मा।।


मंच माइक सम्मान के खातिर, कलमकार नइ भागे।

कला गला के दम मा छाये, उही शारद पूत लागे।।

शब्द जोड़ के फूल बनालव, काँटा वाले पाथ मा।

जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।


ताकत हौ मुँह कखरो काबर, जानव कलम के ताकत।

ये दुनिया के रथ ला आजो, साहित्य हावय हाँकत।।

मुड़ी उँचाके कलम चलावव, झन अरझो गेरवा नाथ मा।

जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।


सूर कबीरा तुलसी जायसी, आजो अजर अमर हे।

जीभ लमाके नाम कमइया, नइ बाँचे स्वार्थ समर हे।।

सेवा मान के साहित गढ़लव, सजही ताज माथ मा।

जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


कलमकार न बने


जो चाटुकार है वो कलमकार न बने।


बस प्रेमपत्र बन रहें, अखबार न बने।।1


जिनको नही है कद्र, अपने आन बान की।


वो देश राज गाँव के, रखवार न बने।।2


चुपचाप खीर खाने की,आदत है जिनकी,


वो बंद रहे बस्ते में, बाजार न बने।।3


धन हराम के हो, किसी के तिजोरी में।


तो फाँस गले के बने, उपहार न बने।।4


वीर शिवा जी नही, न क्षत्रसाल है।


भूषण समझ के खुद को, खुद्दार न बने।।5


स्वार्थ से सने हुये जो, रहते हैं सदा।


औरो का मैल धोने, गंगा धार न बने।।6


झूठ का पुलिंदा, बाँधने वाले सावधान।


सच होश उड़ा देंगें, होशियार न बने।।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को,कोरबा(छग)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


@@@कलमकार@@@


कलमकार  हरौं, चाँटुकार  नही।

दरद झेल सकथौं,फेर मार नही।


दुख के दहरा म,अन्तस् ल बोरे हँव।

अपन लहू म,कलम ल चिभोरे हँव।

मैं तो मया मधुबन चाहथौं,

पतझड़ अउ उजार नही-----------


बने बात के गुण,गाथौं घेरी बेरी।

चिटिक नइ सुहाये,ठग-जग हेरा फेरी।

सत अउ श्रद्धा मा,माथ नँवथे बरपेली,

फेर फोकटे दिखावा स्वीकार नही-------


हारे ला ,हौंसला देथौं मँय।

दबे स्वर ला,गला देथौं मँय।

सपना निर्माण के देखथौं,

चाहौं  कभू उजार नही---------


समस्या बर समाधान अँव मैं।

प्रार्थना आरती अजान अँव मैं।

मनखे अँव साधारण मनखे,

कोनो ज्ञानी ध्यानी अवतार नही-------


फोकटे तारीफ,तड़पाथे मोला।

गिरे थके के संसो,सताथे मोला।

जीते बर उदिम करहूँ जीयत ले,

मानौं कभू हार नही-------------


ऊँच नीच भेदभाव पाटथौं।

कलम ले अँजोरी बाँटथौं।

तोड़थौं इरसा द्वेष क्लेश,

फेर मया के तार नही----------


भुखाय बर पसिया,लुकाय बर हँसिया अँव।

महीं कुलीन,महीं घँसिया अँव।

मँय मीठ मधुरस हरौं,

चुरपुर मिर्चा झार नही----------


हवा पानी अगास पाताल।

कहिथौं मँय सबके हाल।

का सजीव का निर्जीव मोर बर,

मँय हौसला अँव,हँथियार नही-------


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

तइहा समय म देवारी तिहार के जोरा-खैरझिटिया

 तइहा समय म देवारी तिहार के जोरा-खैरझिटिया


             तइहा समय म चाहे कोनो परब तिहार होय, गांव के गांव ओखर जोरा म लग जावय। पहली सबके घर माटी खपरैल के होय तेखर सेती ओखर देख रेख बड़ जरूरी रहय। तिहार बार म लिपई पोतई, रोटी पीठा, सगा पहुना  आदि आदि जमे नेंग जोग, तन मन धन ले होवय, फेर बड़खा तिहार देवारी के जोरा करई के बाते अलग हे, जे दशहरा के बाद पाख भर ले घलो जादा दिन ले चले।  काबर कि चौमासा लगे के पहली घर के कोठ ल बरसा के पानी ले बचाय बर चारो मुड़ा झिपारी बाँधे जाय,तेला दशहरा मानके पानी बादर कम होय के कारण हेरेल लगे। तेखर सेती छाभना मूँदना लीपना पोतना देवारी के खास बूता रहय।


                   चार महीना पानी बादर म  घर के बाहिर का भीतर के घलो हालत खस्ता हो जावय। ते पाय के गाँव भर अपन अपन घर ल छाभ मूँद के लिपई पोतई इही देवारी तिहार म करे। देवारी तिहार के जोरा म घर के संगे संग कोठार बियारा ल घलो सिधोय बर लगे, काबर कि देवारी के बाद धान लुये के लइक हो जाय, अउ ओखर मिंजई कोठारे म होवय। कोठार बियारा के काँदी ल छोल छाल के बराबर पाटे बर माटी, कुधरील लाके, बढ़िया मता के छाभेल लगे।      


                   कोठ बियारा छाभे बर माटी मताये के घलो अलगे आंनद रहय। पहली माटी ल कुचर के गोलाकार  बनाके भिंगोय जाय। भींगे के बाद ओमा पिरोसी, कोदो पैरा या फेर अरसी के ठेठरा(चीला) ल मिलाके मनमाड़े खूँदे जाय। माटी म पैरा, पिरोसी मिलाके मताय ले छभे के बाद चटके(दरार) के समस्या नइ होत रिहिस। जादा अकन  माटी मताय बर बइला के उपयोग घलो होवय। मते के बाद राफा म छोपियाके गोलाकार सँकेल के, मते माटी ल छाभे मूँदे के काम म लाये जाय। कोठ या  फेर कोठार बियारा ल छाभे के बाद गोबर म बरण्डना घलो जरूरी रहय, अइसन करे ले छभे माटी के छोटे मोटे दरार मूंदा जाय, अउ लीपे पोते के लइक बराबर हो जाय। ये सब बूता सरलग घर परिवार जे जमो छोटे बड़े सदस्य मन मिलके करत रहय। टूटे फूटे कप सासर के टुकड़ा ल, दुवार अँगना छभात बेरा गड़ियाके फूल बनाये के घलो चलन रिहिस, जे देखे म बड़ सुघ्घर लगे। कोनो देखे होहू त सुरता आवत घलो होही, गोलाकार, चौकोर फूल मन मोहे।


             पड़ड़ी छूही, पिंवरी छूही, घेरू रंग अउ टेहर्रा रंग पोतई म लगे। परवा के खाल्हे पड़ड़ी छूही तेखर बाद आधा या आधा ले कमती कोठ म पिवरी छूही पोते जाय, अउ बीच म घेरू रंग के पट्टी अउ फूल।  पोते बर टेहर्रा रंग घलो चले। घर के आघू भाग के कोठ अउ मुख्य दीवाल टेहर्रा रंग म शोभा पाय। आज कस ब्रस पहली कमती रिहिस, ठूँठी बाहरी, नही ते जड़ के कूची पोते के काम आय। लकड़ी के दरवाजा मन म सकउ हिसाब कोनो मन पेंट त कतको मन तेल चुपरबके चमकावय।


