Saturday 17 September 2022

आठे परब के सादर बधाई मोला किसन बनादे (सार छंद)

 आठे परब के सादर बधाई


मोला किसन बनादे (सार छंद)


पाँख  मयूँरा  मूड़ सजादे,काजर गाल लगादे|

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


बाँध कमर मा करिया करधन,बाँध मूड़ मा पागा|

हाथ अरो दे करिया चूड़ा,बाँध गला मा धागा|

चंदन  टीका  माथ लगादे ,पहिरा माला मुंदी|

फूल मोंगरा के गजरा ला ,मोर बाँध दे चुंदी|

हार गला बर लान बनादे,दसमत लाली लाली |

घींव  लेवना  चाँट  चाँट  के,खाहूँ थाली थाली |

मुचुर मुचुर मुसकावत सोहूँ,दाई लोरी गादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


दूध दहीं ला पीयत जाहूँ,बंसी मीठ बजाहूँ|

तेंदू  लउड़ी  हाथ थमादे,गाय  चराके आहूँ|

महानदी पैरी जस यमुना, रुख कदम्ब बर पीपर।    

गोकुल कस सब गाँव गली हे ,ग्वाल बाल घर भीतर।

मधुबन जइसे बाग बगीचा, रुख राई बन झाड़ी|

बँसुरी  धरे  रेंगहूँ   मैंहा ,भइया  नाँगर  डाँड़ी|

कनिहा मा कँस लाली गमछा,पीताम्बर ओढ़ादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


गोप गुवालीन संग खेलहूँ ,मीत मितान बनाहूँ|

संसो  झन करबे वो दाई,खेल कूद घर आहूँ|

पहिरा  ओढ़ा  करदे  दाई ,किसन बरन तैं चोला|

रही रही के कही सबो झन,कान्हा करिया मोला|

पाँव ददा दाई के परहूँ ,मिलही मोला मेवा |

बइरी मन ला मार भगाहूँ,करहूँ सबके सेवा|

दया मया ला बाँटत फिरहूँ ,दाई आस पुरादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया "

बालको (कोरबा )


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1,मदिरा सवैया


मोहन माखन माँगत हे मइया मुसकावत देखत हे।

गोकुल के सब गोपिन ला घनश्याम दहीं बर छेकत हे।

देख गुवालिन के मटकी धरके पथरा मिल फेकत हे।

तारन हार हरे हरि हा पँवरी म सबे सिर टेकत हे।


2, मतगयंद सवैया


देख रखे हँव माखन मोहन तैं झट आ अउ भोग लगाना।

रोवत हावय गाय गरू झट लेज मधूबन तीर चराना।

कान ल मोर सुहाय नही कुछु आ मुरलीधर गीत सुनाना।

काल बने बड़ कंस फिरे झट आ मनमोहन प्राण बचाना।


गोप गुवालिन के सँग मोहन रास मधूबन तीर रचावै।

कंगन देख बजे बड़ हाथ के पैजन पाँव के गीत सुनावै।

मोहन के बँसरी बड़ गुत्तुर बाजय ता सबके मन भावै

एक घड़ी म दिखे सबके सँग एक घड़ी सबले दुरिहावै।


चोर सहीं झन आ ललना झन खा ललना मिसरी बरपेली।

तोर हरे सब दूध दहीं अउ तोर हरे सब माखन ढेली।

आ ललना झट बैठ दुहूँ मँय दूध दहीं ममता मन मेली।

मोर जिया ल चुरा नित नाचत गावत तैं करके अटखेली।


गोकुल मा नइ गोरस हे अब गाय गरू ह दुहाय नहीं गा।

फूल गुलाब न हे कचनार मधूबन हे नइ बाग सहीं गा।

मोर सबे सुख शांति उड़े मुरलीधर रास रचे न कहीं गा।

दर्शन दे झट आ मनमोहन हाथ धरे हँव दूध दहीं गा।


धर्म ध्वजा धरनी धँसगे झटले अब आ करिया फहराना।

खोर गली म भरे हे दुशासन द्रौपति के अब लाज बचाना।

शासक संग समाज सबे ल सुशासन के सत पाठ पढ़ाना।

झाड़ कदम्ब जमे कटगे यमुना मतगे मनमोहन आना।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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लोकछंद- रामसत्ता


विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।

दीन दुखी के डर दुख हरके, धर्म ध्वजा फहराये हो राम।


एक समय देवकी बसदेव के, राजा कंस ब्याह रचाये।

उही बेर मा आकाशवाणी, कंस के काने मा सुनाये।।

आठवाँ सुत हा मारही तोला, सुनत कंस भारी बगियाये।

बाँध छाँद बसदेव देवकी ला, कारागर मा झट ओइलाये।।

*सुख शांति के देखे सपना, एके छिन छरियाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।1


राजा कंस हा होके निर्दयी, देवकी बसदेव पूत मारे।

करँय किलौली दूनो भारी, रही रही के आँसू ढारे।।

थर थर काँपे तीनो लोक हा, कंस करे अत्याचारी।

भादो अठमी के दिन आइस, प्रभु अवतरे के बारी।।

*बिजुरी चमके बादर गरजे, नदी ताल उमियाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।2


अधरतिहा अवतरे कन्हैया, बेड़ी भाँड़ी सब टुटगे।

देवी देवता फूल बरसाये, राजा बसदेव देख उठगे।।

देख मनेमने गुनय बसदेव, निर्दयी राजा के हे डर।

धरे कन्हैया ला टुकनी में, चले बसदेव नंद के घर।।

*यमुना बाढ़े शेषनांग ठाढ़े, गिरधारी मुस्काये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।3


छोड़ कन्हैया ला गोकुल में, माया ला धरके लाये।

समै के काँटा रुकगे रिहिस, बसदेव सुधबुध बिसराये।।

रोइस माया तब जागिस सब, आइस दौड़त अभिमानी।

पुत्र नोहे पुत्री ए राजा, हाथ जोड़ बोले बानी।।

*विष्णु के छल समझ कंस हा, मारे बर ऊँचाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।4


छूटे कंस के हाथ ले माया, होय देख पानी पानी।

तोर काल होगे हे पैदा, सुन के काँपे अभिमानी।।

जतका नान्हे लइका हावै, कहै मार देवव सब ला।

सैनिक मन के आघू मा, करे किलौली कई अबला।

*रोवै नर नारी मन दुख मा, हाँहाकार सुनाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।5


राजा कंस के काल मोहना, गोकुल मा देखाय लीला।

दाई ददा संग सब ग्राम वासी, नाचे गाये माई पीला।।

छम छम बाजे पाँव के पइरी, ठुमुक ठुमुक चले कन्हैया।

शेषनाग के अवतारे ए, संग हवै बलदऊ भइया।।

*किसन बलदऊ ला मारे बर, कंस हा करे उपाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।6


कंस के कहना मान पुतना, गोकुल नगरी मा आये।

भेस बदल के कान्हा ला धर, गोरस अपन पिलाये।।

उड़े गगन मा मौका पाके, कान्हा ला धरके पुतना।

चाबे स्तन ला कान्हा हा, तब भारी भड़के पुतना।।

*असल भेस धर गिरे भूमि मा, पुतना प्राण गँवाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।7


पुतना बध सुन तृणावर्त ला, कंस भेजे गोकुल नगरी।

बनके आय बवंडर दानव, होगे धूले धूल नगरी।।

मारे लात फेकाये दानव, प्राण पखेडू उड़े तुरते।

बगुला भेस बनाके बकासुर, गोकुल मा आये उड़ते।

भारी भरकम देख बगुला ला, नर नारी घबराये हो राम।

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।8


अपन चोंच मा मनमोहना ला, धरके बगुला उड़िड़ाये।

चोंच फाड़ बगुला ला मारे, कंस सुनत बड़ घबराये।।

बछरू रूप धरे बरसासुर, मोहन ला मारे आये।

खुदे बरसासुर हा मरगे, अघासुर आ डरह्वाये।।

*गुफा समझ सब ग्वाल बाल मन, अजगर मुख मा जाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।9


कंस के भेजे सब दानव मन, एक एक करके मरगे।

गोकुल वासी जय बोलावै, दानव मन मरके तरगे।।

माखन खावै दही चोरावै, मटकी फोड़े गुवालिन के।

मुँह उला के जग देखावै, माटी खावै बिनबिन के।।

*कदम पेड़ मा बइठ कन्हैया, मुरली मधुर बजाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।10


