Monday, 29 July 2024

सावन महीना के स्वागत करत

 सावन महीना के स्वागत करत


###$सावन महीना(गीत)###


सावन आथे त मन मा,उमंग भर जाथे।

हरियर हरियर सबो तीर,रंग भर जाथे।


बादर  ले  झरथे,रिमझिम  पानी।

जिया जुड़ाथे,खिलथे जिनगानी।

मेंवा मिठाई,अंगाकर अउ चीला।

करथे झड़ी त,खाथे  माई  पिला।

खुलकूद लइका मन,मतंग घर जाथे।

सावन आथे त मन मा-------------।


भर जाथे तरिया,नँदिया डबरा डोली।

मन ला लुभाथे,झिंगरा मेचका बोली।

खेती किसानी,अड़बड़ माते रहिथे।

पुरवाही घलो ,मतंग  होके   बहिथे।

हँसी खुसी के जिया मा,तरंग भर जाथे।

सावन आथे त मन मा,---------------।


होथे जी हरेली  ले,मुहतुर तिहार।

सावन पुन्नी आथे,राखी धर प्यार।

आजादी के दिन, तिरंगा लहरथे।

भोले बाबा सबके,पीरा  ल हरथे।

भक्ति म भोला के सरी,अंग भर जाथे।

सावन आथे त मन मा--------------।


चिरई चिरगुन चरथे,भींग भींग चारा।

चलथे  पुरवाही, हलथे  पाना  डारा।

छत्ता  खुमरी  मोरा,माड़े रइथे दुवारी।

सावन महीना के हे,महिमा बड़ भारी।

बस  छाथे मया हर,हर जंग हर जाथे।

सावन आथे त मन मा--------------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

सावन के गीत-फिल्मी गीत मन मा

 पाछू बरस के एक कलेक्शन


सावन के गीत-फिल्मी गीत मन मा


              दया-मया,नीति-रीति, सुख-दुख, मिलन-बिछोह के संगे संग गीत संगीत मा कोनो न कोनो मौसम के झलकी दिखबेच करथे। तभो सबले ज्यादा गीत बरसात/सावन उपर देखे सुने बर मिलथे। अइसन मा जुन्ना गीत संगीत होय या फेर नवा, बिन सावन के कइसे बन सकथे। जब बिजुरी चमकथे, बादल गरजथे अउ रिमझिम फुहार झरथे ता एक एक करके सावन के गीत मन, अंतस मा उछाह अउ उमंग के बरसा करथे। सावन को आने दो कहिके सावन के अगोरा होय बर लगथे, फेर ये दरी बछर 2023 मा सावन झूम के तो आएच हे, पर जाय के नाम तको नइ लेवत हे काबर कि सावन दू ठन हे, अइसन मा सावन के मजा तो दुगुना होबे करही। पानी जिनगानी आय ता मौत घलो। फेर बिन पानी सब सून हे, ता सावन के एक ले दू होवई कइसे कोनो ला बियापही। किसान-मजदूर,पेड़- प्रकृति,जीव-जंतु संग जम्मो जड़ चेतन बरसा/सावन ले जिनगी पाथे, अउ मगन मन गीत गाथे, ता आवन हमू मन गुनगुनावन सावन के कुछ गीत मन ला-----


*सावन का महीना पवन करे शोर* फिल्म- मिलन 


*बदरा छाय कि झूले पड़ गए हाय-----आया सावन झूम के*  फिल्म- आया सावन झूम के


*बरसात में जब आएगा सावन का महीना* फिल्म-माँ


*वो मेरे सजन बरसात में आ, सावन की अँधेरी रात में आ*

फिल्म-पेंटर बाबू


*झिलमिल सितारों का आँगन होगा, रिमझिम बरसता सावन होगा* फिल्म-जीवन मृत्यु


*सावन के झूले पड़े,तुम चले आओ*  फ़िल्म- जुर्माना


*कुछ कहता है यह सावन* पफिल्म- मेरा गांव मेरा देश


*आहा ये रिमझिम प्रिय प्यारे प्यारे गीत लिये* फिल्म-उसने कहा था


*सावन आया बादल आये,मेरे पिया नही आये* फिल्म-जान हाजिर है


*अब के बरस सावन में, आग लगेगी बदन में*  फिल्म- चुपके चुपके


*लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है*  फिल्म-चांदनी


*कितने मौसम कितने सावन बीत गए* फिल्म-कहानी घर घर की


*सावन का महीना आ गया,जीना नही आता है जिन लोगो को,उन्हें जीना आ गया*  फिल्म- नहले वे दहला


*घटा छा गई है बहार आ गई है*  फिल्म-वारिस

 

*रिमझिम गिरे सावन सुलग सुलग जाए मन* फ़िल्म- मंजिल 


*मेघा रे मेघा रे,मत परदेश जा रे* फिल्म-  प्यासा सावन


*तुम्हें गीतों में ढालूंगा सावन को आने दो*  फिल्म- सावन को आने दो 


*हाय हाय ये मजबूरी, ये सावन*  फिल्म- रोटी कपड़ा और मकान


*मैं प्यासा तुम सावन, मैं दिल तुम धड़कन*  फिल्म-फरार


*रिमझिम के गीत सावन गाए*  फिल्म- अंजाना


*मेघा छाये आधी रात,बैरन बन गई निन्दिया* फिल्म- शर्मीली


*सावन बरसे तरसे दिल* फिल्म- दहक


*अब के सावन में जी डरे, रिमझिम तन पे पानी झरे* फिल्म-जैसा को तैसा


*मेरे मेरे नैना सावन भादो,फिर भी मेरा मन प्यासा* फिल्म- महबूबा


*पतझड़ सावन बसंत बहार, हर एक के रूत में मौसम चार*  फिल्म- सिंदूर 


*सावन का महीना आया*  फिल्म- आई मिलन की रात*


*सावन बीतो जाय पिहरवा*


*सावन बरसता है, तुमसे मिलने को ये दिल तरसता है*  फिल्म शानदार


*बरसे रे सावन,काँपे मेरा मन* फिल्म-दरिया दिल


*मेघा रे मेघा तेरा मन तरसा रे* फिल्म-लम्हें


*मेघा ओ रे मेघा तू तो जाए देश-विदेश* फिल्म-सुनयना


*सावन के झूलों ने मुझको बुलाया* फिल्म-निगाहें


*भीगी भीगी रातों में* फिल्म अजनबी


*कहाँ से आये बदरा*  फिल्म-चश्मे बद्दूर 


*एक लड़की भीगी भागी सी* फिल्म-  


*बरसो रे मेघा मेघा*  फ़िल्म-गुरु 


*सावन के बादलो!*  फिल्म-रतन


*रुमझुम बरसे बदरवा*  फिल्म- रतन


*परदेशी बालमा बादल आया* फिल्म-रतन


*चिंगारी कोई भड़के तो सावन उसे बुझाये*  फिल्म- अमर प्रेम


*बादल यूँ गरजता है, डर कुछ ऐसा लगता है,चमक चमक के, लपक के ये बिजली हम पे गिर जायेगी* फिल्म-बेताब


*सावन आया बादल छाए* अल्बम- साजन का घर


*कुछ कहता है यह सावन*  फिल्म- यह जमीन गा रही है


*हो गया रे यह सावन बैरी* फिल्म- सावन के गीत


*पड़ गए झूले,सावन रुत आई रे*  फिल्म- बहू बेगम


*सावन के महीने में,एक आग सी लगी सीने में*  फिल्म-शराबी


*बरसात के दिन आए,मुलाकात के दिन आए* फिल्म बरसात


*आज मौसम बड़ा बेईमान है बड़ा*  फिल्म- लोफर


*रिमझिम छाए घटाए, ओय का बात हो गई*  फिल्म-दो रास्ते


*बदरा रे,बरसो रे,बिन सावन* फिल्म- फस्ट लव लेटर


*बरसात में हमसे मिले तुम वो सजन तुमसे मिले* फिल्म- बरसात


*डम डम डिगा डिगा मौसम भीगा भीगा*  फिल्म- छलिया


*ये मौसम भी गया*  फिल्म- बलमा


*साजन रे साजन कहता है सावन*  फिल्म- दुलारा


*मौसम है भीगा भीगा रे* फिल्म- मेरे मुकद्दर


*भीगी हुई है रात मगर जल रहे है हम* फिल्म-संग्राम


*बरसात के मौसम में तन्हाई के आलम में* फिल्म- नाजायज


*रिमझिम रिमझिम,रूंझूम रूंझूम,भीगी भीगी रुत में,तुम हम हम तुन* फिल्म-1942 अ लव स्टोरी


*आखिर तुम्हें आना है जरा देर लगेगी बारिश का बहाना है* फिल्म- यलगार


*कितने सावन बरस गए, मेरे प्यासी नैना तरस गए* फिल्म- 20 साल बाद 


*मुझको बरसात बना लो,एक लम्बी रात बना लो,अपने जज़्बात बना लो* फिल्म-,जुनूनियत


*कोई लड़की है, जब वो गाती है, बारिश आती है* फिल्म- दिल तो पागल है


*ये मौसम ये बारिश, ये बारिश का पानी* फिल्म-हाफ गर्लफ्रेंड


* बरसात में हमसे मिले तुम सजन तुमसे मिले हम - बरसात


* ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात- बरसात की रात


* घटा घनघोर घोर, चोर मचाये शोर  मोरे सजन आजा - तानसेन


* काली घटा छाए मोरा जिया घबराए ऐसे में कोई - सुजाता


5* झिर-झिर बरसे बावरी अँखियाँ साँवरिया घर आ - आशीर्वाद


* झिरझिर झिरझिर बदरवा बरसे हो कारे कारे - परिवार


* ओ सजना बरखा बहार आई, अँखियों में प्यार लाई - परख


* नैनों में बदरा छाए बिजली सी चमके हाये, ऐसे में बलम मोहे गरवा लगा ले


* बरखा रानी जरा जम के बरसो, मेरा दिलवर जा न पाए झूम के बरसो (सबक)


* बरखा बैरन जरा थम के बरसो, पिय मेरे आजाएँ तो चाहे जम के तुम बरसो (सबक)


* ओ घटा साँवरी थोड़ी थोड़ी बावरी, हो गई है बरसात क्या, हर साँस है बहकी हुई - अभिनेत्री


* रिमझिम बरसे बादरवा, मस्त घटाएँ छाईं, पिया घर आजा, आजा पिया घर आजा - रतन


* बृष्टि परे टापुर-टुपुर - पहेली


* रिमझिम के तराने लेके आई बरसात, याद आई किसी से वो पहली मुलाकात - काला बाज़ार


* बदरा की छाँव तले नन्ही नन्ही बुँदिया - लेख


* रिमझिम के ये प्यारे प्यारे गीत लिए - उसने कहा था


             कतको प्रकार के भाव ले भराय सावन के ये सब गीत जे बेर सुनव ते  बेर मनभावन लगथे। ये तो रिहिस बदरा पानी ला समेटे गीत। कतको अइसनो गीत हें जेला रिमझिम फुहार मा तको फिल्माए गे हे, जेला देखबे तभे सावन दिखथे,फेर उक्त संकलित गीत मन सहज सावन के दर्शन करावत मन मा उमंग के झड़ी लगा देथे। आज के नवा गीत मा तको सावन हे, तभो जुन्ना सावनी सदाबहार गीत के पार नइ पा सके। ऊपर सँघरे गीत मन कस अउ कतको गीत हे, आपो मन के सुरता मा होही ता बताहू।


