Saturday 1 July 2023

सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


जइसे गिरे असाढ़ म पानी, भुइयाँ भभकी मारे।

निकलै कई किसम के कीरा, रेंगय मुँह ला फारे।


रंग रंग के साँप निकलथे, रंग रंग के कीरा।

सावचेत नइ रहे म होथे, तन मन ला बड़ पीरा।

भरका बिला म पानी भरथे, गिल्ला रहिथे मिट्टी।

सलमल सलमल भागत दिखथे, इती उती पिरपिट्टी।

कीरा काँटा साँप बिच्छु ले, कतको जिनगी हारे।

जइसे गिरे असाढ़ म पानी, भुइयाँ भभकी मारे।


रसल वाइपर अजगर डोमी, माम्बा अउ मुड़हेरी।

सुतत उठत बस झूलत रहिथे, नयन म घेरी बेरी।

फिरे करैत ढोड़िहा धमना, जिया देख के काँपे।

बारिस घरी काल बन घूमय, कई किसम के साँपे।

ठौर ठिहा बन खेत खार में, रइथे डेरा डारे।

जइसे गिरे असाढ़ म पानी, भुइयाँ भभकी मारे।


फाँफा फुरफुन्दी चमगादड़, झिंगुरा मुसवा चाँटा।

कान खजूरा बत्तर अँधरी, बिच्छी कीरा काँटा।

डाढ़ा टाँग केकरा रेंगय, मेंढक टरटर बोले।

किलबिल किलबिल कीरा करथे, देखत जिवरा डोले।

झन सोवव बिन खाट धरा में, रेंगव नयन उघारे।

जइसे गिरे असाढ़ म पानी, भुइयाँ भभकी मारे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


सावधान होके लेवव बरसात के मजा

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