Saturday 1 July 2023

छत्तीसगढ़ के दलहन-तिलहन फसल- खैरझिटिया

 छत्तीसगढ़ के दलहन-तिलहन फसल- खैरझिटिया


                 चिप्स चाकलेट बिस्कुट मा कइसे देह आही, बड़ मरना हे, बिगन दार के लइका भातेच नइ खाय। रोज रोज दार घर मा चुरे घलो कइसे? सैकड़ा ले आगर पइसा खरचबे तब जाके एक किलो राहेर दार आथे। अइसनेच कहानी तेल के तको हे। ले ले के खवई मा बड़े छोटे सबे हख खागे हे। सुरसा कस मुँह उलाय महँगाई मा, हड़िया पउला भरबे नइ करे अउ इती खीसा उन्ना ऊपर उन्ना होवत जाथे। आजकल खवइया जादा हे, उपजइया कम,  ता खांव खांव तो होबे करही, चाहे चांउर, दार होय या तेल। जिहाँ पहली मनमाड़े उन्हारी घटकत रिहिस, तिहाँ आज सोवा परगे हे, भर्री भांठा तो दिखबे नइ करे। रीता भांठा भर्री मा  महल अटारी अउ अंधाधुन बनत कालोनी तिलहन दलहन फसल के घेच ल धर लेहे। कतको फसल तो चुक्ता सिराय के कगार मा तको आगे हे। हमर छत्तीसगढ़ धान के कटोरा कहिलाथे, फेर तिलहन दलहन फसल मा तको पहली बड़ सजोर रिहिस, आज किसनन्हा मन  पइसा के लालच मा भर्री भाँठा ला व्यपारी मन तीर बेच देवत हे, बचे खोचे भुइयाँ कल कारखाना के भेंट चढ़ जावत हे। सड़क तीर के खेत खार मा बड़े बड़े उद्यमी मनके कब्जा होगे हे, जेमन  सिरिफ समय के फसल बोय हे, जे दिन ब दिन बढ़त(दाम) जावत हे। उनला का चिंता? चिंता तो किसान ल हे। चारो कोती चमचम ले तार रुँधा गेहे। ओनहा कोनहा के किसान बपुरा मन के मरना होगे हे। गाय गरुवा तको छेल्ला होंगे हे। किसनहा मन करे ता का करे? गाय गरुवा कोनो प

पालना नइ चाहत हे, काबर कि न तो चरावन हे अउ न परिया। पैकेट के दूध दही अउ ट्रेक्टर हार्वेस्टर उंखर महत्ता ल खागे। गोबर छेना तो नवा जमाना के चीजे नइ रहिगे। खैर छोड़ ये सब बात ल, आज छत्तीसगढ़ मा होवइहा दलहन अउ तिलहन सफल के बारे मा विचार करबों। छत्तीसगढ़ मा फसल जादा मात्रा मा छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाका मा होथे। पठारी पहाड़ी कोती तको होथे फेर कमती। अउ व्व कोती मोटा अनाज कोदो, कुटकी, जव,जई,राई होथे, दलहन तिलहन, चाऊंर, गहूँ मैदानी छत्तीसगढ़ मा उपजथे। आवन छत्तीसगढ़ के मैदान मा दलहन तिलहन फसल के बारे मा जानन।

                   आजकल वइसे डोली खेत दिखे बर मिल जथे, फेर भर्री कमसल होवत जावत हे। दलहन तिलहन फसल ज्यातर भर्री मा घटकथे। पहली समय  के सुरता करबे ता चक के चक राहेर, तिली,चना,तिवरा, अरसी, सोयाबीन, मसूर,  सरसो देखत मन गदगद हो जावत रिहिस। फेर आज एकात ठन भर्री या डोली मा दिख गे ता खुद ला भागमानी जान। धान के फसल मा जतेक महिनत लगथे ,ओखर ले बड़ कमती महिनत उतेरा उन्हारी बर लगथे, तभे तो हाना रहय "बो दे गहूँ अउ निकल जा कहूँ"। फेर आज ये हाना लागू नइ हो सके, कीरा कांटा, गाय गरुवा, बन बेंदरा के मारे कहूँ नइ धियान देबे ता एको बीजा घलो देखना नोहर हो जही। पहली जिहाँ तक नजर जाय उतेरा उन्हारी घटके रहय, जादा रखवारी लगे न कीरा कांटा। फेर आज जे किसान कुछु बोवत हे ओखर मरना हे।

