Saturday 17 September 2022

शिव महिमा(शिव छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 शिव महिमा(शिव छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


डमडमी डमक डमक। शूल बड़ चमक चमक।

शिव शिवाय गात हे। आस जग जगात हे।


चाँद चाकरी करे। सुरसरी जटा झरे।

अटपटा फँसे जटा। शुभ दिखे तभो छटा।


बड़ बरे बुगुर बुगुर। सिर बिराज सोम सुर।

भूत प्रेत कस दिखे। शिव जगत उमर लिखे।


कोप क्लेश हेरथे। भक्त भाग फेरथे।

स्वर्ग आय शिव चरण। नाम जाप कर वरण।


हिमशिखर निवास हे। भीम वास खास हे।

पाँव सुर असुर परे। भाव देख दुख हरे।


भूत भस्म हे बदन। मरघटी शिवा सदन।

बाघ छाल साँप फन। घुरघुराय देख तन।


नग्न नील कंठ तन। भेस भूत भय भुवन।

लोभ मोह भागथे। भक्त भाग जागथे।


शिव हरे क्लेश जर। शिव हरे अजर अमर।

बेल पान जल चढ़ा। भूत नाथ मन मढ़ा।


दूध दूब पान धर। शिव शिवा जुबान भर।

सोमवार नित सुमर। बाढ़ही खुशी उमर।


खंड खंड चर अचर। शिव बने सबेच बर।

तोर मोर ला भुला। दै अशीष मुँह उला।


नाग सुर असुर के। तीर तार दूर के।

कीट खग पतंग के। पस्त अउ मतंग के।


काल के कराल के। भूत  बैयताल के।

नभ धरा पताल के। हल सबे सवाल के।


शिव जगत पिता हरे। लेय नाम ते तरे।

शिव समय गति हरे। सोच शुभ मति हरे।


शिव उजड़ बसंत ए। आदि इति अनंत ए।

शिव लघु विशाल ए। रवि तिमिर मशाल ए।


शिव धरा अनल हवा। शिव गरल सरल दवा।

मृत सजीव शिव सबे। शिव उड़ाय शिव दबे।


शिव समाय सब डहर। शिव उमंग सुख लहर।

शिव सती गणेश के। विष्णु विधि खगेश के।


नाम जप महेश के। लोभ मोह लेश के।

शान्ति सुख सदा रही। नाव भव बुलक जही।


शिव चरित अपार हे। ओमकार सार हे।

का कहै कथा कलम। जीभ मा घलो न दम।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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शिव ल सुमर- शिव छंद


रोग डर भगा जही। काल ठग ठगा जही।

पार भव लगा जही। भाग जगमगा जही।


काम झट निपट जही। दुक्ख द्वेष कट जही।

मान शान बाढ़ही। गुण गियान बाढ़ही।।


क्रोध काल जर जही। बैर भाव मर जही।

खेत खार घर रही। सुख सुकुन डहर रही।


आस अउ उमंग बर। जिंदगी म रंग बर।

भक्ति कर महेश के। लोभ मोह लेश के।


सत मया दया जगा। चार चांद नित लगा।

जिंदगी सँवारही। भव भुवन ले तारही।।


देव मा बड़े हवै। भक्त बर खड़े हवै।

रोज शाम अउ सुबे। भक्ति भाव मा डुबे।


नीलकंठ ला सुमर। बाढ़ही सुमत उमर।

तन रही बने बने। रेंगबे तने तने।।


सोमवार नित सुमर। नाच के झुमर झुमर।

हूम धूप दे जला। देव काटही बला।।


दूध बेल पान ले। पूज शिव विधान ले।

तंत्र मंत्र बोल के। भक्ति भाव घोल के।


फूल ले मुठा मुठा। सोय भाग ला उठा।

भक्ति तीर मा रही।शक्ति तीर मा रही।।


फूल फल दुबी चढ़ा। नारियल चँउर मढ़ा।

आरती उतार ले।धूप दीप बार ले।।


शिव पुकार रोज के। भक्ति भाव खोज के।

ओम ओम जाप कर।भूल के न पाप कर।।


भूत भस्म भाल मा। दे चुपर कपाल मा।

ओमकार जागही। भाग तोर भागही।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को (कोरबा)