संकलन

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा (छग)

यहू ला जानव**

 **यहू ला जानव**


भूखण्ड/खेती भुइयाँ ले जुड़े शब्द


*मेड़*- खेत के चारो मुड़ा के पार।


*डोली/खेत*- मेड़युक्त भूखण्ड जिहाँ धान, गहूँ, चना या पानी ले पकइया फसल  बोय जाथे।


*भर्री*- बिना मेड़ के भूखण्ड जेमा पानी नइ माड़े, ज्यादातर येमा कम पानी मा पकइया नगदी फसल बोय जाथे।


*चक*- प्लाट, एक ले अधिक एकड़ के एके जघा स्थित खेत।


*खार*- बड़ अकन खेत या भर्री। खार के नामकरण भूखण्ड के स्थिति, दिशा, दशा,बनावट, गांव ,बाँध, पेड़ पात के अधिकता ला आधार बनावत होथे। जइसे- खाल्हे खार, रकसहूँ खार, दर्रा खार, बम्हरी खार, बन्धिया खार, खैरझिटी खार, चुहरी खार आदि कतको हे।


*गाँसा*- अइसन जघा जेमा बरसा के पानी गिरत साँठ माड़ जाथे। खेत के खँचका भाग।


*पखार*- अइसन डोली जिहाँ बरसा के पानी नइ माड़े, बल्कि सबे बोहा जथे। खेत के डिपरा भाग।


*मुही*- डोली के मेड़ मा बने छोटे भुलका, जेती ले पानी आथे जाथे। येला स्वेच्छा ले बनाये जाथे।


*भोक*- खेत के मेड मा बने अइसन भुलका जिंहा के खेत के पानी बोहा जथे। ये खुदे बन जाथे,एखर ले किसान मन ला नुकसान हो जथे।


*भरका*- बरसात के पानी पाके खेत या भर्री मा बने छोटे छोटे भुलका। 


*दर्रा*- भुइयाँ मा बने लामी लामा दरार। दर्रा गर्मी मा दिखथे, बरसा घरी मुँदा जथे।


*बिला*- केकरा अउ कतको जीव जानवर के द्वारा बनाये भुलका(छेद)। मेड पार मा कतको बिला दिख जथे।


*हदिक-हादक*- उबड़ खाबड़।


*उतारू/ढुलउ*- उतार जघा/ ढलान।


*चघउ*- चढ़ाव।


*बिच्छल*- पानी गिरे ले माटी मा चिकनाई आ जथे, अउ अइसन जघा मनखे के पांव साबुत नइ माड़े।


*गाड़ा रावन*- गाड़ा के दूनो चक्का ले बने रस्ता।


*पैडगरी*- मनखे मनके अवई जवई ले बने डहर।


*धरसा*- खेत खार जाए बर बने रस्ता/डहर/बाट


*हरिया*- जोतत बेरा किसान, खेत के एक निश्चित भाग ला नांगर बइला ले जोतत जथे।


*पाँत*- खेत के बन काँदी ला निंदे बर धरे एक निश्चित भाग।


*टोकान*- खेत के कोन्हा।


*खँड़*- किनारा/भाग।


*खोधरा*- गढ्ढा


*डिलवा*- डिपरा


*टेड़गी डोली*- चार ले जादा टोकान वाले डोली। अइसने डोली मा किसान मन बोवई या खेती काम के मुहतुर घलो करथे।


*लमती डोली*- लामा लामी डोली। 


*टेपरी डोली*- छोटे आकार के डोली।


*बाहरा डोली*- अइसन डोली जे कम संसाधन मा घलो जादा पैदावर देथे। पानी सहज आके भर जाथे। आकार प्रकार हिसाब ले, बड़े बाहरा, छोटे बाहरा, टेड़गी बाहरा बाहरा के कई प्रकार हे। बाहरा बहार शब्द ले बने हे, जिहाँ पैदावार घलो जादा होथे।


*राताखार*- ग़ांव ले दुरिहा मुरमहा भांठा खेत


*गर्दी रेंगाना*- खेत के बीचों बीच, पानी निकाले बर  रापा कुदारी मा बनाये छोट नाली।


*खँधाला*- सीढ़ी।


*साँधा*- खोल/गुफा


*पँवठा*- चिखला या कोनो दूभर रस्ता मा पाँव रख रख के चले बर रखे पथरा या लकड़ी।


*बनखरहा*- वो डोली या भर्री जिहाँ जादाच बन काँदी उपजथे।


*मउहारी*- मउहा के बन।


*कउहा रवार*- कउहा पेड़ के जंगल।


*अमरइया*- आमा बगीचा।


*जमराई*- राय जाम या चिरई जाम के बगीचा।


कँसियारा- काँसी बहुल खेत/भर्री


*डिही*-  पहली जमाना मा बसे बस्ती जे वर्तमान में उजाड़ होके बन बगीचा मा घिर गे हवै।


*चुहरी*- ये शब्द चाहली(पानी मा माते भुइँया) ले बने हे। अइसन जघा जेमा ज्यादातर पानी भरे रहिथे। 


*सोर्रा*- नाली नरवा असन छोट लम्भरी खेत, जिहाँ पानी माढ़े रथे।


*बतर/पाग*- बाँवत(धान बोय) बर उपयुक्त समय


*जरखेदी*-  चुकता, जमें।


*रेगहा*- एक विशेष दिन तिथि बाँधत खेत ला फसल बोय बर लेना।


*अधिया*- खातू,कचरा,धान,पान अउ जम्मो लागत ला आधा आधा लगाके खेती करना।


*कट्टू*-  लागत वागत काट पिट के एक निश्चित राशि या धान पान मा खेत बोना।


*भाँठा*- मटासी माटीयुक्त ठाहिल भुइयाँ, जिहाँ पानी नइ माढ़ें। ये रेतीला भी हो सकत हे।


*परिया*- अइसन जघा  जेमा खेती बाड़ी के काम नइ होय।


*चरागन*- गाय गरुवा मन के चारा चरे के जघा।


फुटहन- बहुतायत मात्रा में छोटे छोटे कटीले झाड़ीदार पेड़ वाले  बंजर क्षेत्र


*दइहान/ गौठान/खइरखा*- अइसन जघा जिहाँ बरदी(गाय गरवा के समूह) बिहना ठहरथे।


*भोड़ू/भिम्भोरा*- जमीन मा बने दीमक के घर,जिहाँ साँप, बिच्छी, गोइहा, खुसरे दिखथे।


*तरिया*- गाँव घर के उपयोग बर भरे पानी। तरिया के बनाबट,स्थिति, दशा दिशा अउ रुखराई के हिसाब ले नाम देखे सुने बर मिलथे।


*ढोंड़गी*- नरवा/नाला के छोटे रूप।


*पैठू*- पैठू तरिया ले जुड़े रहिथे, बरसा के पानी एखरो माध्यम ले तरिया मा आथें अउ जब भर जाथे ता निकलथे घलो।


*बन्धिया/बाँध*- खेत खार के सिचाई बर भरे पानी। बाँध मा *नहर नाली(सिंचाई बर बने नाला)* जुड़े रथे।


*उलट*- बाँध भरे के बाद जादा पानी निकले के जघा, 


*छापा*- पूरा/ बाढ़


*डबरा*- भुइयाँ मा बने गड्ढा, जिहाँ बरसा घरी पानी भराये रहिथे।


*घुरवा*- खातू कचरा फेके बर बने जघा।


*कुँवा*- जमीन के गहराई मा जलस्रोत।


*बावली*- जमीन के गहराई मा भरे पानी जिहाँ सीढ़ी रिथे।


*मसानघाट*- अइसन जघा जिहाँ मनखे मन ला ,मरे के बाद दफनाये, जलाए जाथे।


*खदान*- धातु,पथरा, छुहीमाटी निकाले बर भुइयाँ मा बने गड्ढा।


*कछार*- नदिया तीर के भुइयाँ।


*डुबान/ बुड़ान*- बांध या नरवा भरे के बाद, बांध ले लगे वो जघा जिहाँ पानी भर जाथे।


*माड़ा*- जंगली जानवर मन के रहे के जघा।


*सोलखी/कोलकी*- दू दीवार के बीच के तंग लामा लामी जघा


*अपासी*- सिंचित भुइयाँ


*लगानी*- अइसन जमीन जेखर लगान पटाये(भरना)बर लगथे


*खरखरहा*- ना गिल्ला ना सुक्खा, भर्री अइसने पाग मा बने जोताथे।


*किरचहा*- कठोर,कड़ा, टांठ।


*चिक्कन*- चिकना


*चिखला*- कीचड़


*लेटा*- लसलसा कीचड़ के गाड़ा चक्का या पाँव मा चपक जथे।


*निँदा*- निदाई करे के बाद निकले बन/खरपतवार


*मेड़ो/सिवान/सियार*- कोनो गाँव, शहर,या देश राज के आखरी छोर।


*सियार*- मेड़ो मा गड़े पथना, या कोनो चिन्हा।


*खंती*- खेत खार के एक निश्चित भाग ल कोड़ना, ज्यादातर खंती कोड़ के खेत ला बरोबर करे जाथे।


*गोदी*-  जमीन के एक निश्चित भाग ल कोड़े बर चिन्हित जघा। एक फुट गहरा अउ दस फुट समान लंबाई चौड़ाई के नापी भुइयाँ- एक गोदी।


*डंगनी*- गोदी नापे के पहली के अजारा एक पैमाना, ये ज्यादातर बांस के होय।


*ठिहा/आँट*- गोदी कोड़त बेरा गहराई के नाप बर छोड़े टापू। एखरे ले अंदाजा लगथे कि वो जघा कतका ऊँच रिहिस।


*ढेला*- भुइयाँ ला कोड़े/खने मा निकले छोट छोट साबुत खण्ड।


*गूँड़ा*- माटी के बुरादा।


*कन्हार डोली*- काला माटी वाले खेत।


*मटासी*- पिंवरा माटी वाले खेत।


*मुरमुहा*- मुरूम युक्त भुइयाँ।


*कनाछी*- रेती।


*कुधरिल*- रेत युक्त धूल।


*फुतकी/धुर्रा*- माटीयुक्त धूल।


*कुंड़/सेला*- नांगर जोतत बेरा बने चिन्हा।


*गोंटा*- जमीन मा पड़े पिवरा रंग के गोल गोल पथरा।


*कँसियारा*- काँसी युक्त खेत।


*फुटहन/कटही बन*- काँटेदार पेड़ पौधा ले युक्त भुइयाँ।


*नर्सरी*- फलदार,फूलदार,छायादार  अउ औषधीय वृक्ष के पौधा तैयार करे के जघा।


*कुलापा/पुलावा*- छोटे नहर नाली, छोटा नाला,


*रपटा*- कामचलाऊ नाली।


*भँसकना*- दीवार या मेड के ढहना/गिरना


*धँसना*-,जमीन में समाना


*कूना*- चना, गहूँ के कूढ़ी।


*मांदा*- क्यारी/ओरी


*बुकनी*- चिकना/गूँड़ा/चूरा।


*दुवार*- घर के आघू के खाली जघा, अंगना।


*बारी/बखरी*- घर के नजदीक साग भाजी लगाय के जघा।


*ढेंखरा*- नार चढ़े बर गड़े झाड़ीदार लकड़ी।


*कोठार/बियारा*- धानपान या अन्य फसल ला जिहाँ रखे, मिन्जे जाथे।


*रकबा/एकड़/हैक्टेयर/जरी*- जमीन नाप के पैमाना


*डोंगरी*- छोटे पर्वत


*पहाड़*- पर्वत


*घाटी*- पहाड़ ले लगे तंग गहरा स्थल


*मैदान*- समतल भुइयाँ


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

शिव महिमा(शिव छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 शिव महिमा(शिव छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