             पोतई लिपई के बाद चालू होय नोनी अउ बाबू मनके कलाकारी। घर के कोठ म बाबू मन रंग रंग के फूल, फ़ोटो अउ नोनी मन अँगना दुवार म रंगोली बनाये के जोरा करे। पाँच सात किसम के रंग ल कप म घोर के राहेर काड़ी या फेर दतवन ल ब्रस बनाके नोनी बाबू मन कम्पास बॉक्स के प्रकार म पेंसिल फँसा के गोल गोल फूल बनाये, अउ वोला रंगे। कतको मन रंगोली लेय त कतको मन घुरहा पथरा के बुरादा म रंग मिलाके, कई कलर के रंगोली बनाय। घर के दीवाल म शुभ दीपावली अउ शेरो सायरी घलो लिखे। टीना के डब्बा ल छेद के वोमा कनकी पिसान भरके चँउक घलो पूरे। रंगोली बनई आजो जारी हे, फेर कोठ म कलाकारी कमती होगे हे,संग म जुगाड़ के समान के जघा रेडीमेंट चीज चलत हे।


                    देवारी के दीया के संग गियास घलो घरो घर रोज बरे।  लोगन मन एक दूसर ले ऊंच ऊंच गियास बनाये।गियास बनाय बर, बड़खा बाँस, तोरण ताव, डोरी अउ दीया रखे बर एक प्लेट लगे। प्लेट ल झिल्ली के तोरन म सजाके, डोरी के सहारा दीया बार के ऊपर चढ़ाये उतारे जाय। गियास ऊंच म रिगबिग रिगबिग बरत, मन मोहे। देवारी तिहार म जमे कोती चिक्कन चाँदुर दिखे, सार्फ़ सफाई, साज सज्जा सहज मन मोहे।


                   देवारी म बाजार हाट के का कहना, दीया,पुतरी कपड़ा लत्ता, पटाका, खई खजानी, साज सज्जा के समान चारो मुड़ा बेचाय। कतको लइका मन टीकली फटाका फोड़े बर बॉस के बंदूक घलो बनाये। राउत मन गाय बइला के गला म बाँधे बर सोहई बनाय बर लग जाय, त दफड़ा दमउ वाले मन बाजा-रूँगी ल सजाय बर। काँदा खोम्हड़ा के जोरा घलो तिहार के अकताही होय। देवारी के ये सब जोरा ले घर द्वार साफ स्वक्छ होके चमचम चमचम चमके, अउ लइका सियान मनके कई किसम के कला सामने आय, आज ये सब  बस सुरता के सन्दूक म धराये हे।


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)

हाय रे वाल पेपर

 हाय रे वाल पेपर


               पोतई लिपई छभई मुँदई बड़ महिनत लगथे देवारी बुता म, फेर आज नवा जमाना म वाल पेपर के एंट्री सबे चीज ले छुटकारा देय के ताकत रखथे। साज सज्जा के इही क्रम म, अमेजन,फ्लिपकार्ट------  म वाल पेपर छाँटत बेरा,जुन्ना सुरता मन म आगे।


               वाल केहे त दीवाल अउ पेपर केहे त पेपर, माने दीवाल म चिपकाय वाले पेपर। येमा "वाल पेपर" कहे ले भारी वजन बढ़ जावत हे, फेर वाल माने दीवाल,,  ठेठ भाँखा म कहन त कोठ---। कुछ सुरता आइस? हॉं कोठ अउ पेपर काहत हँव। एक जमाना रिहिस जब माई खोली, परछी, रसोई जमे जघा देख देख के कोठ म पेपर ठेंसाय रहय, फेर सो पिस बर नही ओखरो कारण रहय। हाड़ी खोली धुँवा म झन रचे, खूँटी म टँगाय कपड़ा म छूही झन रचे आदि आदि कारण।  हमर कस नवा लइका मन अपन अपन खोली म हीरो हीरोइन के फोटू वाले पेपर ल, सो पीस बरोबर घलो चिपकावन। कुरिया, परछी बने घलो दिखे अउ ओन्हा कोठ मइलाय घलो नही। शनिवार अउ इतवार के ज्यादातर रंगीन पेपर आवय। रतिहा होय के पहली दुकानदार ल चार आना देके, मैं खुद घर लाके कतको बेर अपन कुरिया म रंगबिरंगी  पेपर लगाये हँव। हो सकथे,आपो मन लगाये होहू, फेर रंगीन अउ सादा पेपर आपके मिजाज अउ उपलब्धता अनुसार होही।


                        खैर छोड़व, तइहा के बात ल बइहा लेगे। आज चकाचौध के दुनिया म  कोठ(वाल) बर, रंग रंग के पेंट, पुट्टी, टाइल्स, मार्बल आगे हे। इँखर माँग घलो भारी हे, अउ मोटहा रकम घलो तो ढिल्ला करे बर लगथे। फेर आज तुरते ताही अच्छा देखाय बर, वाल पेपर के माँग भारी बढ़त जावत हे, पेंट पुट्टी टाइल्स मार्बल कस मनमोहक घलो दिखथे। हाँ भले जादा टिकाउ नइ रहे, फेर टिकई ल कोन देखत हे, आहा जिनगीच ह, नइ टिकाऊ हे त का पेंट, पुट्टी अउ पेपर?  कथे दुनिया गोल हे, त दुनिया म होवइया जमे चीज घलो घूमत रहिथे, चीज उही रथे, रूप या फेर नाम बदल जाथे। इही क्रम म वाल  पेपर घलो हे, कोठ के जघा सीमेंटेड दीवाल अउ पेपर के जघा रंग रंग के स्टिकर अउ डिजाइनिंग पेपर। अखबारी पेपर के जघा इही वाल पेपर छाये हे, चाहे बेडरूम होय, किचन या फेर बैठक। येमा किचन म चपके पेपर तेल, फूल के दाग ले बचे बर हो सकथे, फेर हाल, बैठक, बेडरूम आदि म सो पीस बरोबर ही मिलथे। वर्तमान म वाल पेपर के माँग भारी बढ़त जावत हे, काबर कि पोते लीपे के झंझट नही अउ सस्ता के सस्ता, टिकाऊ ल कोन देखत हे। महँगा वाल पेपर के लाइफ घलो रथे। पोताई लिपाई बर कलर, बनिहार तेखर बाद साफ सफाई आदि के झंझट वाल पेपर म नइ रहय, कहे के मतलब हर्रा लगे न फिटकरी अउ रंग चढ़े चोक्खा। 


                 एक समय लिखो फेको के अलग से पेन आय, जेमा रिफिल भरा के दुबारा नइ लिखत रेहेन, फेर आज सबे पेन लिखो फेको होगे हे, बिरले लिखइया रिफिल डाल के अउ बउरत होही। सस्ता अउ लिखो फेको के अत्तिक पावर  हे कि कोनो भी बने चीज के उपलब्धता अउ कीमत कम होय ले उहू चीज घलो लिखो फेको हो जथे। मोर केहे के मतलब ये हे कि मनखे के रुझान अइसने हे, यूज एंड थ्रो वाला। आसपास सब देखते हन ,, चीज बस का नत्ता रिस्ता घलो इही म सवार होवत हे,,,। रुझान देखत लगथे कि, अवइया बेरा म वाल पेपर गांव शहर सबे कोती छा जही। रंग रोगन बाहरी बाउंड्री भर म होही। छुही- माटी, गोबर-पानी आदि तो गय होगे, अवइया बेरा डिस्टेंम्पर,पेंट-ब्रस,पोतइया के धंधा घलो मंदा हो सकथे। समय सुरसा ताय कब कोन ला खा दिही, का पता?