                हमर छत्तीसगढ़ मा तिलहन फसल के रूप मा मुख्य रूप ले सोयाबीन, सरसो, तिली, अरसी, मूंगफली अउ सूरजमुखी बोय जाथे। सोयाबीन एक समय सबे कोती कन्हार भुइयाँ मा उपजे ,फेर एक बेर  उड़ के चाबे वाले सांप के अफवाह के कारण कतको जघा बंद होगे। ता कतको जघा लुवे टोरे के बेरा पानी बादर के कारण।  सोयाबीन भर्री मा उपजथे, फेर धीरे धीरे भर्री डोली बनगे या उधोगी मनके नियत डोलगे। सोयाबीन खरीफ के फसल आय, इही मौसम मा उरीद, मूंग,राहेर जइसे दलहन फसल के खेती तको होथे। एक समय घरों घर अरसी के तेल बउरे जावत रिहिस, फेर आज के लइका मन का अरसी जाने अउ का ओखर तेल। अरसी बोवइया किसान बिरले दिखथे। अरसी के तेल बड़ गुणकारी होवय, रांधे खाय, चुपरे बर पहली खूब चलत रिहिस, एखर खरी घलो लाभकारी रहय। तिली के बोवइया तको जादा नइ दिखे। सरसो कहूँ न कहूँ कोती माँघ फागुन मा मन मोहत दिखी जथे। तिलहन मा सोयाबीन, मूंगफली,तिली खरीफ़ के ता सरसो अरसी रबी फसल के रूप मा बोय जाथे। कहूँ कहूँ कोती मूंगफली अउ सूरजमुखी खरीफ रबी दोनो मौसम मा बोवत दिखथे। धान बोय के बाद भर्री भांठा मा किसान मन सोयाबीन, राहेर, मूंग, उड़द, मुंगफली बोथे। ये फसल मन बर धान ले कम महिनत अउ कम उपजाऊ भुइयाँ घलो चलथे। तिलहन फसल के कम पैदावार, आज के लागत के हिसाब ले दाम नइ मिले के कारण अउ बिचौलिया मन के कारण, तेल के दाम आसमान छूवत हे।

                किसान मन धान लुवाय के बाद नमीयुक्त धनहा डोली मा लाख, लाखड़ी, मसूर उतेरथे ता भर्री मा चना, गहूँ ,सरसो, मसूर,अरसी ओनारथे। चना, तिवरा, मसूर, मूंग, उड़द,राहेर, मटर, मोठबीन, जिल्लो, ग्वार, खेसारी ये सब दलहन फसल आय। जेमा कुछ ला खरीफ फसल अउ कुछ ला रबी फसल के रूप मा बोय जाथे। तिवरा के खेत मा जिल्लो अपने आप खरपतवार के रूप मा उगे। पहली के किसान मन एखरो दार खायँ, अब तो काये तेला बनेच मन जाने घलो नही। चना, मसूर, अरसी,मटर,  सरसो,तिवरा रबी फसल के शान रहय। चना के खेत मा  छीताय बीच बीच मा सरसो के पिंवरा फूल अउ धनिया के सफेद फूल देखत जउन आत्मीय आनन्द मिलथे, वोला लिख के बयां नइ करे जा सके। अरसी के  घमाघम माते मसरंगी फूल जन्नत के सैर कराथे। ये सबके रखवारी करे बर जेखर बूता लगे, उंखर दिनचर्या सरग बरोबर लगे। रंग रंग के फूल,फर, गावत भौरा, नाचत तितली, चहकत तीतुर,मैना अउ बहकत पुरवइया, आ हाहाहा का कहना। खेत के मेड मा बने कुंदरा मा बइठे बइठे चिरई चिरगुन के गीत सुनत, कागभगोड़ा अउ खेत खार ला निहारत, बोइर अमली झडक़त कब चना,गहूँ, सरसो, मसूर, अरसी पक जथे पता नइ चले। फेर आज रखवार बन बेंदरा के मारे मर जावत हे, अउ बाँचे खोचे आस, चोरहा मनखे मन के मारे नास हो जाथे। एक अनार सौ बीमार के स्थिति कई गांव मा देखे बर मिलथे। आजो कई डहर चक के चक चना गहूँ माते दिखथे, फेर अब धीरे धीरे कमती होवत जावत हे। 

                 अरसी, जिल्लो,उरदानी,सोयाबीन के बोवइया कमतिच बचे हे। दलहन तिलहन फसल घर मा खाय,बउरे के साथ बाजार मा अच्छा दाम तको देथे। आज दलहन अउ तिलहन फसल के प्रति किसान मन के  कम रुझान चिंतनीय हे, अइसने रही ता आघू अउ सबे चीज महँगाही। शहर लहुटत गांव टेस् टेस मा अपन असली धन दौलत (खेत किसानी) ला बरोवत जावत हे, अउ आधुनिकता के चंगुल मा फँसके अभी हाँसत हे, फेर काली का होही तेखर चिटको संसो नइ करत हे। सरकार एक समय दलहनी फसल ल बढ़ाये बर पीली क्रांति लाय रिहिस आजो वइसने कुछु उपाय के जरूरत हे, ताकि धान के कटोरा कहिलइया हमर छत्तीसगढ़ दलहन तिलहन के डलिया तको कहाय।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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