डमडमी डमक डमक। शूल बड़ चमक चमक।

शिव शिवाय गात हे। आस जग जगात हे।


चाँद चाकरी करे। सुरसरी जटा झरे।

अटपटा फँसे जटा। शुभ दिखे तभो छटा।


बड़ बरे बुगुर बुगुर। सिर बिराज सोम सुर।

भूत प्रेत कस दिखे। शिव जगत उमर लिखे।


कोप क्लेश हेरथे। भक्त भाग फेरथे।

स्वर्ग आय शिव चरण। नाम जाप कर वरण।


हिमशिखर निवास हे। भीम वास खास हे।

पाँव सुर असुर परे। भाव देख दुख हरे।


भूत भस्म हे बदन। मरघटी शिवा सदन।

बाघ छाल साँप फन। घुरघुराय देख तन।


नग्न नील कंठ तन। भेस भूत भय भुवन।

लोभ मोह भागथे। भक्त भाग जागथे।


शिव हरे क्लेश जर। शिव हरे अजर अमर।

बेल पान जल चढ़ा। भूत नाथ मन मढ़ा।


दूध दूब पान धर। शिव शिवा जुबान भर।

सोमवार नित सुमर। बाढ़ही खुशी उमर।


खंड खंड चर अचर। शिव बने सबेच बर।

तोर मोर ला भुला। दै अशीष मुँह उला।


नाग सुर असुर के। तीर तार दूर के।

कीट खग पतंग के। पस्त अउ मतंग के।


काल के कराल के। भूत  बैयताल के।

नभ धरा पताल के। हल सबे सवाल के।


शिव जगत पिता हरे। लेय नाम ते तरे।

शिव समय गति हरे। सोच शुभ मति हरे।


शिव उजड़ बसंत ए। आदि इति अनंत ए।

शिव लघु विशाल ए। रवि तिमिर मशाल ए।


शिव धरा अनल हवा। शिव गरल सरल दवा।

मृत सजीव शिव सबे। शिव उड़ाय शिव दबे।


शिव समाय सब डहर। शिव उमंग सुख लहर।

शिव सती गणेश के। विष्णु विधि खगेश के।


नाम जप महेश के। लोभ मोह लेश के।

शान्ति सुख सदा रही। नाव भव बुलक जही।


शिव चरित अपार हे। ओमकार सार हे।

का कहै कथा कलम। जीभ मा घलो न दम।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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सावन क्वीन-लावणी छंद

 सावन क्वीन-लावणी छंद


असली सावन क्वीन हरे हाँ, वो बहिनी महतारी मन।

धानी धरती के बेटी बन, जे सिधोय घर बारी बन।।


बिजुरी चमकै बादर गरजै, झरै रझारझ रझ पानी।

तभो करैं नित हॅंस सब बूता, मीठ मीठ बोलत बानी।।

नींदे कोड़े खेत खार ला, माटी महतारी मा सन।

असली सावन क्वीन हरे हाँ, वो बहिनी महतारी मन।।


देख दिखावा ले दुरिहा रहि, करम करत रहिथें सबदिन।

खेवनहार बने कलजुग के, सुरताये नइ एको छिन।।

अंतस तक हा हरियर रहिथे,फरिहर रहिथे मन अउ तन।

असली सावन क्वीन हरे हाँ, वो बहिनी महतारी मन।


सास ससुर ले दुरिहा हावै, जाने नइ घर बन जेहा।

सावन क्वीन हरौं मैं कहिके, नाचत गावत हे तेहा।।

फोटू खिंचा खिंचा हाँसत हें, साज सँवागा मा बन ठन।

असली सावन क्वीन हरे हाँ, वो बहिनी महतारी मन।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Thursday, 25 July 2024

कुंडलियाँ छंद

 कुंडलियाँ छंद


लंबा कर कानून के, धरे छोट के घेंच।

बात बड़े के होय ता, फँस जाये बड़ पेंच।

फँस जाये बड़ पेंच, करे का कोट कछेरी।

पद पइसा के तीर, लगावैं सबझन फेरी।

मूंदे आँखी कान, कलेचुप बनके खंबा।

देखे बस कानून, जीभ ला करके लंबा।


करजा के दम मा बड़े, बड़े बने हे आज।

लोक लाज के डर नही, नइ हे सगा समाज।

नइ हे सगा समाज, कोन देखाये अँगरी।

रंभा रति नचवाय, मंद पी तीरे टँगड़ी।

इँखरे हे सरकार, भले मर जावैं परजा।

सकल सुरत पद देख, बैंक तक देवै करजा।


फर्जी फाइल ला धरे, होगे बड़े फरार।

रोक छोट के साइकिल, गरजै पहरेदार।

गरजै पहरेदार, दिखाके लउठी डंडा।

नाक तरी धनवान, लुटैं सब ला बन पंडा।

पद पा पूँजी जोर, करैं कारज मनमर्जी।

भागे तज के देश, बनाके फाइल फर्जी।


छोट मँझोलन के रहत, बचे हवै ईमान।

गिरथें उठथें रोज के, बड़े बड़े धनवान।

बड़े बड़े धनवान, चलैं पइसा के दम मा।

धर इज्जत ईमान, जिये छोटे मन कम मा।

जादा के ले चाह, नियत नइ देवैं डोलन।

चादर भीतर पाँव, रखैं नित छोट मँझोलन।


माया पइसा मा मिले, पइसा मा रस रास।

इज्जत देखे जाय नइ, पइसा हे यदि पास।

पइसा हे यदि पास, पास वो सब पेपर मा।

रखे जेन मा हाथ, पहुँच जाये वो घर मा।

पइसा मा धूल जाय, चरित अउ बिरबिट काया।

कोन पार पा पाय, जबर पइसा के माया।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

लाल सोना(अवसर विशेष म)

 लाल सोना(अवसर विशेष म)


ऐसे नही की बाजार में टमाटर की कमी है। सबके पसरे में टमाटर दिखता है, फिर भी महंगा है, क्योंकि ये टमाटर किसानो का नही व्यापारियों का है। जमाखोरियो को सबक सिखाना होगा---नही तो---


सुनने में आया है कि, फलां गांव में टमाटर(कोल्ड स्टोरेज टमाटर में कीड़े के कारण) खाकर 20,25 लोग बीमार हो गए।


कुंडलियाँ

पसरा मा सबके दिखे, लाले लाल पताल।

एखर मतलब भाव बड़, लेवत हवै दलाल।।

लेवत हवै दलाल, रकम अड़बड़ हे भारी।

काये करै किसान, उजड़गे बखरी बारी।।

जमाखोर के शोर, बदलदिस नक्सा खसरा।

महँगा हवै पताल, तभो माढ़े सब पसरा।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

बाढ़न देना बर ल

 बाढ़न देना बर ल

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छँइहा  दिही   घर   ल।

दुरिहाही बुखार-जर ल।

बाबू  ग !  झन   काट,

बाढ़न   देना   बर  ल।


लामही   खाँधा    डारा।

जुरियाही पारा के पारा।

मताबोंन   तिरी   पासा।

चिरई-चुरगुन के होही बासा।

पंच   मनके,

पंचाइत  लगही।

हप्ता-हप्ता,

हॉट सजही।

डार खातू पानी,

भोगान देना जर ल।

बाबू ग ! झन काट,

बाढ़न देना बर ल।


का मयना का सुवा?

रंग रंग के चिरई आही।

झूलना बाँध  देबे बाबू,

संगी संगवारी झूलाही।

नाचही चीटरा,ए डारा ले वो डारा।

कंऊवा  बांटही, कांव  कांव चारा।

पाना के भुर्री बारबोन,

छेरी-पठरु खाही फर ल।

बाबू ग!झन काट,

बाढ़न देना बर ल।


बन्दन वाले महाबीर रखबोन,

सकलाही  सगा-सोदर।

नाच-नाच के आरती करबोन,

मढ़ाबोन   लम्बोदर।

बर बिहाव बर"बर"

बड़ काम आथे।

एखरेच छँइहा म,

बारात  परघाथे।

इही तो चिन्हारी ए गांव के,

जेन अलगाथे गाँव सहर ल।

बाबू ग!झन काट,

बाढ़न देना बर ल।


      जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

         बाल्को(कोरबा)


एकदम जुन्ना रचना, अचानक दिखगे

श्री गुरुवैः नमः

 श्री गुरुवैः नमः


पहली गुरु दाई ददा, दूसर ज्ञान अधार।

सीख देय गुरु तीसरा, हें सबला जोहार।।

खैरझिटिया


जड़ चेतन जेखर ले भी मोला सीखे समझे ल मिलत हे, सब ला गुरु मान, गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर मा बारम्बार प्रणाम।।

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


चेला के चरचा चले, बढ़े गुरू के शान।

नता गुरू अउ शिष्य के, जग मा हवै महान।

जग मा हवै महान, गुरू के सब जस गावै।

दुःख दरद दुरिहाय, खुशी जीवन मा लावै।

सत के डहर बताय, झड़ाये झोल झमेला।

गुरू हाथ ला थाम, कमावै यस जस चेला।


जीवन मा उल्लास के, रंग गुरू भर जाय।

गुरू भक्ति सबले बड़े, देवन माथ नँवाय।

देवन माथ नँवाय, गुरू के सुमिरन करके।

अँधियारी दुरिहाय, गुरू दीया कस बरके।

गुणी गुरू के ग्यान, करे निर्मल तन अउ मन।

जौने गुरू बनाय, सुफल हे तेखर जीवन।।


डगमग डगमग पग करे, जिवरा जब घबराय।

रद्दा सबो मुँदाय तब, आशा गुरू जगाय।

आशा गुरू जगाय, उबारे जीवन नैया।

खुशी शांति के ठौर, गुरू के पावन पैया।

डर जर दुख जर जाय, बरे अन्तस मन जगमग।

गुरू कृपा जब होय, पाँव हाले नइ डगमग।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा (छग)