पेड़ बने दुई यक्ष रिहिन हे, कान्हा उन ला उबारे।

गेंद खेलन सब ग्वाल बाल संग, मोहन गय यमुना पारे।

रहे कालिया नाग जल मा, चाबे नइ कोनो बाँचे।

कालीदाह मा कूदे कन्हैया, नाँग नाथ फन मा नाँचे।

*गोबर्धन के पूजा करके, इन्द्र के घमंड उतारे हो  राम*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।11


मधुर मधुर मुरली धुन छेड़े, रास रचाये मधुबन मा।

गाय बछरू ला गोकुल के, कान्हा चराये कानन मा।।

सिखाय नाहे बर गोपियन ला, चीर हरण करके कान्हा।

राधा ला भिंगोये रंग मा, पिचकारी भरके कान्हा।।

*कृष्ण बलदउ ला अक्रूर जी, मथुरा लेके जाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।12


गोकुल मधुबन मरघट्टी कस, बिन कान्हा के लागत हे।

मनखे मन कठवा कस होगे, सूतत हे ना जागत हे।।

यमुना आँसू मा भरगे हे, रोवय जम्मो नर नारी।

कान्हा जाके मथुरा नगरी, दुखियन के दुख ला हारी।

*कंस ममा ला मुटका मारे, लहू के धार बोहाये हो राम*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।13


अत्याचारी कंस मरगे, जरासन्त शिशुपाल पाल मरे।

असुरन मनके नाँव बुझागे, विदुर सुदामा सखा तरे।।

दुशासन चिर खींचत थकगे, बने सहारा दुरपति के।

महाभारत ला पांडव जीतिस, कौरव फल पाइस अति के।

*हरि कथा हे अपरम पारे, खैरझिटिया का सुनाये हो राम*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।14


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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कलजुग म घलो आबे कान्हा

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स्वारथ म  रक्सा  बनके मनखे,

सिधवा गोप-गुवाल ल मारत हे।

कालीदाह   के   कालिया   नाग,

गली - गली   म    फुस्कारत हे।

बरसत हे ईरसा-दुवेस लड़ई-झगरा,

मया  के  गोवरधन उठाबे कान्हा।।

कलजुग  म  घलो  आबे   कान्हा।।


देवकी-बसदेव  ल  का  किबे,

जसोदा-नन्द  घलो  रोवत  हे।

कहाँ बाजे बंसुरी,कती रचे रास?

घर - घर  महाभारत  होवत   हे।

सड़क डहर म बइठे हे तोर गईया,

मधुबन म ले जाके चराबे कान्हा।

कलजुग  म  घलो आबे   कान्हा।


दूध - दही  ले  दुरिहाके  मनखे,

मन्द - मऊहा   म  डूब   गे  हे।

अलिन-गलिन म  सोवा  परे हे,

कदम  के  रुखवा  टूट  गे  हे।

घेंच म बांधे घूमे भरस्टाचार के हांड़ी,

आके  दही  लूट  देखादे  कान्हा।

कलजुग  म  घलो  आबे  कान्हा।


            जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                बाल्को(कोरबा)

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........माते हे दही लूट..........

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गोकुल गँवागे,ब्रिज बोहागे |

सिरागे जम्मो सुख.............|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


परिया तरिया पार लुटागे |

डहर गाँव खेत-खार लुटागे |

नांगर बक्खर बखरी -बारी,

खेक्सा,करेला,सेमी नार लुटागे |

कागज कस फूल ममहाय नही|

गाय-गरवा कोनो ल भाय नही |

न गोपी हे न ग्वाला हे |

जम्मो मनचलहा, मतवाला हे |

नइ पीये दूध दही,

सब ढ़ोकत हें मँउहा घूट...............|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


जसोदा के लोरी लुटागे |

नंद ग्राम के  होरी लुटागे |

दुहना,मथनी,डोरी लुटागे |

किसन बलदाऊ के जोड़ी लुटागे |

पेंट पुट्टी के दिवाल म,

आठे कन्हैया नइ नाँचे |

घर घर भरे असुर के मारे,

गोकुल- मधुबन नइ बाँचे |

अपनेच पेट के देखइया सब,

सुदामा मरत हे भूख.................|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


पहली कस दही,

अब जमे नही |

घीव-लेवना नोहर होगे,

कड़ही तको बने नही |

दूध दही होटल म होत हे |

ग्वाल-बाल गली-गली म रोत हे |

न गौठान हे,न चरागन हे,

कहॉ बाजे बंसरी,नइ हे कदम रूख.....|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


                जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                        बाल्को(कोरबा )

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