.......मोर गॉव ल काय होगे........
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पीपर के पाना डोले त डर लागे |
कोयली कुहु-कुहु बोले त डर लागे |
रद्दा म रक्सा रहि रहिके दिखत हे |
जाँव कते कोती जघा-जघा बिपत हे |
जिंहा मयना मन भाय,
तिहाँ साँय साँय होगे ........|
हे बिधाता!
मोर गॉंव ल काय होगे........|
न जाड़ म जुड़ हे,
न असाड़ म पानी |
सावन भादो घलो,
लकलकाय हे छानी |
चुल्हा ले गुंगवा गुंगवात नइहे |
पेट भर जेवन कभू खात नइ हौं |
का काम बुता करौं,
सबो आँय बाँय होगे...............|
हे बिधाता !
मोर गॉंव ल काय होगे ............|
सोवा परगे हे,गॉंव के गॉंव म |
कोनो नइ जुरे हे,बर पीपर छॉंव म |
लइका मनके,
गिल्ली-भंवरा माते नइहे |
अटकन-मटकन खेले के ,
चँवरा बाचे नइहे |
न गॉंगर चुरे न ठेठरी,
बनेच दिन खीर खाय होगे.......|
हे बिधाता !
मोर गॉंव ल काय होगे............ |
टेस-टेस म अँइठत हें सबो |
टीभी मोबाइल तीर बइठत हें सबो |
न साल्हो हे न सुवा हे |
जघा-जघा मौंत के कुंवा हे |
पहिली जइसे कुछु नइहे,
राम राम हेलो हाय होगे.........|
हे बिधाता:
मोर गॉंव ल काय होगे..............|
जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को ( कोरबा )
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