कुंडलियाँ छंद- बंगाला
आँखी अउ देखात हे, बंगाला बन बाज।
सपड़े हवैं दलाल या,आफत आहे आज।
आफत आहे आज, बाढ़ पानी हें भारी।
या फिर पइध दलाल, करयँ काला बाजारी।
बंगाला उड़ियाय, अचानक बाँधे पाँखी।
महँगाई ला देख, भींग जावत हे आँखी।
छोटे बड़े दलाल मिल,जमा करत हें माल।
महँगाई बाढ़ें अबड़, हाल होय बेहाल।।
हाल होय बेहाल, नचावै सब्जी भाजी।
तेल फूल फल दूध, हाथ नइ आये खाजी।
घर बन खेती खार, सबे बर चाही नोटे।
व्यय जादा कम आय,देख रोवैं जन छोटे।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
तुम्हर कोती के रुपिया तोला चलत हे?
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