                         आज के सोच अउ समय ल देखत,कहूँ वाल पेपर कस चकाचोंध अउ चरदिनिया चीज कोती सबे के रुझान चल देही, त पेंट पुट्टी टाइल्स कस टिकाऊ अउ मूलभूत चीज के मरना हो जही। ये जमाना के सोच चिरहा कथरी म चमचमावत खोल धराये वाला हे। कतको जघा बिना लीपे पोते घलो वाल पेपर चिपके दिखथे, ये थोरे जुन्ना जमाना के कोठ हरे,जेमा पोते लीपे के बाद ही अखबारी पेपर चिपके। आज  घर तो घर मनखे मनके रहन सहन चाल चलन घलो वाल पेपर बरोबर होते जावत हे, जे बाहिर ले चमचमावत हे, फेर भीतर ल कोन जाने पोताय लिपाय हे,कि नही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

दुमदार दोहा- दाना दानव के असन, कहर झने बरसाय। दाना दाना खाय बर, कहूँ कोति झन आय। खेत धरे हावय दाना। ऐ दाना चल दुरिहाना।। जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" बाल्को, कोरबा(छग)

 दुमदार दोहा-


दाना दानव के असन, कहर झने बरसाय।

दाना दाना खाय बर, कहूँ कोति झन आय।

खेत धरे हावय दाना।

ऐ दाना चल दुरिहाना।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)



दुमदार(पुछीवाले) दोहा


चलय बेल बॉटम गजब, तइहा समय म मित्र।

मिलिस रतनपुर के खिचे,अड़बड़ जुन्ना चित्र।।

घुँस जाय दू झन के गोड़।

आज के बातेच ल छोड़।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"



दुमदार दोहा


सबों खूँट भक्कम दिखय,आलू प्याज पताल।

तभो बढ़े बड़ भाव हे, पइधें हवँय दलाल।।।

करैं दलाल मन मनमानी।

फूटत नइहें कखरो बानी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


बाल्को, कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी कविताओं में दीपावली"*

 *"छत्तीसगढ़ी कविताओं में दीपावली"*


                            कातिक अमावस्या के होवइया दीपावली तिहार हमर छत्तीसगढ़ के बड़का तिहार मा एक हे, जेखर जोरा बर जम्मो छत्तीसगढ़िया मन पाख भर पहली ले लग जथें। ये तिहार मा बरसा के पानी मा चोरो बोरो होय घर-कोठा, बारी-बखरी, गली-खोर जम्मों साफ सफाई होके, लीपा पोता के मुचमुच मुचमुच करत दिखथें। छोटे बड़े जम्मों मनखे अपन अपन घर अंगना के सुघराई ला बढ़ाये बर उछाह मा बूता करथें। ये तिहार के आरो पाके बरसा लगभग थम जाय रथे, जाड़ दस्तक देय बर लग जथे,खेत खार के पके धान पान छभाये मुंदाये कोठार मा सकलाय बर हवा संग दोहा पारके नाचत दिखथे। धनतेरस, नरक चौदस, सुरहोत्ती, गोवर्धन पूजा अउ भाई दूज ये प्रकार के देवारी पांच दिन के परब होथे। उज्जर उज्जर घर दुवार, नवा नवा ओनहा कपड़ा, किसम किसम के रंग- रंगोली, दाई लक्ष्मी अउ गोवर्धन महराज के घरों घर डेरा, आगास मा बरत गियास, रिगबिगावत दीया, फटाफट फूटत फटाका, दफड़ा दमउ मा मनमोहक राउत भाई मन के दोहा, गौरा गौरी अउ सुवा गीत, सबके मन ला मोह लेथे। अइसन मा कलमकार कवि मन ये समा ला अपन शब्द मा बाँधे बिना कइसे रही सकथे। आवन कवि मन के गीत कविता मा देवारी तिहार के दर्शन करत, ये पावन परब के आनन्द लेवन–


              कवि मनके कलम ले निकले आखर वो बेरा ला परिभाषित करथे। पड़ोसी देश मन संग छिड़े युध्द के आरो लेवत *जनकवि कोदूराम दलित जी*, देश के रक्षा खातिर बलिदान दें चुके, सैनिक मन ला देवारी तिहार मा अपन श्रद्धा सुमन अर्पित करत लिखथें-


आइस सुग्घर परब सुरहुती अउ देवारी


चल नोनी हम ओरी-ओरी दिया बारबो


जउन सिपाही जी-परान होमिन स्वदेश बर


पहिली उँकरे आज आरती हम उतारबो।


           देवारी तिहार के दिन राउत भाई मन घरो घर जोहार करत, गोधन ऊपर सोहाई बाँधत दफड़ा दमउ मा दोहा पारथे, उही दोहा मा देशभक्ति के रंग घोरे के किलौली करत *जनकवि कोदूराम दलित जी*, राउत भाई मन ले कहिथें–


राउत भइया चलो आज सब्बो झन मिलके


देश जागरण के दोहा हम खूब पारबो


सेना मा जाये खातिर जे राजी होही


आज उही भइया ला हम मन तिलक सारबो।


                       हमर जम्मो परब तिहार सुख समृद्धि के कामना अउ दया मया के संगे संग जिनगी जिये के तको सीख देथे, तभे तो अंजोरी बगरावत दीया ला देख के *डाँ पीसी लाल यादव जी*  लिखथें-


दिया ले सिखो मनखे


पीरित गीत लिखो मनखे


तन-मन ले एक रूप


सिरतोन म दिखो मनखे।।


                  देवारी के सुघराई अउ लइका मन के उछाह उमंग ला अपन शब्द मा बाँधत *मोहन डहरिया जी* लिखथें-


आगे देवारी के दिन रे संगी


गली-गली उजियारा हे


फोरत लइका फटाफट फटाका


सबो के मन उजियारा हे


                  सुरहोत्ती के दिन घरो घर माता लक्ष्मी के पूजा होथे, फेर कुछ मनखे मन ये दिन जुवा चित्ती तको खेलत दिखथें, जे बने बात नोहे, उही ला उजागर करत, मनखे मन ला अइसन बुराई ले दूर रहे बर काहत *राजेश चौहान* जी लिखथें-


जुआ अउ चित्ती के मेटव बुराई


एमा नइये सुन काखरो भलाई


ऐई ए नरक दुवारी


सुन सँगवारी,सुन सँगवारी,आगे देवारी,आगे देवारी


           लगभग हमर सबो परब तिहार खेती किसानी ले जुड़े  हे, खेती बने बने होथे तभे तिहार बार रंग पकड़थे। अंकाल दुकाल तिहार बार के रंग ला फीका कर देथे। देवारी उछाह मंगल के परब आय, तभो अंकाल दुकाल के बेरा मा कभू कभू मुड़ धरके,मन मार बइठे रहे बर पड़ जथे, उही दुख ला देखत, *दानेश्वर शर्मा जी अउ सुशील यदु जी* कहिथें-