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सरसी छन्द - गुरू महिमा


गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।

भव सागर ले सहज तरे बर,बना गुरू पतवार।


छाँट छाँट के बने चीज ला,अंतस भीतर भेज।

उजियारा करथे जिनगी ला,बन सूरज के तेज।

जल जाथे जर जहर जिया के,लोभ मोह संताप।

भटक जानवर कस झन बइहा,नता गुरू सँग खाप।

ज्ञान आचमन कर रोजे के,पावन गंगा धार।

गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।


धीर वीर ज्ञानी अउ ध्यानी,सबो गुरू के देन।

मानै बात गुरू के हरदम,पावै यस जश तेन।

गुरू बिना ये जग मा काखर,बगरे हावै नाम।

महिनत करले कतको चाहे,बिना गुरू ना दाम।

ठाहिल हीरा असन गुरू हे,गुरू कमल कचनार।

गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।


गुरू बना जीवन मा बढ़िया,कर कारज नित हाँस।

गुरू सहारा जब तक रहही,गड़े कभू नइ फाँस।

नेंव तरी के पथरा बनके,गुरू सदा दब जाय।

यश जश बाढ़े जब चेला के,गुरू मान तब पाय।

गावै गुण सब लोक गुरू के,गुरू करै उपकार।

गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।


खैरझिटिया


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


रूपमाला छंद


गुरु बिना भव कोन तरथे,कोन करथे राज।

हाथ गुरु के सिर मा होवय,छोट तब सब ताज।

घोर अँधियारी मिटाथे,दुख ल देथे टार।

वो चरण मा मैं नँवावों,माथ बारम्बार।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़

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सागर मंथन कस मन मथदे(कुकुभ छंद)

 सागर मंथन कस मन मथदे(कुकुभ छंद)


सागर मंथन कस मन मथके, मद महुरा पी जा बाबा।

दुःख द्वेस जर जलन जराके, सत के बो बीजा बाबा।


मन मा भरे जहर ले जादा, नइहे कुछु अउ जहरीला।

येला पीये बर शिव भोला, देखादे तैंहर लीला।

सात समुंदर घलो मथे मा, विष अतका नइ तो होही।

जतका मनखे मन कर हावय, देख तोर अन्तस रोही।

बड़े  छोट  ला घूरत  हावय, साली  ला जीजा बाबा।

सागर मंथन कस मन मथके, मद महुरा पी जा बाबा।


बोली भाँखा करू करू हे, मार काट होगे ठट्ठा।

अहंकार के आघू बइठे, धरम करम सत के भट्ठा।

धन बल मा अटियावत घूमय, पीटे मनमर्जी बाजा।

जीव जिनावर मन ला मारे, बनके मनखे यमराजा।

दीन  दुखी  मन  घाव  धरे  हे, आके  तैं सी जा बाबा।

सागर मंथन कस मन मथके, मद महुरा पी जा बाबा।


धरम करम हा बाढ़े निसदिन, कम होवै अत्याचारी।

डरे  राक्षसी  मनखे  मनहा, कर तांडव हे त्रिपुरारी।

भगतन मनके भाग बनादे, फेंक असुर मन बर भाला।

दया मया के बरसा करदे, झार भरम भुतवा जाला।

रहि  उपास  मैं  सुमरँव तोला, सम्मारी  तीजा  बाबा।

सागर मंथन कस मन मथके, मद महुरा पी जा बाबा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


जय भोले,,भगवान भोला सबके आस पुराये💐💐

बजट अउ आम आदमी

 बजट अउ आम आदमी


आँसों  फेर बजट ला, देखत हे आम आदमी।

आसा के आगी मा हाथ, सेकत हे आम आदमी।।


कखरो मुख मा कहाँ, नाम गाँव रथे इंखर,

ये जग मा सबर दिन, नेपत हे आम आदमी।


पेट्रोल डीजल टोल टेक्स, कुछु मा नइहे राहत,

आहत हो गाड़ी कार ला, बेचत हे आम आदमी।।


न कभू मरे न कभू मोटाय, का खाय का बचाय,

घानी के बने बइला तेल, पेरत हे आम आदमी।।


का बड़े का छोटे, सब खाय इंखरे कमाई ला,

अर्थव्यवस्था ला बोहे, लेगत हे आम आदमी।।


देश राज संस्कृति, अउ संस्कार के बन पुजारी।

खुद के ठिहा ठौर ला, लेसत हे आम आदमी।।


पिसाके दू पाटा बीच, तेल नून आँटा बीच,

सब दिन बस पापड़, बेलत हे आम आदमी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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आम आदमी


सरकार के उपकार मा, हलाल बनके आम आदमी।

बनत रिहिस मसाल पर,मलाल बनगे आम आदमी।।


न ऊपर वाले जाने, ना नीचे वाले कभू माने ,

सिरिफ सपना मा,जलाल बनगे आम आदमी।।


असकटाके गुलामी के बेड़ी मा,नित फंदाय फंदाय,

खास बने के चाह मा, दलाल बनगे आम आदमी।।


शान शौकत के सपना ला, कभू पाँख नइ लगिस,

आन के सुरा शौक बर, कलाल बनगे आम आदमी।


दुबके दुबके नाम गाँव अउ, पद पार के संसो मा,

माँगे बर हक अपन, अलाल बनगे आम आदमी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)

बचपन बरसा मा(गीत)

 बचपन बरसा मा(गीत)


बचपना हिलोर मारे रे,रिमझिम बरसात मा।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा......।


कागज के डोंगा बना धार मा,बोहावन।

घानी मूँदी खेलन,अड़बड़ मजा पावन।

पाछू पाछू भागन,देख फाँफा फुरफुंदी।

रहिरहि के भींगन, झटकारन बड़ चुंदी।

दया मया रहय,हमर बोली बात मा.......।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा...।


घर ले निकलन,ददा दाई ले बचके।

धार  ल  रोकन, माटी पथरा रचके।

तरिया  के पार में,बइठे गोटी फेंकन।

गोरसी के आगी में,हाथ गोड़ सेंकन।

मन रमे राहय,माटी गोटी पात मा........।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा..।


बरसा के बेरा,करे झक्कर झड़ी।

खेलेल  बुलाये,संगी साथी गड़ी।

रीता नइ राहन,हमन एको घड़ी।

खोइला मिठाये,भाये काँदा बड़ी।

सबे खुशी राहय,गाँव गली देहात मा....।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा..।


झूलन बंभरी मा,खेत खार जावन।

नदी पहाड़ खेलन,लोहा गड़ावन।

बिच्छल रद्दा मा, मनमाड़े उंडन।

माटी ह  गाँवे के,लागे जी कुंदन।

बिन माँगे मया मिले,वो दरी खैरात मा...।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा...।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

शिव सुमरनी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 शिव सुमरनी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


डमडमी डमक डमक। शूल बड़ चमक चमक।

शिव शिवाय गात हे। आस जग जगात हे।


चाँद चाकरी करे। सुरसरी जटा झरे।

अटपटा फँसे जटा। शुभ दिखे तभो छटा।


बड़ बरे बुगुर बुगुर। सिर बिराज सोम सुर।

भूत प्रेत कस दिखे। शिव जगत उमर लिखे।


कोप क्लेश हेरथे। भक्त भाग फेरथे।

स्वर्ग आय शिव चरण। नाम जाप कर वरण।


हिमशिखर निवास हे। भीम वास खास हे।

पाँव सुर असुर परे। भाव देख दुख हरे।


भूत भस्म हे बदन। मरघटी शिवा सदन।

बाघ छाल साँप फन। घुरघुराय देख तन।


नग्न नील कंठ तन। भेस भूत भय भुवन।

लोभ मोह भागथे। भक्त भाग जागथे।


शिव हरे क्लेश जर। शिव हरे अजर अमर।

बेल पान जल चढ़ा। भूत नाथ मन मढ़ा।


दूध दूब पान धर। शिव शिवा जुबान भर।

सोमवार नित सुमर। बाढ़ही खुशी उमर।


खंड खंड चर अचर। शिव बने सबेच बर।

तोर मोर ला भुला। दै अशीष मुँह उला।


नाग सुर असुर के। तीर तार दूर के।

कीट खग पतंग के। पस्त अउ मतंग के।


काल के कराल के। भूत  बैयताल के।

नभ धरा पताल के। हल सबे सवाल के।


शिव जगत पिता हरे। लेय नाम ते तरे।

शिव समय गति हरे। सोच शुभ मति हरे।


शिव उजड़ बसंत ए। आदि इति अनंत ए।

शिव लघु विशाल ए। रवि तिमिर मशाल ए।


शिव धरा अनल हवा। शिव गरल सरल दवा।

मृत सजीव शिव सबे। शिव उड़ाय शिव दबे।


शिव समाय सब डहर। शिव उमंग सुख लहर।

शिव सती गणेश के। विष्णु विधि खगेश के।


नाम जप महेश के। लोभ मोह लेश के।

शान्ति सुख सदा रही। नाव भव बुलक जही।


शिव चरित अपार हे। ओमकार सार हे।

का कहै कथा कलम। जीभ मा घलो न दम।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

काखर गुण जस गावौं-सार छंद

 काखर गुण जस गावौं-सार छंद


अद्भुत प्रतिभा भरे पड़े हे, काखर गुण जस गावौं।

उड़े हवा मा मैं मैं कहिके, वोला का समझावौं।।


कोनो जल ला कोनो थल ला, कोनो नभ ला नाँपे।

लड़े शेर बघवा भलवा ले, देखत जिवरा काँपे।।

दुर्लभ कारज करे कलेचुप, काखर नाम गिनावौं।

अद्भुत प्रतिभा भरे पड़े हे, काखर गुण जस गावौं।।


कोनो अतुलित बल के स्वामी, कोनो धन के राजा।

कोनो अद्भुत नाचे गाये, कोनो पीटे बाजा।।

कतको करतब हवै करइया, देख दंग रहि जावौं।

अद्भुत प्रतिभा भरे पड़े हे, काखर गुण जस गावौं।।


कलाकार के कला गजब हे, हावय सेवक दानी।

शूरवीर रँग रूप तेज मा, हें बड़ ज्ञानी ध्यानी।।

कठिन साधना सत जप तप ला, रोजे माथ नवावौं।

अद्भुत प्रतिभा भरे पड़े हे, काखर गुण जस गावौं।।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Friday, 19 July 2024

आजा बादर(गीत)

 आजा बादर(गीत)


तैं बरसबे के नही बता बादर।

लगथे घुरघुरासी,

आथे बड़ रोवासी,

अब जादा झन तैं,सता बादर-----।


दर्रा  हनत  डोली  हे,धान  मरत हावै।

आके तैं जियादे,मोर आस जरत हावै।

कोठी काठा उन्ना हे,उन्ना हे बोरा बोरी।

घाम  बड़  टँड़ेरत  हे,धान  बरय  होरी।

उमड़ घुमड़ आएस,

अउ धान ला बोआएस,

अब नइ हे तोर पता बादर--------।


देखत देखत तोला,तोर नाँव रटत रहिथों।

आस  धर  तोरे ,खेत  मा खटत  रहिथों।

तोला गिरही कहिके,जिनगी के जुआ खेले हौं।

भर  जा  भले  घर मा,जा खपरा ल उसेले हौं।

तोर मान गौन करथों,

तोर पँवरी रोज परथों,

काबर हस मोर ले खता बादर--------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

Monday, 15 July 2024

किसन्हा आसिक.....

 ....किसन्हा आसिक.....


