कुंडलियाँ छंद
साल पछत्तर बीत गे, हम ला पाय सुराज।
तभो कई ठन चीज में, पाछू हावन आज।।
पाछू हावन आज, गिनावन काला काला।
बूता दू ठन होय, चार हें गड़बड़ झाला।।
रोजगार बिन रोय, मनुष मन सौ मा सत्तर।
बिगड़े शिक्षा स्वास्थ, बीत गे साल पछत्तर।।
सेवा शिक्षा स्वास्थ हा, बनगे हें बिजनेस।
मनमानी माँगे रकम, लोक लाज ला लेस।
लोक लाज ला लेस, चलत हे कतको बूता।
बड़े बड़े अउ होय, छोट के घींसय जूता।।
कुर्सी वाले खाय, हाँस के सब दिन मेवा।
फुदरत हे वैपार, नाम के हावय सेवा।।
वैपारी के राज हे, रोय किसान जवान।
छोट मोट के हाथ मा, नून तेल ना धान।
नून तेल ना धान, जुटा पावत हे कतको।
महँगाई ला देख, उतर जावत हे पटको।
ना काली ना आज, छोट के आइस बारी।
कर काला बाजार, बढ़त हावयँ वैपारी।
बड़का मन के साथ मा, खड़े हवै सरकार।
भरै खजाना ला उँखर, आम मनुष ला मार।
आम मनुष ला मार, करत हावय मनमर्जी।
कहाँ मरे मोटाय, लाख मांगै वर अर्जी।
शासन अउ सरकार, आम जन ला दै हड़का।
ताल मेल बइठार, बइठ खावैं मिल बड़का।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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