Saturday 1 July 2023

कुकुंभ छंद(आसो मोर अँगना मा)

 कुकुंभ छंद(आसो मोर अँगना मा)


गरज गरज के आबे बादर,आसो झन रोवाबे तैं।

हँरियर चारो कोती होवय, धरके बदरा आबे तैं।।


टपकय टिपटिप रहि रहि छानी,अलिन गलिन बोहय पानी।

भर  जाये   झट   डोली   डबरा,मन   भाये   बरखा    रानी।

तोर अगोरा हावय बादर,जादा झन तरसाबे तैं।

गरज गरज के आबे बादर,आसो झन रोवाबे तैं।


धान  निकलगे  हे कोठी  ले,खेती  के  होगे  जोरा।

सजगे नाँगर बइला जूँड़ा,टुकनी चरिहा अउ बोरा।

जेठ बुलकगे करहूँ बाँवत,कहाँ हवस पग दाबे तैं।

गरज गरज के आबे बादर,आसो झन रोवाबे तैं।


भभकत भुँइया ला तैं पानी,सोसन भर पीयादे गा।

काँस काँद बन दूबी मन ला,हँरियर कर जीयादे गा।

बरस बरस तैं गरज गरज के,सबके प्यास बुझाबे तैं।

गरज गरज के आबे बादर,आसो झन रोवाबे तैं।


पान पतउवा देख तोर बिन,अइलाय पड़े हेवे जी।

मुँह  फारे  भुँइया  हा  देखे,तोला  गारी   देवे  जी।

आकुल बाकुल जिवरा होगे, आके नित हरसाबे तैं।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 बालको(कोरबा)

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