हव मय आसिक ऑव,

माटी महतारी के|

नागंर बैला गाड़ी के|

पईली काठा खॉड़ी के|

रापा गैंयती कुदारी के|


करथो मया खॉटी,

खाथो नून बासी|

रहिथो वइसने जइसे

दल  म रेगें चॉटी|

भूलागे भोंभरा,

चुंहगे छानी|

कसके छय महिना

अब चलही किसानी|

अब न बात होही,

न मुलाखात होही..........|

जेन भी होही,

किसानी के बाद होही....|


चुक्ता दिन खेत म बीते,

रतिहा सिरिफ खटिया दिखे|

कोनो अगोरे,

चाहे कोनो हाथ जोरे|

किसन्हा अपन,

खेती ल नई छोंड़े|

न बिरस्पत मिलौ,

न ईतवार मिलौ |

न आसाढ़ मिलौ,

न कुवार मिलौ |

न दिन मिलबोन 

न रात मिलबोन..................|

मिलबोन त अब

किसानी के बाद मिलबोन.....|


सुतत उठत बईठत

ऑखी म खेतीखार दिखे|

मेहनत के कलम ले किसन्हा

संसार के भाग लिखे  |

न घर बर टेम हे,

न बन बर टेम हे|

न काली टेम हे

न आज..................|

टेम मिलही

 त किसानी के बाद....|


त चल मया ल,

एकमई होन दे..................|

फेर पहिली बावत बियासी,

अउ लुवई होन दे...............|

                          जीतेन्द्र वर्मा

                        खैरझिटी (राज.)

कतको हे

 


::::::::कतको हे::::::::


भाई भाई ल,लड़इय्या  कतको हे।

मीत मया ल, खँड़इय्या कतको हे।


लिगरी  लगाये  बिन  पेट  नइ  भरे,

रद्दा म खँचका करइय्या कतको हे।


हाथ ले छुटे नही,चार आना  घलो,

फोकट के धन,धरइय्या कतको हे।


रोपे  बर  रूख,रोज रोजना धर लेथे,

बाढ़े पेड़ पात ल,चरइय्या कतको हे।


जात - पात  भेस म,छुटगे देश,

स्वारथ बर मरइय्या कतको हे।


दूध दुहइय्या कोई,दिखे घलो नहीं,

फेर  दुहना ल,भरइय्या कतको हे।


पलइया पोंसइया सिरिफ दाई ददा,

मरे  म,खन के,गड़इय्या कतको हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

पाके पाके बिही

 जाम बिही तक खाय बर, सोचें पड़थे आज।

जर बुखार जुड़ हो जथे, बोलत आथे लाज।

खैरझिटिया

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


पाके पाके बिही


पाके पाके बिही।

सोचत होहू दिही।

गय फोकट के जमाना,

कोनो पैसा मा लिही??

पाके पाके बिही-----1


चाँट चउमिन खाहू।

त चाँट के जाहू।।

फल फुलवारी खाही,

तिही हा जिही।।

पाके पाके बिही------2


पइधथे बेंदरा।

ता पर जथे चेंद्रा।

मनखे पइधही,

ता कोन बने किही?

पाके पाके बिही------3


लटलट ले फरे देख।

पारा परोसी जरे देख।।

दर्जन भर एके घांव,

झडक देथों मिही।

पाके पाके बिही--------4


कतको नइ खा सके।

कतको नइ पा सके।।

नवा जुग लील दिस,

बखरी बगीचा डिही।

पाके पाके बिही--------5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Sunday, 14 July 2024

सावन के गीत-फिल्मी गीत मन मा

 सावन के गीत-फिल्मी गीत मन मा


              दया-मया,नीति-रीति, सुख-दुख, मिलन-बिछोह के संगे संग गीत संगीत मा कोनो न कोनो मौसम के झलकी दिखबेच करथे। तभो सबले ज्यादा गीत बरसात/सावन उपर देखे सुने बर मिलथे। अइसन मा जुन्ना गीत संगीत होय या फेर नवा, बिन सावन के कइसे बन सकथे। जब बिजुरी चमकथे, बादल गरजथे अउ रिमझिम फुहार झरथे ता एक एक करके सावन के गीत मन, अंतस मा उछाह अउ उमंग के बरसा करथे। सावन को आने दो कहिके सावन के अगोरा होय बर लगथे, फेर ये दरी बछर 2023 मा सावन झूम के तो आएच हे, पर जाय के नाम तको नइ लेवत हे काबर कि सावन दू ठन हे, अइसन मा सावन के मजा तो दुगुना होबे करही। पानी जिनगानी आय ता मौत घलो। फेर बिन पानी सब सून हे, ता सावन के एक ले दू होवई कइसे कोनो ला बियापही। किसान-मजदूर,पेड़- प्रकृति,जीव-जंतु संग जम्मो जड़ चेतन बरसा/सावन ले जिनगी पाथे, अउ मगन मन गीत गाथे, ता आवन हमू मन गुनगुनावन सावन के कुछ गीत मन ला-----


*सावन का महीना पवन करे शोर* फिल्म- मिलन 


*बदरा छाय कि झूले पड़ गए हाय-----आया सावन झूम के*  फिल्म- आया सावन झूम के


*बरसात में जब आएगा सावन का महीना* फिल्म-माँ


*वो मेरे सजन बरसात में आ, सावन की अँधेरी रात में आ*

फिल्म-पेंटर बाबू


*झिलमिल सितारों का आँगन होगा, रिमझिम बरसता सावन होगा* फिल्म-जीवन मृत्यु


*सावन के झूले पड़े,तुम चले आओ*  फ़िल्म- जुर्माना


*कुछ कहता है यह सावन* फिल्म- मेरा गांव मेरा देश


*आहा ये रिमझिम प्रिय प्यारे प्यारे गीत लिये* फिल्म-उसने कहा था


*सावन आया बादल आये,मेरे पिया नही आये* फिल्म-जान हाजिर है


*अब के बरस सावन में, आग लगेगी बदन में*  फिल्म- चुपके चुपके


*लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है*  फिल्म-चांदनी


*कितने मौसम कितने सावन बीत गए* फिल्म-कहानी घर घर की


*सावन का महीना आ गया,जीना नही आता है जिन लोगो को,उन्हें जीना आ गया*  फिल्म- नहले वे दहला


*घटा छा गई है बहार आ गई है*  फिल्म-वारिस

 

*रिमझिम गिरे सावन सुलग सुलग जाए मन* फ़िल्म- मंजिल 


*मेघा रे मेघा रे,मत परदेश जा रे* फिल्म-  प्यासा सावन


*तुम्हें गीतों में ढालूंगा सावन को आने दो*  फिल्म- सावन को आने दो 


*हाय हाय ये मजबूरी, ये सावन*  फिल्म- रोटी कपड़ा और मकान


*मैं प्यासा तुम सावन, मैं दिल तुम धड़कन*  फिल्म-फरार


*रिमझिम के गीत सावन गाए*  फिल्म- अंजाना


*मेघा छाये आधी रात,बैरन बन गई निन्दिया* फिल्म- शर्मीली


*सावन बरसे तरसे दिल* फिल्म- दहक


*अब के सावन में जी डरे, रिमझिम तन पे पानी झरे* फिल्म-जैसा को तैसा


*मेरे मेरे नैना सावन भादो,फिर भी मेरा मन प्यासा* फिल्म- महबूबा


*पतझड़ सावन बसंत बहार, हर एक के रूत में मौसम चार*  फिल्म- सिंदूर 


*सावन का महीना आया*  फिल्म- आई मिलन की रात*


*सावन बीतो जाय पिहरवा*


*सावन बरसता है, तुमसे मिलने को ये दिल तरसता है*  फिल्म शानदार


*बरसे रे सावन,काँपे मेरा मन* फिल्म-दरिया दिल


*मेघा रे मेघा तेरा मन तरसा रे* फिल्म-लम्हें


*मेघा ओ रे मेघा तू तो जाए देश-विदेश* फिल्म-सुनयना


*सावन के झूलों ने मुझको बुलाया* फिल्म-निगाहें


*भीगी भीगी रातों में* फिल्म अजनबी


*कहाँ से आये बदरा*  फिल्म-चश्मे बद्दूर 


*एक लड़की भीगी भागी सी* फिल्म-  


*बरसो रे मेघा मेघा*  फ़िल्म-गुरु 


*सावन के बादलो!*  फिल्म-रतन


*रुमझुम बरसे बदरवा*  फिल्म- रतन


*परदेशी बालमा बादल आया* फिल्म-रतन


*चिंगारी कोई भड़के तो सावन उसे बुझाये*  फिल्म- अमर प्रेम


*बादल यूँ गरजता है, डर कुछ ऐसा लगता है,चमक चमक के, लपक के ये बिजली हम पे गिर जायेगी* फिल्म-बेताब


*सावन आया बादल छाए* अल्बम- साजन का घर


*कुछ कहता है यह सावन*  फिल्म- यह जमीन गा रही है


*हो गया रे यह सावन बैरी* फिल्म- सावन के गीत


*पड़ गए झूले,सावन रुत आई रे*  फिल्म- बहू बेगम


*सावन के महीने में,एक आग सी लगी सीने में*  फिल्म-शराबी


*बरसात के दिन आए,मुलाकात के दिन आए* फिल्म बरसात


*आज मौसम बड़ा बेईमान है बड़ा*  फिल्म- लोफर


*रिमझिम छाए घटाए, ओय का बात हो गई*  फिल्म-दो रास्ते


*बदरा रे,बरसो रे,बिन सावन* फिल्म- फस्ट लव लेटर


*बरसात में हमसे मिले तुम वो सजन तुमसे मिले* फिल्म- बरसात


*डम डम डिगा डिगा मौसम भीगा भीगा*  फिल्म- छलिया


*ये मौसम भी गया*  फिल्म- बलमा


*साजन रे साजन कहता है सावन*  फिल्म- दुलारा


*मौसम है भीगा भीगा रे* फिल्म- मेरे मुकद्दर


*भीगी हुई है रात मगर जल रहे है हम* फिल्म-संग्राम


*बरसात के मौसम में तन्हाई के आलम में* फिल्म- नाजायज


*रिमझिम रिमझिम,रूंझूम रूंझूम,भीगी भीगी रुत में,तुम हम हम तुन* फिल्म-1942 अ लव स्टोरी


*आखिर तुम्हें आना है जरा देर लगेगी बारिश का बहाना है* फिल्म- यलगार


*कितने सावन बरस गए, मेरे प्यासी नैना तरस गए* फिल्म- 20 साल बाद 


*मुझको बरसात बना लो,एक लम्बी रात बना लो,अपने जज़्बात बना लो* फिल्म-,जुनूनियत


*कोई लड़की है, जब वो गाती है, बारिश आती है* फिल्म- दिल तो पागल है


*ये मौसम ये बारिश, ये बारिश का पानी* फिल्म-हाफ गर्लफ्रेंड


             कतको प्रकार के भाव ले भराय सावन के ये सब गीत जे बेर सुनव ते  बेर मनभावन लगथे। ये तो रिहिस बदरा पानी ला समेटे गीत। कतको अइसनो गीत हें जेला रिमझिम फुहार मा तको फिल्माए गे हे, जेला देखबे तभे सावन दिखथे,फेर उक्त संकलित गीत मन सहज सावन के दर्शन करावत मन मा उमंग के झड़ी लगा देथे। आज के नवा गीत मा तको सावन हे, तभो जुन्ना सावनी सदाबहार गीत के पार नइ पा सके। ऊपर सँघरे गीत मन कस अउ कतको गीत हे, आपो मन के सुरता मा होही ता बताहू।


संकलन

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा (छग)

