गीत- मानसून
मान अउ सुन बात मानसून।
रझारझ पानी गिरा, बुलकत हे जून---
तोरेच थेभा मोर, खेती अउ बाड़ी।
तोरेच थेभा मोर, जिनगी के गाड़ी।
घाम बड़ टँड़ेड़त हे, अँउटत हे खून----
तैं आरो देबे ता, मैं हरिया धरहूँ।
जाँगर खपाहूँ, धरती पइयाँ परहूँ।
सोना उपजाहूँ मैं, खा बासी नून---
माटी महतारी के, सेवा धरम मोर।
तोरे संग बँधे हे, बबा करम मोर।
मोर देखे सपना ला,झन तैंहा चून---
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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