: सुरता मइके के-गीत
सावन काँटेंव मैं गिनगिन, सुरता मा दाई वो।
कि आही तीजा लेय बर, भादो मा भाई वो।।
मइके के सुरता, नजरे नजर म झुलथे।
देखतेंव दसमत पेड़ ल, के फूल फुलथे।
मोर थारी अउ लोटा म, कोन बासी खाथे।
तुलसी चौरा म बिहना, पानी कोन चढ़ाते।
हे का चकचक ले उज्जर, कढ़ाई दाई वो--
आही तीजा------
गाय गरुवा मोर बिन, सुर्हरथे कि नही।
खेकसी कुंदरू बारी म फरथे कि नही।
कुँवा तरिया म पानी कतका भरे रहिथे।
का मोला अगोरत,परोसिन खड़े रहिथे।
कोन करथे मोर कुरिया म पढाई दाई वो---
आही तीजा------
दुरिहा दिये दाई, तैंहर अपन कोरा ले।
मइके लाही कहिके,मोला तीजा पोरा में।
जल्दी भेज न दाई बाट जोहत हँव वो।
मइके के सुरता म मैं हा रोवत हँव वो।
एकेदरी थोरे सुरता भुलाही दाई वो---
आही तीजा---
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा
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