Thursday, 11 July 2024

गीत-धर्म धजा लहराही कोन

 गीत-धर्म धजा लहराही कोन


ये कलयुग मा दीन हीन के, साथ देय बर आही कोन।

सत के रथ के बने सारथी, धर्म धजा फहराही कोन।।


करिया नाँग घलो ले बिखहर, बनगे हावैं मनखे आज।

स्वारथ खातिर फुस्कारत हें, बेच-भाँज डारे हें लाज।

सबे ललावैं मंद माँस बर, दूध दही घी खाही कोन।

सत के रथ के बने सारथी, धर्म धजा फहराही कोन।।


रास बिना नइ रास आय कुछु, गोप गुवालिन हें परसान।

बुचवा होगे बर कदम्ब रुख, सबे उधौ बन बाँटैं ग्यान।।

गोरा रंग रँगत हें मनखे, करिया किसन कहाही कोन।

सत के रथ के बने सारथी, धर्म धजा फहराही कोन।।


बिन ग्वाला के गाय गरू अउ, बिन मुरली के मधुबन रोय।

दाता तरसे दार भात बर, देखावा के पूजा होय।

सुख सुविधा तज दनुज दलन बर,कंस नगरिया जाही कोन।

सत के रथ के बने सारथी, धर्म धजा फहराही कोन।।


कौरव मन हर गरजत हावैं, धन अउ बल के बल मा रोज।

फिरैं मिलावत हाँ में हाँ सब, बन दरबारी खा पी बोज।

सच्चा हावैं तिंखर न्याय बर, दूत बने बतियाही कोन।

सत के रथ के बने सारथी, धर्म धजा फहराही कोन।।


छल प्रपंच होवत हे भारी, अँधरा के सिर मा हे ताज।

हाँसत हवै दुशासन हिहि हिहि, चुपे चाप हें सभा समाज।

पापी मनके गरब तोड़ के, दुरपति लाज बचाही कोन।

सत के रथ के बने सारथी, धर्म धजा फहराही कोन।।


अधमी घर के छप्पन मेवा, तज के खाही भासी भात।

कोन विधुर ला गला लगाही, कोन रही रण मा दिन रात।

धरम करम के हाथ काँपही, गीता श्लोक सुनाही कोन।

सत के रथ के बने सारथी, धर्म धजा फहराही कोन।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Monday, 8 July 2024

डॉक्टर झोला छाप(दोहा गीत)

 डॉक्टर डे पर---


डॉक्टर झोला छाप(दोहा गीत)


देख घूम के गांव मा,पोटा जाही कॉप।

थेभा हमर गरीब के,डॉक्टर झोला छाप।।


कहिके अँगठा छाप तैं,जेला दिये भगाय।

ओखर कोनो अउ नहीं,उही सहारा आय।

रहिके हमरे साथ मा,करथे हमर इलाज।

सहै उधारी ला घलो,होय सहुलियत काज।

कलपे रात बिकाल के,घर मा माई बाप।

थेभा हमर गरीब के,डॉक्टर झोला छाप।


जाने दवई देय बर,सूजी पानी आय।

ठीक करै बोखार ला,ओहर डॉक्टर ताय।

सर्दी जर बोखार मा,सहर जाय गा कोन।

बड़ मँहगा हाबय जहाँ,फीसे हा सिरतोन।

सोजबाय बतियाय नइ, बोले आने बोल।

तेहर पीरा ला हमर,कइसे लिही टटोल।

देखब हमला लोटथे,ओखर तन मा साँप।

थेभा हमर गरीब के,डॉक्टर झोला छाप।


झन कोनो ला लूट तैं,हरस तँहू भगवान।

राख मान पद के अपन,गाही सबझन गान।

चलथे टोना टोटका, बइगा हे बर छाँव।

जाही झोला छाप हा,डॉक्टर भेजव गाँव।

फँसे शहर के मोह मा,डॉक्टर नइ तो आय।

सुविधा सब खोजत फिरै,गाँव आज लुलवाय।

कौड़ी कौड़ी कीमती, लूटे लगही पाप।

थेभा हमर गरीब के,डॉक्टर झोला छाप।


जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)



आ रे!बादर

 आ रे!बादर


अस  आड. असाड. म, फभे  नही|

नइ गिरही पानी,त दुख ल कबे नही|

तोपाय हे ढेला म,मोर सपना मोर आस|

तोर अगोरा हे रे! बादर,नही ते हो जही नास|

छीत दे चुरवा-चुरवा करके,

बीजा जाम जाय|

मोर हॉड़ी के इही सहारा,

सब कोई इहिच ल खाय|

खेत बनगे मरघट्टी,

मुरदा बनगे बीजा|

पानी छीत जिया ले,

कइसे मनाहू हरेली तीजा|


मोला सरग नही,बस फल चाही,

जांगर अऊ नांगर के पूरती|

लहलहाय रहे मोर खेती-खार,

तन-बदन म रही  फुरती|

मैं सपना सँजोथँव,

बस आस म खेती के|

लेथो करजा म कपड़ा-लत्ता,

टिकली-फुंदरी बेटी के|

मोर ले जादा कोन भला,

तोर नाम लेथे|

फेर तोर ले जादा तो सेठ-साहूकार मन,

मसका-पालिस वाले ल देथे|


पानी के बाँवत,पानी के बियासी,

पानी के पोटरई-पकई रे !बादर|

तोर रूप देख घरी-घरी घुरघुरासी लगथे,

का नइ दिखे तोला मोर करलई रे !बादर|

गोहार लगात हँव मैं,

गली-गली बेटा-बेटी संग|

सबो खेलथे मोर संग ,

झन खेल तैं, मोर खेती संग|

सुन के मोर कलपना,

लेवाल बन आय हे ब्यपारी|

बचाले बेचाय ले बॉचे भुँइया,

इही मोर भाई-बहिनी,

इही मोर बाप-महतारी|

भले मरे के बाद ,

फेक नरक म घानी दे दे|

फेर जीते जीयत झन मार,

मोर सपना ल समय म पानी दे दे|


        जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

           बाल्को(कोरबा)

           ९९८१४४१७९५

बरसा

 बरसा 


मोरो मन नाचिस मंजुरी कस|

चुचवइस जब बादर ले   रस |

देख पानी टपकई,फोटका परई,

झमाझम बिजुरी,अउ गरजई घुमरई।

पानी अऊ पूर्वा के मितानी,

डबरा अऊ घुरवा के मितानी,

कोठ म बोहाय रेला अऊ

टिपटिप चूंहे छॉनी||

सुन मैना के गुत्तुर बानी अऊ

बोली कँउवा के करकस.....|

मोरो मन नाचिस...............

..............................रस||


मन ह उड़ात हे बदरा संग,

सॉप डेड़हू निकलगेहे अदरा संग|

भंदई म चिखला जमके चिपके हे,

उमड़-घुमड़ बदरा रही रही के टिपके हे|

लइकामन झड़ी म 

कूदकूद के भींगत हे|

नेवन्निन बहु 

कुरिया म नींगत हे|

मिठात हे बबा ल,

कुनकुन सनहन पेज लसलस...|

मोरो मन .......................रस|


मुंदरहा ले ओहो तोतो अऊ

बाजे खनन खनन घंटी|

सब कीरा मकोरा ल रौंदत हे

चाहे पिहरे राहय कंठी|

बेंगुवा अऊ झिंगरा 

उत्ता-धुर्रा गॉवत हे|

हॉट-बाजार नही

खेतखार मन भावत हे|

बॉवत रे बियासी रे

भॉजी रे पाला रे|

रोहों पोंहों परे हे

सिधोव काला काला रे|

माई पिला निकले हे

कोनो बुता नइ बॉचे|

भुंइया हरियाय हे

 डारापाना नाचे |

तहूं गा सुवा - ददारिया

यदि मॉटी पूत अस......|

मोरो मन ..............रस|

                                जीतेन्द्र वर्मा

                  खैरझिटी(रॉजनॉदगॉव

कुंडलियाँ छंद -दरुहा बरसात मा

 कुंडलियाँ छंद -दरुहा बरसात मा


ओधा मा बइठे हवै, अउ पीयत हे मंद।

छलत हवै तन ला अपन, बनके खुद जयचंद।

बनके खुद जयचंद, गुलामी करै काल के।

झगरा झंझट झूठ, चलै लत लोभ पाल के।

संगी साथी संग, पियै बर खोजै गोधा।

पियै हाँस के मंद, बइठ के भाँड़ी ओधा।


छपक छपक के रेंगथे, उठउठ अउ गिर जाय।

दरुहा के बरसा घरी, तन मन दुनो सनाय।

तन मन दुनो सनाय, हमाये काखर मुँह मा।

रहिरहि के बस्साय, गिरे डबरा अउ गुह मा।

बुता काम बतलाय, मेघ हा टपक टपक के।

चले हलाके घेंच, मंदहा छपक छपक के।


रोवै लइका लोग हा, पड़े हवै घर खेत।

छोड़ छाँड़ सब काम ला, दरुहा फिरे अचेत।

दरुहा फिरे अचेत, सुनय नइ कखरो बोली।

करै सबे ला तंग, गोठ ले छूटय गोली।

धन दौलत उरकाय, जहर घर बन मा बोवै।

लगगे हे चौमास, लोग लइका सब रोवै।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

कुंडलियाँ-भीड़

 कुंडलियाँ-भीड़ 


बाबा मन हा बाप कस, देवत हें उपदेश।

धरम करम मुक्ति कहि, होय मनुष मन पेश।

होय मनुष मन पेश, भीड़ के हिस्सा बनके।

भीड़ भाड़ ला देख, चले बाबा मन तनके।।

बिना भीड़ नइ होय, मदीना काशी काबा।

जाति धरम के नाम, सबे कोती हे बाबा।।


झंडा डंडा भीड़ बिन, मान कहाँ ले पाय।

बने बने मा हे बने, गिनहा मा हे बाय।।

गिनहा मा हे बाय, भीड़ हा भेड़ ताय जी।

सहमति साथ विरोध, सबे बर भीड़ आय जी।

मेला नेता खेल, संत राजा का पंडा।

सब ला चाही भीड़, भीड़ हे ता हे झंडा।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गाँव में आइये

 गाँव में आइये


जिंदगी यदि खास चाहिये, तो गाँव में आइये।

जमीनी आभास चाहिये, तो गाँव में आइये।।


माँ बाप दादा दादी, चाचा चाची नाना नानी,

पूरा परिवार पास चाहिये, तो गाँव में आइये।।


बस काटना है जिंदगी, तो जाकर रहो शहर में,

जीने का अहसास चाहिये,तो गाँव में आइये।।


गुरु है घर खेत कुँआ तालाब, पेड़ पगडंडियाँ,

नित नये अभ्यास चाहिये, तो गाँव में आइये।।


रंग पलपल बदलते नही, कोई गिरगिट के जैसा,

यार दोस्त बिंदास चाहिये, ,तो गाँव में आइये।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

सरसी छंद-रथ यात्रा(गीत)

 सरसी छंद-रथ यात्रा(गीत)