कइसे दसेरा अउ कइसे देवारी


रिसागे हम्मर भुइँया महतारी।


कइसे के लइका बर कुरता सियाबो


कइसे फटाका-दनाका चलाबो


*(दानेश्वर शर्मा जी)*


बादर घलो दगा देइस अब,आँखी होगे सुन्ना


लइका मन करहीं करलाई,हो जाही दुख दुन्ना


*(सुशील यदु जी)*


             


        वइसे तो देवारी तिहार के पांचों दिन धूम रथे, तभो शहर मा सुरहोती ला ता गांव मा गोवर्धन पूजा(अन्न कूट या देवारी) ला जोर शोर ले मनाये जाथे, गोधन महिमा बतावत *दुष्यन्त कुमार साहू* जी लिखथें-


देवारी तिहार म गाँव भर, गऊ माता के पूजा घलो करथन


पूजापाठ के बाद खिचड़ी खवाथन, पाछू हमन जूठा खाथन।।


                 मया मीत सुख समृद्धि के रद्दा मा कतको बुराई जेन रीत बनके जबरदस्ती बइठे रथे, तेन बाधक होथे। मनखे मन नेंग जोग हरे कहिके वो बाट मा रेंगत घलो दिख जथे। वइसने एक बुराई आय भरे सुरहोती मा जुवा के फड़ जमना, उही बात ला वरिष्ट कवि अउ छंदकार *अरुण निगम जी* सोरठा छंद मा कहिथें-


सुटुर-सुटुर दिन रेंग, जुगुर-बुगुर दियना जरिस।


आज जुआ के नेंग, जग्गू घर-मा फड़ जमिस।।


                 देवारी तिहार बर हनहुना धान पक के कोठार बियारा मा, दाई लक्ष्मी बनके आय बर लग जथे, उही ला *बरवै छंद मा,आशा देशमुख* जी लिखथें-


सोन बरोबर चमके,खेती खार।


खरही गांजे भरगे ,हे कोठार।


अन धन गउ मा करथे ,लक्ष्मी वास।


ये तिहार मन भरथे, अबड़ मिठास।


             दीया माटी के होके घलो अंजोर बगराथे, मनखे काया घलो माटी आय अउ आखिर मा माटी मा मिलना हे, अइसने आध्यात्म के बाती बरके दया मया के जोत मा, कुमत,इरसा,द्वेष रूपी अँधियारी ला दुरिहावत *अजय अमृतांशु जी* लिखथें-


माटी के दीया बरत,बड़ निक लागत आज।


देवारी आ गे हवय,जुरमिल करबों काज।।


जुरमिल करबों काज, तभे खुशहाली लाबों।


सुखी रहय परिवार,मया ला हम बगराबों।


आवव मिलके आज,कुमत के गड्ढा पाटी।


आघू पाछू ताय, सबों ला होना माटी।


                ज्यादातर तिहार बार मा मनखे मन अपन हैसियत के हिसाब ले जोरा जाँगर करत चीज बस खरीदथें, फेर कतको झन देख देखावा अउ लालच मा घलो आ जथे, भेदभाव के फेर मा पड़ जथे, उही ला देखत *अनुज छत्तीसगढ़िया जी* लिखथें-


करौ दिखावा झन तुम संगी, देवारी के नाम।


चीज अगरहा अब झन लेवव,जेकर नइ हे काम।। 


मया बाँट के देवारी मा, भेदभाव लौ टार।


बारौ दीया ओखर घर मा, जेन हवय लाचार।। 


              पाँच दिन के पावन परब के वर्णन करत *सरसी छंद मा,संगीता वर्मा* जी लिखथें-


धन तेरस मा यम के दियना,जुरमिल सुघर जलाव।


चौदस मा सब बड़े बिहनिया,चंदन माथ लगाव।।


माँ लक्ष्मी के कृपा बरसही, करव आरती गान।


अन्न कूट भाई दूज परब, दिही मया धन धान।


        हमर कोनो भी परब तिहार के संग कोई ना कोई धार्मिक आस्था जुड़े रथे, वइसने देवारी तिहार मा भगवान राम चौदह बछर वनवास काट के अयोध्या लौटे रिहिस, अउ जम्मो नरनारी मन वो रतिहा ला दीया बार के उजराये रिहिस, उही प्रसंग मा *दुर्मिल सवैया के माध्यम ले गुमान प्रसाद साहू* जी कहिथे-


सजगे अँगना घर खोर गली सब मंगल दीप जलावत हे।


बनवास बिता रघुनंदन राम सिया अउ लक्ष्मण आवत हे।


खुश हे जनता नगरी भर के प्रभु के जयकार लगावत हे।


सब देव घलो मन फूल धरे प्रभु के पथ मा बरसावत हे।। 


          रिगबिगावत दीया गली घर खोर के अँधियारी ला दुरिहाथे, मन के अँधियारी ला भगाय बर ज्ञान जे जोत जलाये बर पड़ते,देवारी के परब ला इही भाव मा देखत *विजेन्द्र वर्मा जी, सरसी छंद मा कहिथे*-


परब आय हे सुघर देवारी,बाँटव सब ला प्यार।


परहित सेवा मा अरपन हो,जिनगी के दिन चार।।


जले ज्ञान के दीप सुघर जी,होय जगत उजियार।


येकर लौ मा सबो जघा ले,भागय द्वेष विकार।।


             सुरहोती मा माता लक्ष्मी धन दौलत संग दया मया अउ राग रंग के बरसा करथे। मया दया के पाग सबर दिन लाड़ू कस आपस मा बंधाये रहे, इही कामना करत *कुंडलिया छंद मा मनीराम साहू 'मितान'* जी लिखथें-


सुरहुत्ती मा सुर मिलय, मिलय सबो के राग।


चिटिक कनो छरियाय झन, रहय मया के पाग।


रहय मया के पाग,करी के लाड़ू जइसन।


मिलय खुशी भरमार,नँगत उत्साह भरे मन।


लक्ष्मी आय दुवार, सुरुज सुख लावय उत्ती


धन दौलत शुभ लाभ,दून देवय सुरहुत्ती।


                सुरहोती के दिन जगमगावत रतिहा ला शब्द मा पिरोवत *महेंद्र बघेल जी* लिखथें-


सुरहुत्ती शुभ रात मा, चहुॅंदिश होय ॲंजोर।


रिगबिग ले दीया बरे, गमकय ॲंगना खोर।


          परब तिहार,धर्म-आस्था के संगे संग संस्कार अउ संस्कृति के तको संवाहक होथे। देवारी मा छोटे बड़े नोनी मन कोस्टउँहा लुगरा पहिरे,गोल घेरा बनाके,थपड़ी पीटत, सुवा नाचथें, उही ला *जगदीश "हीरा" साहू* जी अउ *अरुण कुमार निगम जी* लिखथें-


