कुंडलियाँ छंद
डालर कॉलर ला हमर, धरे हवै दिनरात।
बेर बछर देखे बिना, दै रुपिया ला मात।।
दै रुपिया ला मात, बढ़े तब तब महँगाई।
छोट मँझोलन रोय, मचे अड़बड़ करलाई।
ऊगत नइहे बाल, उतारे हाँवन झालर।
रुपिया होय धड़ाम, दिनों दिन बाढ़ै डालर।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
(ऊगत नइहे बाल, उतारे हाँवन झालर।)- तुतारी आय।
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