अरज दूज मा जगन्नाथ के,जय जय गूँजे नाम।

रथ मा कृष्ण  सुभद्रा  बइठे,बइठे  हे  बलराम।


चमचम चमचम रथ हा चमके,ढम ढम बाजय ढोल।

जुरे  हवै  भगतन  बड़  भारी,नाम  जपे  जय  बोल।

झूल झूल के रथ सब खीँचयँ,करै कृपा भगवान।

गजा - मूंग  के  हे  परसादी,बँटत  हवे  पकवान।

तीनों भाई  बहिनी लागय,सुख के सुघ्घर घाम।

अरज दूज मा जगन्नाथ के,जय जय गूँजे नाम।


दूज अँसड़हूँ पाख अँजोरी,तीनों होय सवार।

भगतन मन ला दर्शन देवै,बाँटय मया दुलार।

सुख अउ दुख के आरो लेके,सबके आस पुराय।

भगतन मनके दुःख हरे बर,अरज दूज मा आय।

नाचत  गावत  मगन सबे हे, रथ के डोरी थाम।

अरज दूज मा जगन्नाथ के,जय जय गूँजे नाम।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


रथ यात्रा की आप सबको ढेरों बधाइयाँ

भाजी चरोटा के

 भाजी चरोटा के


भूख भगाय बर पोटा के

खाय हन भाजी चरोटा के ||


उसन परिया निथार,

अम्मट नहीं ते दार डार, 

रांधे दाई चून के।। 

लहसुन, मिरचा के फोरन म,

तेल - नून संग भूंज के ।। 

ममहाय घर खोर हाँड़ी, 

चरोटा के राहय बड़ पुछारी ।।

फेर आजकल तो दिखे नहीं, 

अउ दिखथे त बइरी हे टोंटा के । 

भूख भगाय बर पोटा के ।

खाय हन भाजी चरोटा के ।।


बदलत जमाना संग,

चरोटा तिरयागे ।

अपने - अपन उपजइया,

कतकोन भाजी सिरागे ||

नइ बताबे ता,

कोनो जानही घलो नही ।

अउ बताबे ता,

खाय् कहिके मानही घलो नहीं ।।

पहिली भाजी ल माने,

गरीबहा कोटा के |

भूख भगाय बर पोटा के ।

खाय हन भाजी चरोटा के ।।


लड़ नइ सकिस चरोटा ह

गुमी, मुस्कैनी, अमारी, चेंच, बोहार कस । 

तेखरे सती ओखर किस्मत,

नइ पहुँचिस बाजार तक । 

ठाढ़े महँगाई के आँच म

तिजोरी झोर कस अँउटत हे । 

आलू,गोभी,मटर बहुत होगे,

मनखे फेर भाजी डहर लहुटत हे । 

रांध के भाजी, 

झडकत हें सब तीन परोसा के ।

भूख भगाय बर पोटा के । 

खाय हन भाजी चरोटा के ||


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Tuesday, 2 July 2024

रामराज

 रामराज


राम राम कहि हाथ जोड़हीं, पाछू छुरी चलाही।

बता भला अइसन मा कइसे, राम राज हा आही।


बचन ददा दाई के बिरथा, बिरथा गुरु के बानी।

अपने मन के काम करैं सब, होरा भूंजैं छानी।।

भाई भाई लड़त मरत हें, काय जमाना आगे।

स्वारथ के चक्कर मा फँसके, अपने अपन खियागे।।

काय बने अउ का हे गिनहा, तेला समझ न पाही।

बता भला अइसन मा कइसे, राम राज हा आही।।


अहंकार मा सबे चूर हें, जप तप सत नइ जाने।

धन दौलत ला अपने माने, मनखें मन ला आने।।

अपन ठउर के रचना खातिर, पर के नेंव गिरायें।

रक्सा कस सब मनखें होगे, जीव मार के खायें।।

छोड़ सुमत अउ सत के रद्दा, झगरा रोज मताही।

बता भला अइसन मा कइसे, राम राज हा आही।।


कोन तियागे राज सिंहासन, कोन बने बनवासी।

पर के दुःख क्लेश हरे बर, कोन बिगाड़े रासी।।

बानर भालू खग के सँग मा, कोन ह बदे मितानी।

खुदे पियासे रहिके कउने, पर ला देवैं पानी।।

पर के बाँटा घलो नँगा के, तीन तेल के खाही।

बता भला अइसन मा कइसे, राम राज हा आही।।


बिन स्वारथ के सेवा करही, कोन बने बजरंगी।

अंगद कस अब दूत मिले नइ, न सुग्रीव कस संगी।।

भेदभाव ला कोन तोड़ही, कोन ह हरही पीरा।

कोन बुराई सँग मा लड़ही, तजके घरबन हीरा।।

हाँहाकार मचाही रावण, कुंभकरन अँटियाही।

बता भला अइसन मा कइसे, राम राज हा आही।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

रील मा नही रीयल मा दिखव- सार छंद

 रील मा नही रीयल मा दिखव- सार छंद


दिखना चाही रीयल मा ता, दिखें रील मा मनखें।

हाँसँय फाँसँय नाँचँय गावँय, खड़ें खील मा मनखें।।


जिनगी ला पिच्चर समझत हें, हिरो हिरोइन खुद ला।

धरा छोंड़ के उड़ें हवा मा, अपन गँवा सुध बुध ला।।

लोक लाज सत रीत नीत तज, हवैं ढील मा मनखें।

दिखना चाही रीयल मा ता, दिखें रील मा मनखें।।


दुनिया ला देखाये खातिर, बदल रूप रँग बानी।

कभू फिरें बनके बड़ दानी, कभू गुणी अउ ज्ञानी।।

मया प्रीत तज मोती खोजें, उतर झील मा मनखें।

दिखना चाही रीयल मा ता, दिखें रील मा मनखें।।


हवैं चरित्तर आज मनुष के, हाथी दाँत बरोबर।

मुख मा राम बगल मा छूरी, दाबे फिरें सबे हर।।

सपना देखें सरी जगत के, खुसर बील मा मनखें।

दिखना चाही रीयल मा ता, दिखें रील मा मनखें।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको,कोरबा(छग)

जिनगी

 मिले मया आशीष नित, चलँव सबे ला जोर।।

एक बछर अउ बाढ़गे, उमर देखते मोर।।।।।


$$$$$$$$$ जिनगी $$$$$$$$$


नइ जानबे ता लगथे का ए जिनगी।

असल मा गुरु सखा दाई ददा ए जिनगी।।


आज हा तो बनाथे काली बर रद्दा।

नता ठिहा ठउर अउ पता ए जिनगी।।


नजर हे सब ऊपर ऊपर वाला के।

बरोबर तउलथे तराजू के पल्ला ए जिनगी।।


इँहिचे के करनी ला इँहिचेच भोगना हे।

धरम करम के कड़ा लेखा ए जिनगी।।


धन रतन नता रिस्ता दूत ए माया के।

पार निकल पेशी ए परीक्षा ए जिनगी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

कुंडलियाँ छंद(गलत विज्ञापन करत खिलाड़ी अभिनेता)

 कुंडलियाँ छंद(गलत विज्ञापन करत खिलाड़ी अभिनेता)


दारू गुटखा अउ जुआ, देथे जिनगी घाल।

विज्ञापन एखर करे, वोखर नीछव खाल।।

वोखर नीछव खाल, बढ़ावै जे अवगुन ला।

सिर मा झन बइठाव, इसन अभिनेता घुन ला।।

इंखर सुनके बात, बिगड़गे गंगा बारू।

होगे हावय काल, जुआ गुटखा अउ दारू।।


बुता बिगाड़े के करे, बनके बड़का जौन।

वोला दव फटकार मिल, हो जावै झट मौन।

हो जावै झट मौन, स्टार बनके जे फाँसे।

नइ ते सत संस्कार, सबे हो जाही नाँसे।

बड़का पन के मान, रखत सत झंडा गाड़े।

देवँय बढ़िया सीख, कहूँ झन बुता बिगाड़े।।


तास जुआ के खेल हा, बने कभू नइ होय।

विज्ञापन ला एखरो, कई खिलाड़ी ढोय।।

कई खिलाड़ी ढोय, लोभ लालच के गट्ठा।

खेले बर उकसाय, बात नोहे ए ठट्ठा।

बिगड़त हवै समाज, जरूरत हवै दुआ के।

चुक्ता होवय बंद, खेल हा तास जुआ के।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

अदरक-कुंडलियाँ छंद

 अदरक-कुंडलियाँ छंद


दिखथे अदरक टेंडगा, तभो बढ़े हे भाव।

रंग रूप मा का हवय, गुण के होय हियाव।।

गुण के होय हियाव, गुणी ला कोन भुलाथे।

खोज काम के चीज, जमाना पूछत आथे।।

का बड़का का छोट, नाम बेरा हा लिखथे।

हे बरसा के बेर, रुलावत अदरक दिखथें।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)

कुंडलियाँ छंद

 श्री गुरुवैः नमः


पहली गुरु दाई ददा, दूसर ज्ञान अधार।

सीख देय गुरु तीसरा, हें सबला जोहार।।

खैरझिटिया


कुंडलियाँ छंद


पहली गुरु दाई ददा, देइस जे पहिचान।

दूसर गुरु गुण ज्ञान ले, हे बनाय इंसान।

हे बनाय इंसान, हेर तन मन के काई।

बने धराइस पाथ, पाट जिनगी के खाई।

उपर चढ़ाइस रोज, खुदे गुरुवर बन चहली।

बंदौं बारम्बार, उही पद ला मैं पहली।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


जड़ चेतन जेखर ले भी मोला सीखे समझे ल मिलत हे, सब ला गुरु मान, गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर मा बारम्बार प्रणाम।।

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कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


चेला के चरचा चले, बढ़े गुरू के शान।

नता गुरू अउ शिष्य के, जग मा हवै महान।

जग मा हवै महान, गुरू के सब जस गावै।

दुःख दरद दुरिहाय, खुशी जीवन मा लावै।

सत के डहर बताय, झड़ाये झोल झमेला।

गुरू हाथ ला थाम, कमावै यस जस चेला।


जीवन मा उल्लास के, रंग गुरू भर जाय।

गुरू भक्ति सबले बड़े, देवन माथ नँवाय।

देवन माथ नँवाय, गुरू के सुमिरन करके।

अँधियारी दुरिहाय, गुरू दीया कस बरके।

गुणी गुरू के ग्यान, करे निर्मल तन अउ मन।

जौने गुरू बनाय, सुफल हे तेखर जीवन।।


डगमग डगमग पग करे, जिवरा जब घबराय।

रद्दा सबो मुँदाय तब, आशा गुरू जगाय।

आशा गुरू जगाय, उबारे जीवन नैया।

खुशी शांति के ठौर, गुरू के पावन पैया।

डर जर दुख जर जाय, बरे अन्तस मन जगमग।

गुरू कृपा जब होय, पाँव हाले नइ डगमग।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा (छग)

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सरसी छन्द - गुरू महिमा


गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।

भव सागर ले सहज तरे बर,बना गुरू पतवार।


छाँट छाँट के बने चीज ला,अंतस भीतर भेज।

उजियारा करथे जिनगी ला,बन सूरज के तेज।

जल जाथे जर जहर जिया के,लोभ मोह संताप।

भटक जानवर कस झन बइहा,नता गुरू सँग खाप।

ज्ञान आचमन कर रोजे के,पावन गंगा धार।

गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।


धीर वीर ज्ञानी अउ ध्यानी,सबो गुरू के देन।

मानै बात गुरू के हरदम,पावै यस जश तेन।

गुरू बिना ये जग मा काखर,बगरे हावै नाम।

महिनत करले कतको चाहे,बिना गुरू ना दाम।

ठाहिल हीरा असन गुरू हे,गुरू कमल कचनार।

गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।


गुरू बना जीवन मा बढ़िया,कर कारज नित हाँस।

गुरू सहारा जब तक रहही,गड़े कभू नइ फाँस।

नेंव तरी के पथरा बनके,गुरू सदा दब जाय।

यश जश बाढ़े जब चेला के,गुरू मान तब पाय।

गावै गुण सब लोक गुरू के,गुरू करै उपकार।

गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।


खैरझिटिया


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रूपमाला छंद


गुरु बिना भव कोन तरथे,कोन करथे राज।

हाथ गुरु के सिर मा होवय,छोट तब सब ताज।

घोर अँधियारी मिटाथे,दुख ल देथे टार।

वो चरण मा मैं नँवावों,माथ बारम्बार।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़