नाचत हे सबझन सुआ, एक जगा जुरियाय।


लुगरा पहिरे लाल के, देखत मन भर जाय।।


देखत मन  भर जाय, सबो झन मिलके गावँय।


सुग्घर सबके राग, ताल मा ताल मिलावँय।।


*(जगदीश हीरा साहू)*


तरि नरि नाना गाँय, नान-नान नोनी मनन। 


सबके मन हरसाँय, सुआ-गीत मा नाच के।।


*(अरुण कुमार निगम)*


             सुवा के संगे संग गांव गांव मा बैगा बैगिन घर अउ गौरा चौरा मा महराज इसर देव के बिहाव संग गौरी गौरा गीत सहज सुने बर मिल जथे उही ला देखत अमृतध्वनि छंद मा *बोधनराम निषादराज* जी लिखथें-


गौरी गौरा के परब, सुग्घर  रीत  रिवाज।


परम्परा अद्भुत बने, छत्तीसगढ़ी साज।।


छत्तीसगढ़ी,साज सजे जी,देखव सुग्घर।


शंकर बिलवा,गौरा बनथे,गौरी उज्जर।।


रात-रात भर,बर बिहाव के,सजथे चौरा।


होत बिहनिया,करे विसर्जन,गौरी गौरा।।


              परब तिहार दया मया के संगे संगे मनखे ला जन्मभूमि ले घलो जोड़े के बूता करथे। देवारी तिहार के आरो पाके आन राज मा कमाए खाय बर गय जम्मो मनखे मन अपन गाँव मा सकलाये बर लग जथे, उही ला *परमानंद बृजलाल दावना* जी दोहा पारत कहिथें-


गांव छोड़ परदेस मा ,  बसे रहे सब आय।


अपन मयारू गांव मा अंतस के सुख पाय।।


                  


          आज मनखे के मन तिहार बार मा घलो स्वार्थ के घोड़ा मा चढ़े लाभ हानि के फेर मा पड़े देख देखावा अउ देखमरी ला पोटारे दिखथें, पहली कस निःस्वार्थ मया-दया अउ सुनता दुर्लभ होवत जावत हे, उही बात के चिंता करत *जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"* लिखथें-


अँगसा-सँगसा म दीया,कोन जलाय?


बरपेली   जिया  , कोन    मिलाय?


कोन हटाय, काँदी  -  कचरा    ल?


कोन  पाटे,खोंचका -  डबरा     ल?


मनखे के मन म,हिजगा पारी हमात हे।


देख  देवारी,दिनों - दिन , दुबरात    हे।


                उक्त लेख मा कवि मन के छोट छोट पंक्ति रखे के उदिम करे हँव, अउ जादा रस बर पूरा पूरा कविता जुगाड़ करके पढ़ सकत हव। ता आवन आसो देवारी मा तेल बाती के दीया ला तो जलावन ही,संगे संग अपन मन मा मानवता, सत,सुम्मत अउ सद्भावना के दीया ला जलावन,मया दया के तेल ले।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को,कोरबा(छग)


साभार- गुरुदेव अरुण निगम जी, छंद खजाना


देशबन्धु (मड़ई) में प्रकाशित

पत्रिका, पहट में प्रकाशित

देवारी मा पानी(तातंक छंद)

 देवारी मा पानी(तातंक छंद)


रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा।

कतको के सपना पउलागे,अइसन आफत आरी मा।


हाट बजार मा पानी फिरगे,दीया बाती बाँचे हे।

छोट बड़े बैपारी सबके,भाग म बादर नाँचे हे।

खुशी झोपड़ी मा नइ हावै,नइहे महल अटारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा।


काम करइया मनके जाँगर,बिरथा आँसों होगे हे।

बिना लिपाये घर दुवार के,चमक धमक सब खोगे हे।

फुटे फटाका धमधम कइसे,चिखला पानी धारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा----।


चौंक पुराये का अँगना मा,काय नवा कपड़ा लत्ता।

काय सुवा का गौरा गौरी,तने हवे खुमरी छत्ता।

काय बरे रिगबिग दियना हा,कातिक केअँधियारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा-----।


पाके धान के कनिहा टुटगे,कल्हरत हे दुख मा भारी।

खेत खार अउ रद्दा कच्चा,कच्चा हे बखरी बारी।

मुँह किसान के सिलदिस बादर,भात ल देके थारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा-----।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

कुंडलियाँ छंद- दर्जी अउ देवारी

 कुंडलियाँ छंद- दर्जी अउ देवारी


देवारी के हे परब, तभो धरे हें हाथ।

बड़का धोखा होय हे, दर्जी मन के साथ।

दर्जी मन के साथ, छोड़ देहे बेरा हा।

हे गुलजार बजार, हवै सुन्ना डेरा हा।

पहली राहय भीड़, दुवारी अँगना भारी।

वो दर्जी के ठौर, आज खोजै देवारी।1


कपड़ा ला सिलवा सबें, पहिरे पहली हाँस।

उठवा के ये दौर मा, होगे सत्यानॉस।

होगे सत्यानॉस, काम खोजत हें दर्जी।

नइ ते पहली लोग, करैं सीले के अर्जी।

टाप जींस टी शर्ट, मार दे हावै थपड़ा।

शहर लगे ना गाँव, छाय हे उठवा कपड़ा।


दर्जी के घर मा रहै, कपड़ा के भरमार।

खुले स्कूल कालेज या, कोनो होय तिहार।

कोनो होय तिहार, गँजा जावै बड़ कपड़ा।

लउहावै सब रोज, बजावैं घर आ दफड़ा।

कपड़ा सँग दे नाप, सिलावैं सब मनमर्जी।

उठवा आगे आज, मरत हें लाँघन दर्जी।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

धन्वन्तरि भगवान के , तेरस मा गुण गाव।

 दोहा--

धन्वन्तरि भगवान के , तेरस मा गुण गाव।

धनबल यस जस शांति सुख, सुमिरन करके पाव।।


धनतेरस-सार छंद


धन्वंतरि कुबेर के सँग मा, आबे लक्ष्मी दाई।

धनतेरस मा दीप जलाके, करत हवौं पहुनाई।।


चमकै चमचम ठिहा ठौर हा, दमकै बखरी बारी।

धन तेरस के दीया के सँग, आगे हे देवारी।।

भोग लगावौं फूल हार अउ , नरियर खीर मिठाई।

धन्वंतरि कुबेर के सँग मा, आबे लक्ष्मी दाई।।


रखे सबे के सेहत बढ़िया , धन्वंतरि देवा हा।

करै कुबेर कृपा सब उप्पर, बरसै धन मेवा हा।।

सुख समृद्धि देबे सब ला, धन वैभव बरसाई।

धन्वंतरि कुबेर के सँग मा, आबे लक्ष्मी दाई।।


देवारी कस सब दिन लागै, सबदिन बीतै सुख मा।

मनखे बन जिनगी जे जीये , दबे रहै झन दुख मा।

काय जीव का मनखे तनखे, दे सुख सब ला माई।

धन्वंतरि कुबेर के सँग मा, आबे लक्ष्मी दाई।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


