कलाकार- सरसी छन्द
कलाकार ला झन देते तैं, पेट पार परिवार।
हाय विधाता एखर सेती, कतकों हें लाचार।।
कला हवै अउ धन नइहे ता, दरदर भटका खायँ।
घर दुवार नइ चले कला मा, तभ्भो गायँ बजायँ।।
नाम गाँव हे कला दिखावत, ताहन हे अँधियार।
कलाकार ला झन देते तैं, पेट पार परिवार।।
करैं फिकर नइ घर दुवार के, चाहें नइ कुछु दाम।
नशा कला के अतका होथे, घुमैं छोड़ सब काम।।
करैं कलाकारी जीयत भर, चुचवायें नइ लार।
कलाकार ला झन देते तैं, पेट पार परिवार।
तन मन धन ले कला साधथें, तब पाथें दिल जीत।
गावत रहिथें सबदिन परबर, सुख अउ दुख मा गीत।।
कलाकार जे हावयँ सच्चा, ओखर होय न हार।
कलाकार ला झन देते तैं, पेट पार परिवार।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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