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सर्वगामी सवैया - खैरझिटिया

माथा म चंदा जटा जूट गंगा गला मा अरोये हवे साँप माला।

नीला  रचे  कंठ  नैना भये तीन नंदी सवारी धरे हाथ भाला।

काया लगे काल छाया सहीं बाघ छाला सजे रूप लागे निराला।

लोटा म पानी रुतो के रिझाले चढ़ा पान पाती ग जाके सिवाला।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा

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घनाक्षरी(भोला बिहाव)-खैरझिटिया


अँधियारी रात मा जी,दीया धर हाथ मा जी,

भूत  प्रेत  साथ  मा  जी ,निकले  बरात  हे।

बइला  सवारी  करे,डमरू  त्रिशूल धरे,

जटा जूट चंदा गंगा,सबला  लुभात हे।

बघवा के छाला हवे,साँप गल माला हवे,

भभूत  लगाये  हवे , डमरू  बजात  हे।

ब्रम्हा बिष्णु आघु चले,देव धामी साधु चले,

भूत  प्रेत  पाछु  खड़े,अबड़ चिल्लात  हे।


भूत प्रेत झूपत हे,कुकूर ह भूँकत हे,

भोला के बराती मा जी,सरी जग साथ हे।

मूड़े मूड़ कतको के,कतको के गोड़े गोड़,

कतको के आँखी जादा,कोनो बिन हाथ हे।

कोनो हा घोंडैया मारे,कोनो उड़े मनमाड़े,

जोगनी परेतिन के ,भोले बाबा नाथ हे।

देव सब सजे भारी,होवै घेरी बेरी चारी,

अस्त्र शस्त्र धर चले,मुकुट जी माथ हे।


काड़ी कस कोनो दिखे,डाँड़ी कस कोनो दिखे,

पेट कखरो हे भारी,एको ना सुहात हे।

कोनो जरे कोनो बरे,हाँसी ठट्ठा खूब करे,

नाचत कूदत सबो,भोले सँग जात हे।

घुघवा हा गावत हे, खुसरा उड़ावत हे,

रक्शा बरत हावय,दिन हे कि रात हे।

हे मरी मसान सब,भोला के मितान सब,

देव मन खड़े देख,अबड़ मुस्कात हे।


गाँव मा गोहार परे,बजनिया सुर धरे,

लइका सियान सबो,देखे बर आय जी।

बिना हाथ वाले बड़,पीटे गा दमऊ धर,

बिना गला वाले देख,गीत ला सुनाय जी।

देवता लुभाये मन,झूमे देख सबो झन,

भूत प्रेत सँग देख,जिया घबराय जी।

आहा का बराती जुरे,देख के जिया हा घुरे,

रानी राजा तीर जाके,देख दुख मनाय जी।


फूल कस नोनी बर,काँटा जोड़ी पोनी बर,

रानी कहे राजा ला जी,तोड़ दौ बिहाव ला।

करेजा के चानी बेटी,मोर देख रानी बेटी,

कइसे जिही जिनगी,धर तन घाव ला।

पारबती आये तीर,माता ल धराये धीर,

सबो जग के स्वामी वो,तज मन भाव ला।

बइला सवारी करे,भोला त्रिपुरारी हरे,

माँगे हौ विधाता ले मैं,पूज इही नाव ला।


बेटी गोठ सुने रानी,मने मन गुने रानी,

तीनो लोक के स्वामी हा,मोर घर आय हे।

भाग सँहिरावै बड़,गुन गान गावै बड़,

हाँस मुस्काय सुघ्घर,बिहाव रचाय हे।

राजा घर माँदीं खाये,बराती सबो अघाये,

अचहर पचहर ,गाँव भर लाय हे।

भाँवर टिकावन मा,बार तिथि पावन मा,

पारबती हा भोला के,मया मा बँधाय हे।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको, कोरबा

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