सेहत सब ले बड़का धन- सार छन्द


जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।

सेहत सबले बड़का धन ए, धन दौलत धन जाली।।


काली बर धन जोड़त रहिथस, आज पेट कर उन्ना।

संसो फिकर करत रहिबे ता, काल झुलाही झुन्ना।।

तन अउ मन हा हावय चंगा, ता होली दीवाली।

जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।।


खाय पिये अउ सुते उठे के, होय बने दिनचरिया।

काया काली बर रखना हे, ता रख तन मन हरिया।

फरी फरी पी पुरवा पानी, देख सुरुज के लाली।

जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।।


हफर हफर के हाड़ा टोड़े, जोड़े कौड़ी काँसा।

जब खाये के पारी आइस, अटके लागिस स्वाँसा।।

उपरे उपर उड़ा झन फोकट, जड़ हे ता हे डाली।

जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


भगवान धन्वंतरि ला स्वस्थ सुखी रखे।।।

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

पकिस्तान ल पाट --------------------------------

 पकिस्तान ल पाट

--------------------------------

पकिस्तान ल पाट रे संगी,

पकिस्तान      ल     पाट।

रई  आगे  हे ओखर भैया,

चुपचाप   नइहे खात-----


नानचुन मरहा मेचका होके,

हाथी ल हे  दबकात-------

पाकिस्तान ल पाट रे संगी,

पाकिस्तान     ल     पाट।


चल   टुरा   ए     कहिके,

नइ जोर  देत रेहेन।

अब तब  सुधरही कहि,

नित छोड़ देत  रहेन।

फेर धर सब  ताँत डोरी,

नरी  ल   ओखर    फांस।

पकिस्तान ल  पाट रे संगी,

पकिस्तान     ल      पाट।


सुते    रिथन  त   नाचथे।

अउ जागथन  त  भागथे।

पड़थे  थपड़ा  चर्ररस  ले,

अजरहा कस  काँखथे।

गेन   हमु    ऊंखरो    घर,

त   ओधात   हे    कपाट।

पकिस्तान ल  पाट रे संगी,

पाकिस्तान    ल      पाट।


झर        जही          लगथे,

पाक     अब     पाकत   हे।

बंचाही कहिके ऐखर-ओखर,

मुंहूँ      ल     ताकत       हे।

बोजा      जही    घुरवा    म,

पड़ही      जब           लात।

पाकिस्तान   ल  पाट  रे संगी,

पाकिस्तान       ल       पाट।


तोर         गोला  -  बारूद,

त    हमर   हंसिया-तुतारी।

तोर        सव           घांव,

त   हमर    एक्के     दारी।

कलकलात हन काली कस,

लहू  पिबोन  मुड़ी ल काट।

पाकिस्तान  ल पाट रे संगी,

पाकिस्तान       ल    पाट।


अभो घलो समझात हन,

सोज    -    बाय     रहो।

नांव       बुझा       जही,

जादा    झन   ले   लहो।

भारत    के    भांडी   ल,

भुलाके    झन      झाँक।

पाकिस्तान ल पाट रे संगी,

पाकिस्तान    ल      पाट।


आ   ददा   घर  बने     बनके,

खवाबोन   तोला   खीरे-खीर।

इतराबे त मसानगंज बन जही,

सिंधु  - झेलम  के   तीरे -तीर।

सांप        के       बिला     म,

झन        डार              हॉत।

पाकिस्तान   ल   पाट  रे संगी,

पाकिस्तान       ल         पाट।


     जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

       बालको(कोरबा)

        9981441795

Wednesday, 16 October 2024

माटी ले जुंड़बोन.....

 📝किसन्हा आसिक📝

-------------------------------------

माटी ले जुंड़बोन.....

----------------------------------------

नखरा नवा जमाना के,

मनखे ल चुरोना कस कांचही |

माटी ले जुंड़बोन  मितान,

तभे जिवरा  बांचही |


फिरिज टीभी कम्पूटर सस्तात हे,

मंहगात हे चांऊर दार |

सपना म घलो सपनाय नही खेती,

बेंचात हे खेतखार |

उद्धोग ढॉबा लाज बनत हे,

टेकत हे महल अटारी|

स्वारथ म रौंदाय भूंईया,

नईहे कोनो संगवारी |

पेट म मुसवा कुदही,

त कोन भला नांचही........ |

मांटी ले जुंड़बोन मितान,

तभे जिवरा बांचही |


खेती आज बेटी होगे,

भात नईहे कोनो |

चाहे देखावा कतरो बखाने,

फेर अपनात नईहे कोनो |

करजा म किसान ,

कलहर-कलहर के अधमरहा होगे |

मेहनत भर ओखर तीर ,

ब्यपारी तीर थरहा होगे |

भूख मरही किरसी भूंईया भारत,

म बिदेसिया घलो हांसही.......|

मांटी ले जुंड़बोन मितान,

तभे जिवरा बांचही  |


तंहू हस नंवकरी म,

मंहू हंव नंवकरी म,

पईसा हे ईफरात |

फेर दुच्छा हे हंड़िया,

दुच्छा हे परात |

कल कारखाना अंखमुंदा लगात  हे |

दार-चांउर छोंड़,आनी-बानी के चीज बनात हे|

हाय पईसा-हाय पईसा होगे,

का दुच्छा पेंट पईसा ल चांटही....?

मांटी ले जुंड़बोन मितान,

तभे जिवरा बांचही |

            

              जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                बाल्को(कोरबा)

भूलागेन@@@@ -------------------------

 @@@@भूलागेन@@@@

----------------------------------------


संडे   मंडे   के     चक्कर   म,

एक्कम      दूज      भूलागेन।


दुनिया ल   भरमात   भरमात,

अपन तन  के  सुध  भूलागेन।


जिनगी  भर लकर-धकर करेन,

फेर  ठंऊका बेरा सुत भूलागेन।


गंजहा-मंदहा के संगत म पड़के,

अमरित कस दही दूध भूलागेन।


तंऊरे नइ जानन तभो देखावा म,

बीच   दहरा   म   कूद  भूलागेन।


अपन  अपन  कहिके  , जपन लगेन,

फेर का अपन ए,तेला खुद भूलागेन?


मनखे     होके    ,  मूरख    बनगेन,

सियान के बताय,बने बूध भूलागेन।


           जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

               बालको(कोरबा)

               9981441795

नइ जाने

 नइ जाने

---------------------------------------------------

मुड़ म  नचईया मन, पाँव   नइ    जाने।

उजाड़ करईया मन,सहर-गाँव नइ जाने।


फोकटे-फोकट कल्हरत हे,मारे-काटे कस,

जेन  जिनगी   म   कभू  , घाव  नइ जाने।


अइसन   मनखे   के  ,  भाव   बाढ़े   हे,

जेन   तेल  नून के घलो ,भाव नइ जाने।


वो   मनखे    जरत   हे   ,  कायरी    म,

जेन कभू आगी-बुगी के , ताव नइ जाने।


जेन मरखंढा बन,एला-ओला मारत फिरथे,

वो  मनखे  कभू मया के ,  छाँव नइ जाने।


नांव   कमाय  म  ,  उमर    गुजर   जथे,

जेन नांव बोर दे,वो कभू  नांव नइ जाने।


          जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

               बालको(कोरबा)

               9981441795

वाह रे पानी-सार छंद

 वाह रे पानी-सार छंद


पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।

खेवन खेवन पानी बरसे, सफरी सरना सोगे।


का कुँवार का कातिक कहिबे,लागत हावै सावन।

रोहों पोहों खेत खार हे, बरसा बनगे रावन।।

धान सोनहा करिया होगे, लगगे कतको रोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।


लूवे टोरे के बेरा मा, कइसे करयँ किसनहा।

आसा के सूरज हा बुड़गे,बुड़गे डोली धनहा।

जाँगर टोरिस जउन रोज वो, दुख मा अउ दुख भोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।।


करजा बोड़ी के का होही, संसो फिकर हबरगे।

देखमरी बादर ला छागे, देखे सपना मरगे।

चले धार कोठार खेत मा, सोच सोच सुध खोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

तो मार मुझे...........

