Saturday 17 September 2022

......मोर गॉव ल काय होगे........ ----------------------------------------------

 .......मोर गॉव ल काय होगे........

----------------------------------------------


पीपर के पाना डोले त डर लागे |

कोयली कुहु-कुहु बोले त डर लागे |

रद्दा म रक्सा रहि रहिके दिखत हे |

जाँव कते कोती जघा-जघा बिपत हे |

जिंहा मयना मन भाय,

तिहाँ साँय साँय होगे ........|

हे बिधाता! 

मोर गॉंव ल काय होगे........|


न जाड़ म जुड़ हे,

न असाड़ म पानी |

सावन भादो घलो,

लकलकाय हे छानी |

चुल्हा ले गुंगवा गुंगवात नइहे |

पेट भर जेवन कभू खात नइ हौं |

का  काम बुता करौं,

सबो आँय बाँय होगे...............|

हे बिधाता !

मोर गॉंव ल काय होगे ............|


सोवा परगे हे,गॉंव के गॉंव म |

कोनो नइ जुरे हे,बर पीपर छॉंव म |

लइका मनके,

गिल्ली-भंवरा माते नइहे |

अटकन-मटकन खेले के ,

चँवरा बाचे नइहे |

न गॉंगर चुरे न ठेठरी,

बनेच दिन खीर खाय होगे.......|

हे बिधाता !

मोर गॉंव ल काय होगे............ |


टेस-टेस म अँइठत हें सबो |

टीभी मोबाइल तीर बइठत हें सबो |

न साल्हो हे न सुवा हे |

जघा-जघा मौंत के कुंवा हे |

पहिली जइसे कुछु नइहे,

राम राम हेलो हाय होगे.........|

हे बिधाता:

मोर गॉंव ल काय होगे..............|


             जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

            बाल्को ( कोरबा )

No comments:

Post a Comment