गजल
*212 1212 1212 1212*
पेट बड़ खनाय हे सही मा अउ अघाय के।
अन्न पानी नइ तको हे भाग मा भुखाय के।1
जौन करजा लेत बेरा पाँव ला परत रिहिस।
तौन नाम लेत नइहे करजा ला चुकाय के।2
लत मनुष के गे बिगड़ नजर घुमाले सब डहर।
काम धाम हे करत पिरीत सत भुलाय के।3
छोट अउ बड़े खड़े लिहाज छोड़ के लड़े।
बाप ला घुरत हे बेटा आँख तक उठाय के।4
रेल चलथे पाट मा ता गाड़ी घोड़ा बाट मा।
आदमी उदिम करत हे रात दिन उड़ाय के।5
राग रंग साधना ये साज बाज साधना।
साधना लगन हरे जिनिस नही चुराय के।6
तोप ढाँक लाख चाहे दिख जथे बुराई हा।
नइ लगे गियान गुण ला काखरो गनाय के।7
जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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