कुंडलियाँ
चिरई बइठे हाथ मा,कइसे चूमय गाल।
मनखे मनहा आज तो,बनगे हावै काल।
बनगे हावै काल, हवा पानी ला चुँहके।
मरे पखेड़ू भूख,छिंनय चारा ला मुँह के।
जंगल झाड़ी काट, करत हे मनके तिरई।
काखर कर बतियाय,अपन पीरा ला चिरई।
खैरझिटिया
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