नीर- मतगयंद सवैया
रंग न गंध न स्वाद घलो नइ नीर तभो सबके मन भावै।
का मनखे अउ जीव जिनावर पेड़ तको के परान बचावै।।
ये जग जाय जले जल के बिन ये धरती जल पी हरियावै।
नीर हवै तब हे जिनगी बिन नीर चराचर जी नइ पावै।।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा
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