 क्या हम रावण हैं?


चलो रावण के जलने का,

विरोध करते हैं।

क्योकि हम भी तो रावण हैं,

कोई हमें भी न जला दे।

जयकारा लगाते हैं,  गुण गाते हैं।

गली मुहल्लें में, रावण का,

जय लंकेश, जय लंकेश, जयजय लंकेश।

कहीं का राजा नहीं तो क्या हुआ?

हमारी ही फौज दुनिया में सबसे बड़ी है।

हाँ हम रावण हैं।

उनके गुणों में नहीं, अवगुणों में।।

रावण से ही तो सीखें हैं-

महिलाओं पर कुदृष्टि डालना।

सत्य कहने वालों को लात मारना।

अहम में चूर, किसी का, कुछ न सुनना।

स्वयं का ही गुणगान करना।

मारना पीटना, आंख दिखाना।

जिद और स्वार्थ में धन दौलत ही नहीं,

प्रजा परिवार की भी बली चढ़ा देना।।

नाभि में अमृत कुंड तो नहीं,

पर मन में अपार जहर भरा है।

चलो रावण के जलने का विरोध करते हैं,

क्योकि आज दशहरा है।।

शुक्र है बुराई साल में एक बार जलती है।

अच्छाई की हमें क्या खबर?

क्योकि अच्छाई तो हम में है ही नही।

------------------क्या हम रावण भी हैं?


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


तो मार मुझे...........

------------------------------------------------

माना     नजरें , गलत   थी    मेरी,

पर नजरें तुम्हारी सही है,तो मार मुझे।।


हाँ दिल में  बैर, पाल  रखा  था  मैंने,

पर तेरे दिल में बैर नही है,तो मार मुझे।


आज तो बुराई घर घर, घर कर गई है,

यदि सच में बुराई यही है,तो मार मुझे।


मैं तो कब का मर चुका हूँ,श्रीराम के हाथो,

तेरे  दिल  में  राम  कही  है, तो  मार  मुझे।


मैं तो बहक गया था,हाल बहन का देखकर,

वो सनक तेरी रग में बही है,तो मार मुझे।


मैंने तो लुटा दिया,घर परिवार सब कुछ,

मेरे कारण तेरी आस ढही है,तो मार मुझे।


हजार बुराई लिये, हँस रहा है आज का रावण,

ये लकड़ी का पुतला वही है,तो मार मुझे।


मैं तो हर बार मरने को,  तैयार  बैठा हूँ,

यदि बुराई कम हो रही है ,तो मार मुझे।


              जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                बालको(कोरबा)

विजयदशमी पर्व की आप सबको ढेरों बधाइयाँ


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


कुंडलियाँ छंद- रावन(जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया")


रावन रावन हे तिंहा, राम कहाँ ले आय।

रावन ला रावन हने, रावन खुशी मनाय।

रावन खुशी मनाय, भुलागे अपने गत ला।

अंहकार के दास, बने हे तज तप सत ला।

धनबल गुण ना ज्ञान, तभो लागे देखावन।

नइहे कहुँती राम, दिखे बस रावन रावन।।


रावन के पुतला कहे, काम रतन नइ आय।

अहंकार ला छोड़ दव, झन लेवव कुछु हाय।

झन लेवव कुछु हाय, बाय हो जाही जिनगी।

छुटही जोरे चीज, धार बोहाही जिनगी।

मद माया लत लोभ, खोज लग जाव जलावन।

नइ ते जलहू रोज, मोर कस बनके रावन।


रावन हा कइसे जले, सावन कस हे क्वांर।

पानी रझरझ बड़ गिरे, होवय हाँहाकार।

होवय हाँहाकार, देख के पानी बादर।

दिखे ताल कस खेत, धान हा रोवय डर डर।

जगराता जस नाच, कहाँ होइस मनभावन।

का दशहरा मनान, जलावन कइसे रावन।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


दोहा


थर-थर कापत हे धरा, का बिहना का शाम।

आफत ला झट टार दौ, जयजय जय श्री राम।


घनाक्षरी


आशा विश्वास धर,सियान के पाँव पर,

दया मया डोरी बर,रेंग सुबे शाम के।

घर बन एक मान,जीव सब एक जान,

जिया कखरो न चान,छाँव बन घाम के।

मीत ग मितानी बना,गुरतुर बानी बना,

खुद ल ग दानी बना,धर्म ध्वजा थाम के।

रद्दा ग देखावत हे,जग ला बतावत हे,

अलख जगावत हे,चरित्र ह राम के।


मन म बुराई लेके,आलस के आघू टेके,

तप जप सत फेके,कैसे जाबे पार गा।

झन कर भेदभाव,दुख पीरा न दे घाव,

बढ़ाले अपन नाँव,जोड़ मया तार गा।

बोली के तैं मान रख,बँचाके सम्मान रख,

उघारे ग कान रख,नइ होवै हार गा।

पीर बन राम सहीं,धीर बन राम सहीं,

वीर बन राम सहीं,रावण ल मार गा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

आज के रावण


बिन डर के मनमर्जी करत हे,आज के रावण।

सीता संग लक्ष्मी सरसती हरत हे,आज के रावण।

अधमी ,स्वार्थी ,लालची अउ बहरूपिया हे,

राम लखन के रूप घलो धरत हे,,आज के रावण।


बहिनी के दुख दरद नइ जाने,आज के रावण।

मंदोदरी हे तभो मेनका लाने,आज के रावण।

न संगी न साथी न लंका न डंका,

तभो तलवार ताने,आज के रावण।


भला बनके भाई के भाग हरे,आज के रावण।

आगी बूगी म घलो नइ जरे,आज के रावण।

ज्ञान गुण के नामोनिशान नही जिनगी म,

घूमय हजारों बुराई धरे ,आज के रावण।


जाने नही एको जप तप ,आज के रावण।

दारू पीये शप शप, आज के रावण।

मुर्गी मटन मछरी ल, पेट म पचावव,

सबे चीज झड़के गप गप,आज के रावण।


हे गली गली घर घर भरे,आज के रावण।

तीर तलवार म नइ मरे,आज के रावण।

बनाये खुद बर झूठ के कायदा कानून,

दिनोदिन तरक्की करे,आज के रावण।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


