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.....धनहा डोली(गीत)......
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चल घुमाहूँ तोला, धनहा डोली।
सुनाहूँ पड़की तीतुर,पपीहा के बोली।
मेड़ -पार म उगे हवे,रंग - रंग के काँदी।
खेत म खेलत हवे ,डँड़ई ,कोतरी ,सराँगी।
नाचत हवे रुख राई संग,पँड़री-पँड़री कांसी।
कते रुख तरी खाथों , बइठ मैंहा बासी?
तहूँ ला खवाहूँ ,मुंग - मुंगेसा ओली-ओली।
चल घुमाहूँ तोला, धनहा डोली................।
मेचका के टर-टर हे,पुरवा के सर-सर हे।
मुही के पानी झरे , झर-झर झर-झर हे।
भादो महीना , सजोर दिखय धान।
नाच देथे कई परता,खेतेच म किसान।
सँसो - फिकर के , जर जाही होली ।
चल घुमाहूँ तोला,धनहा डोली..........।
बइठ के मेड़ म , तन - मन ल हरियाबों।
कोलिहापुरी ,फोटका, फुट- फुटैना खाबों।
कर्मा - ददरिया सुनबों, धान निंदइया के।
असल रूप चल देखबों,धरती मइया के।
हँसबों मुस्काबों अउ , करबों ठिठोली।
चल घुमाहूँ तोला, धनहा डोली.............।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
एक जुन्ना गीत
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