Saturday 1 July 2023

कुदरत-सार छंद

 कुदरत-सरसी छंद


कुदरत के आघू मा कखरो, का गल पाही दाल।

बने बने मा जिनगी आये, कहर ढाय ता काल।।


सात समुंदर लहरा मारय, अमरै गगन पहाड़।

बरसै गरजै बादर रझरझ, बिजुरी मार दहाड़।।

पवन बवंडर बन ढाये ता, जगत उड़े बन पाल।

कुदरत के आघू मा कखरो, का गल पाही दाल।।


रेती पथरा माटी गोंटी, धुर्रा धूका जाड़।

लावा लद्दी बरफ बिमारी, जिनगी देय बिगाड़।।

सुरुज नरायण के बिफरे ले, बचही काखर खाल।

कुदरत के आघू मा कखरो, का गल पाही दाल।।


धरती डोलय मचय तबाही, काँपय जिवरा देख।

सुक्खा गरमी बाढ़ बिगाड़ै, लिखे लिखाये लेख।।

कुदरत के कानून एक हे, काय धनी कंगाल।

कुदरत के आघू मा कखरो, का गल पाही दाल।।


हुदरत हे कुदरत ला मनखे, होय गरब मा चूर।

धन बल गुण विज्ञान हे कहिके, कूदयँ बन लंगूर।।

जतन करत नित जीना पड़ही, कुदरत के बन लाल।

कुदरत के आघू मा कखरो, का गल पाही दाल।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


बिफर जाय पानी पवन, ता काखर अवकात।

धनी बली ज्ञानी गुणी, सबे उड़ँय बन पात।।

खैरझिटिया


बिफरजाँय तूफान प्रभावी झन होय

No comments:

Post a Comment