एसो के रावण


एसो के रावण, घुर घुर के मरही।

बरसा बड़ बरसत हे,बुड़ के मरही।


कुँवार महीना घलो,पानीच पानी।

छत्ता ओढ़े बइठे हवै,माता रानी।

जम्मो कोती माते,हावै गैरी।

कोन हितवा हे,कोन हे बैरी।

बन के का,रक्सा अन्तःपुर के मरही।

एसो के रावण, घुर घुर के मरही----।


एसो जादा सजे कहाँ हे।

बाजा गाजा बजे कहाँ हे।

आँखी कान पेट धँस गेहे,

मेंछा घलो मँजे कहाँ हे।

पहली ले एसो,खड़े नइहे।

तलवार धरके,अँड़े नइहे।

कोरबा रायगढ़ अउ रायपुर के मरही।

एसो के रावण,घुर घुर के मरही------।


नइ बाजे डंका।

नइ बाँचे लंका।

लगन तिथि बार,

सब मा हे शंका।

हाल बेहाल हे,गरजे कइसे।

सब तो रावण हे,बरजे कइसे।

पानी अउ अभिमानी देख,चुर चुर के मरही।

एसो के रावण, घुर घुर के मरही-----------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


"रावण रावण हें तिहाँ, राम कहाँ ले आय।

रावण ला रावण हने, रावण खुशी मनाय।।"


विजयादशमी की ढेरों बधाइयाँ


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


महँगाई


दशहरा के रावण कस, भूँजा जा रे महँगाई।

नटेरे हस जिनगी भर, अब ऊँघा जा रे मँहगाई।


साग दार नून के, स्वाद घलो भूला गे।

अब तो नाक में, सूँघा जा रे महँगाई।।


हने हस दर्रा सबके तिजोरी मा।

विनती हे झट ले, मूँदा जा रे महँगाई।


मछरी धरे कस छीते हव, जिनगी के डबरा ला।

निरवा पानी कस वो पार, रुँधा जा रे महँगाई।


जिभिया का, करेजा घलो लाम गे।

गौरा कस काली के पाँव मा,खूँदा जा रे महँगाई।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


पैदा होवत पर निकलगे।

फूल के बिन फर निकलगे।1


बाहिरी मा खोज होइस।

चोर घर भीतर निकलगे।2


दू भुखाये लड़ते रहिगे।

पेट तीसर भर निकलगे।3


सर्दी अउ खाँसी जनम के।

आज बड़का जर निकलगे।4


घुरघुरावत जी रिहिस बड़।

हौसला पा डर निकलगे।5


गाय गरुवा मन घरे के।

सब फसल ला चर निकलगे।6


जेन ला समझेन दाता।

साँप वो बिखहर निकलगे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

पुन्नी के चंदा(सार चंदा)

 


सूरज कस उजियार कर, हवस कहूँ यदि एक।

चंदा बन चमकत रहा, तारा बीच अनेक।।।।।।


पुन्नी के चंदा(सार चंदा)


सज धज के पुन्नी रतिहा मा, नाँचत हावै चंदा।

अँधियारी रतिहा ला छपछप,काँचत हावै चंदा।


बरै चँदैनी सँग में रिगबिग, सबके मन ला भाये।

घटे बढ़े नित पाख पाख मा,एक्कम दूज कहाये।

कभू चौथ के कभू ईद के, बनके जिया लुभाये।

शरद पाख सज सोला कला म,अमृत बूंद बरसाये।

सबके मन में दया मया ला,बाँचत हावै चंदा--।

सज धज के पुन्नी रतिहा मा,नाँचत हावै चंदा।


बिन चंदा के हवै अधूरा,लइका मन के लोरी।

चकवा रटन लगावत हावै,चंदा जान चकोरी।

कोनो मया म करे ठिठोली,चाँद म महल बनाहूँ।

कहे पिया ला कतको झन मन,चाँद तोड़ के लाहूँ।

बिरह म रोवत बिरही ला अउ,टाँचत हावै  चंदा--।

सज धज के पुन्नी रतिहा मा, नाँचत हावै चंदा।


सबे तीर उजियारा हावै,नइहे दुःख उदासी।

चिक्कन चिक्कन घर दुवार हे,शुभ हे सबके रासी।

गीता रामायण गूँजत हे, कविता गीत सुनाये।

खीर चुरत हे चौक चौक मा,मिलजुल भोग लगाये।

धरम करम ला मनखे मनके,जाँचत हावै चंदा----।

सज धज के पुन्नी रतिहा मा, नाँचत हावै चंदा।


शरद पुन्नी के चंदा,


ए,शरद पुन्नी के चंदा,

टुकनी म बइठार के तोला।

देखाहूँ मोर गाँव घर,

खेत खार घर कोला---।।


तोर बरसत अमृत ले,

सींचहूँ खेत खार ल।

तोर तेज ले टारहूँ,

इरसा जर बुखार ल।

बाँटहूँ मैं सबला,

तोर कला सोला-----।।


घुमाहूँ,मयारु मनके,

नजर ले बँचावत।

नान नान लइका मन ल,

टुहूँ देखावत।

उतारहूँ आमा तरी म,

तोर डोला------------।।

 

जिहाँ सुरुज घलो नइ जाय,

उँहचो ल उजराहूँ।

जागत मनखे मन बर,

दाई लक्ष्मी बन जाहूँ।

मोर टुकनी के लाड़ू खा ले,

बिरथा हे धनी के झोला----।।


नदी धार म,दीया ढील के,

मनभर डुबकी लगाहूँ।

हूम धूप दे पूजा करहूँ,

तोर महिमा ल गाहूँ।

आसा के पुल बाँधत हावै

मोर गरीबिन चोला----।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


अपने ही जलाते हैं, तो आग ढूँढकर क्या करूँ।

आस्तीन ही डसते हैं, तो नाग ढूँढकर क्या करूँ।

तेरे-मेरे;  इसके-उसके; सब में तो है,

फिर कोसों दूर चंद्रमा में दाग ढूँढकर क्या करूँ।

खैरझिटिया

बैपारी- सार छंद

 बैपारी- सार छंद


ताग ताग के बैपारी मन, कीमत बड़ पा जाथें।

जब किसान के महिनत आथे, सबे चीज बोहाथें।।


अब किसान कर नइहे कोठी, ना पउला ना पैली।

उपज जाय गोदाम खेत ले, भरा भरा के थैली।।

औने पौने दाम थमाके, गरी फेंक ललचाथें।

ताग ताग के बैपारी मन, कीमत बड़ पा जाथें।


आलू मुनगा मेथी धनिया, का बंगाला भाँटा।

बैपारी कर सोना बनथे, अउ किसान कर काँटा।।

बिकै अन्न फर भाजी पाला, बिचौलिया के हाथें।

ताग ताग के बैपारी मन, कीमत बड़ पा जाथें।


कई चीज मा करैं मिलावट, अउ काला बाजारी।

नियम धियम शासन राशन ले, बड़का हें बैपारी।।

अधिकारी अउ नेता चुप हें, आम मनुष गरियाथें।

ताग ताग के बैपारी मन, कीमत बड़ पा जाथें।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

दुमदार दोहा


सबों खूँट भक्कम दिखय,आलू प्याज पताल।

तभो बढ़े बड़ भाव हे, पइधें हवँय दलाल।।।

करैं दलाल मन मनमानी।

फूटत नइहें कखरो बानी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)