Saturday 17 September 2022

विश्व आदिवासी दिवस के आप सब ला सादर बधाई जंगल म बाँस के

 विश्व आदिवासी दिवस के आप सब ला सादर बधाई


जंगल म बाँस के


जंगल  म  बाँस  के,

कइसे रहँव हाँस के।

खेवन खेवन खाँध खींचथे,

चीखथे सुवाद माँस के।

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सुरसा कस  बाढ़े।

अँकड़ू बन वो ठाढ़े।

डहर बाट ल लील देहे,

थोरको मन नइ माढ़े।

कच्चा म काँटा खूँटी,

सुक्खा म डर फाँस के।

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माते हे बड़ गइरी।

झूमै मच्छर बइरी।

घाम घलो घुसे नही,

कहाँ बाजे पइरी।

कइसे फूकँव बँसुरी,

जर धर साँस के---।


झुँझकुर झाड़ी डार जर,

काम के न फूल फर।

सताये साँप बिच्छी के डर,

इँहा मोला आठो पहर।

बिछे हवे काँदी कचरा,

बिजराय फूल काँस के।

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शेर भालू संग होय झड़प।

कोन सुने मोर तड़प।

आषाढ़ लगे नरक।

जाड़ जड़े बरफ।

घाम घरी के आगी,

बने कारण नास के।

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मोर रोना गूँजे गाना सहीं।

हवा चले नित ताना सहीं।

लाँघन भूँखन परे रहिथौं,

सुख दुर्लभ गड़े खजाना सहीं।

जब तक जिनगी हे,

जीयत हँव दुख धाँस के।

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रोजे देखथों बाँस के फूल।

जिथौं गोभे हिय मा शूल।

बस नाम भर के हमन,

जल-जंगल-जमीन के मूल।

परदेशिया मन पनपगे,

हमन ला झाँस के।

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पाना ल पीस पीस पी,

पेट के कीरा संग,

मोर पीरा घलो मरगे।

मोर बनाये चटई खटिया,

डेहरी म माड़े माड़े सरगे।

प्लास्टिक के जुग आगे,

सब लेवै समान काँस के।

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न कोयली न पँड़की,

झिंगरा नित झकझोरे।

नइ जानँव अँजोरी,

अमावस आसा टोरे।

न डाक्टर न मास्टर,

 मैं अड़हा जियौं खाँस खाँस के।

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जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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