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कुंडलियाँ छंद- दर्जी अउ देवारी

 कुंडलियाँ छंद- दर्जी अउ देवारी


देवारी के हे परब, तभो धरे हें हाथ।

बड़का धोखा होय हे, दर्जी मन के साथ।

दर्जी मन के साथ, छोड़ देहे बेरा हा।

हे गुलजार बजार, हवै सुन्ना डेरा हा।

पहली राहय भीड़, दुवारी अँगना भारी।

वो दर्जी के ठौर, आज खोजै देवारी।1


कपड़ा ला सिलवा सबें, पहिरे पहली हाँस।

उठवा के ये दौर मा, होगे सत्यानॉस।

होगे सत्यानॉस, काम खोजत हें दर्जी।

नइ ते पहली लोग, करैं सीले के अर्जी।

टाप जींस टी शर्ट, मार दे हावै थपड़ा।

शहर लगे ना गाँव, छाय हे उठवा कपड़ा।


दर्जी के घर मा रहै, कपड़ा के भरमार।

खुले स्कूल कालेज या, कोनो होय तिहार।

कोनो होय तिहार, गँजा जावै बड़ कपड़ा।

लउहावै सब रोज, बजावैं घर आ दफड़ा।

कपड़ा सँग दे नाप, सिलावैं सब मनमर्जी।

उठवा आगे आज, मरत हें लाँघन दर्जी।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

लता दीदी जी ला भावाञ्जली-कुंडलियाँ छंद

 लता दीदी जी ला भावाञ्जली-कुंडलियाँ छंद


सुर के देवी ला नमन, करौं रोज कर जोर।

अमरित घूँट पियाय हे, शब्द शब्द मा घोर।

शब्द शब्द मा घोर, पियाहे अमरित पानी।

दीदी जी के गीत, गढ़े हे अमर कहानी।

करही जुगजुग राज, गीत रगरग मा घुर के।

शारद के वरदान, लता जी देवी सुर के।


आथे जग मा जौन हा, जाथे तज पर धाम।

पर कतको झन काम ले, छोड़ जथे शुभ नाम।

छोड़ जथे शुभ नाम, जगत मा सबदिन सब बर।

कोई पाय न भूल, काम हा होथे जब्बर।

सबके दिल मा राज, करे वो पद पा जाथे।

अइसन मनके लोग, सबे दिन महिमा गाथे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


लता जी ला शत शत नमन

कुंडलियाँ छंद- बंगाला

 कुंडलियाँ छंद- बंगाला

आँखी अउ देखात हे, बंगाला बन बाज।

सपड़े हवैं दलाल या,आफत आहे आज।

आफत आहे आज, बाढ़ पानी हें भारी।

या फिर पइध दलाल, करयँ काला बाजारी।

बंगाला उड़ियाय, अचानक बाँधे पाँखी।

महँगाई ला देख, भींग जावत हे आँखी।


छोटे बड़े दलाल मिल,जमा करत हें माल।

महँगाई बाढ़ें अबड़, हाल होय बेहाल।।

हाल होय बेहाल, नचावै सब्जी भाजी।

तेल फूल फल दूध, हाथ नइ आये खाजी।

घर बन खेती खार, सबे बर चाही नोटे।

व्यय जादा कम आय,देख रोवैं जन छोटे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


तुम्हर कोती के रुपिया तोला चलत हे?

कुंडलियाँ छंद

 कुंडलियाँ छंद


सत्ता खातिर रोज के, होवत हे गठजोड़।

नेता मन पद पाय बर, भागे पार्टी छोड़।

भागे पार्टी छोड़, मिले एखर ओखर ले।

पाँच साल बर वोट, पाय हे कुछु कर ले।

मत मरियादा मान, उड़त हे बनके पत्ता।

होय हार या जीत, सबे सपनावैं  सत्ता।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

माँग होटल ढाबा के- कुंडलियाँ छंद

 माँग होटल ढाबा के- कुंडलियाँ छंद


मजबूरी मा खाय बर, होटल ढाबा होयँ।

फेर मनुष मन आज के, रोज खाय बर रोयँ।।

रोज खाय बर रोयँ, सबे होटल ढाबा मा।

हाँसत हें पोटार, दिखावा ला काबा मा।।

तन के रखें खियाल, तौंन मन राखयँ दूरी।

बनगे फैशन आज, रहै पहली मजबूरी।।


घर कस जेवन नइ मिले, मनखे तभो झपायँ।

रोज रोज पार्टी कही, घर ले बाहिर खायँ।।

घर ले बाहिर खायँ, जुरै संगी साथी सब।

कोन भला समझायँ, सबे ला भावै ये अब।।

खानपान वैव्हार, आज सब होगे करकस।

चैन सुकून पियाँर, कहाँ मिल पाही घर कस।।


आज जमाना हे नवा, होटल सब ला भायँ।

अपन हाथ मा राँध खा, पहली जन मुस्कायँ।

पहली जन मुस्कायँ, भात बासी खा घरके।

होटल जावैं आज, लोग लइका सब धरके।।

खा मशरूम पुलाव, भात ला मारे ताना।

पहुँच चुके हे देख, कते कर आज जमाना।


बासी कड़हा कोचरा, काय परोसा दान।

हाड़ी सँग वैपार हे, त का धरम ईमान।

त का धरम ईमान, सबें होटल ढाबा के।

का का राँध खवाय, तभो इतरायें खाके।

धन सँग तन बोहायँ, बने होटल के दासी।

होगे मनुष अलाल, खायँ होटल मा बासी।


पानी पइसा मा मिले, कणकण देवयँ तोल।

काय जानही वो भला,दया मया के मोल।

दया मया के मोल, जानही का होटल हा।

पइसा जा बोहायँ, कामकाजी अउ ठलहा।

रथे मसाला तेल, खायँ नइ दादी नानी।

नाती नतनिन पूत, बहू पीयें ले पानी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

कुंडलियाँ छंद

 कुंडलियाँ छंद


डालर कॉलर ला हमर, धरे हवै दिनरात।

बेर बछर देखे बिना, दै रुपिया ला मात।।

दै रुपिया ला मात, बढ़े तब तब महँगाई।

छोट मँझोलन रोय, मचे अड़बड़ करलाई।

ऊगत नइहे बाल, उतारे हाँवन झालर।

रुपिया होय धड़ाम, दिनों दिन बाढ़ै डालर।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


(ऊगत नइहे बाल, उतारे हाँवन झालर।)- तुतारी आय।

कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


धरहा करके लेखनी, कहिन बात ला सार।

सत के जोती बार के, दुरिहाइन अँधियार।

दुरिहाइन अँधियार, सुरुज कस संत कबीरा।

हरिन आन के पीर, झेल के खुद दुख पीरा।

एक तुला सब तोल, बताइन बढ़िया सरहा।

करिन कलह मा वार, बात कहिके बड़ धरहा।


बानी संत कबीर के, दुवा दवा अउ बान।

साधु सुने सत बात ला, लोभी तोपे कान।

लोभी तोपे कान, कहे जब गोठ कबीरा।

लोहा होवय सोन, चमक खो देवय हीरा।

तन मन निर्मल होय, झरे जब अमरित पानी।

तोड़य गरब गुमान, कबीरा के सत बानी।


जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


संत कबीर जी को सत सत नमन,

लंबा कर कानून के, धरे छोट के घेंच।

 कुंडलियाँ छंद


लंबा कर कानून के, धरे छोट के घेंच।

बात बड़े के होय ता, फँस जाये बड़ पेंच।

फँस जाये बड़ पेंच, करे का कोट कछेरी।

पद पइसा के तीर, लगावैं सबझन फेरी।

मूंदे आँखी कान, कलेचुप बनके खंबा।

देखे बस कानून, जीभ ला करके लंबा।


करजा के दम मा बड़े, बड़े बने हे आज।

लोक लाज के डर नही, नइ हे सगा समाज।

नइ हे सगा समाज, कोन देखाये अँगरी।

रंभा रति नचवाय, मंद पी तीरे टँगड़ी।

इँखरे हे सरकार, भले मर जावैं परजा।

सकल सुरत पद देख, बैंक तक देवै करजा।


फर्जी फाइल ला धरे, होगे बड़े फरार।

रोक छोट के साइकिल, गरजै पहरेदार।

गरजै पहरेदार, दिखाके लउठी डंडा।

नाक तरी धनवान, लुटैं सब ला बन पंडा।

पद पा पूँजी जोर, करैं कारज मनमर्जी।

भागे तज के देश, बनाके फाइल फर्जी।


छोट मँझोलन के रहत, बचे हवै ईमान।

गिरथें उठथें रोज के, बड़े बड़े धनवान।

बड़े बड़े धनवान, चलैं पइसा के दम मा।

धर इज्जत ईमान, जिये छोटे मन कम मा।

जादा के ले चाह, नियत नइ देवैं डोलन।

चादर भीतर पाँव, रखैं नित छोट मँझोलन।


माया पइसा मा मिले, पइसा मा रस रास।

इज्जत देखे जाय नइ, पइसा हे यदि पास।

पइसा हे यदि पास, पास वो सब पेपर मा।

रखे जेन मा हाथ, पहुँच जाये वो घर मा।

पइसा मा धूल जाय, चरित अउ बिरबिट काया।

कोन पार पा पाय, जबर पइसा के माया।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

रक्तदान

 कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


रक्तदान


कतरा कतरा कीमती, हवै खून के यार।

दुख मा हे ऊंखर उपर, कर देवौ उपकार।

कर देवौ उपकार, जीत जिनगी वो जाही।

तुम्हर लहू के बूंद, काम ऊंखर बर आही।

बन जाथे झट खून, देय मा नइहे खतरा।

देथे जीवन दान, खून के कतरा कतरा।


कतको जिनगी खून बिन,तड़प तड़प मर जाय।

कतको के तन के लहू, बिरथा तक बोहाय।

बिरथा तक बोहाय, बने तभ्भो नइ दानी।

कतको जोड़ै हाथ, बचालव कहि जिनगानी।

देख नयन दव मूँद, बनव ना निरदइ अतको।

करव लहू के दान, सँवरही जिनगी कतको ।


सुविधा हे ब्लड बैंक के,कई जघा मा आज।

जेन जरूरत मंद के, रखे समय मा लाज।

रखे समय मा लाज, होय नइ ब्लड के तंगी।

जाके सबे जरूर, उँहा ब्लड देवव संगी।

भरे रही ब्लड बैंक, सहज टर जाही दुविधा।

करव लहू के दान, सबे बर होही सुविधा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


देवारी त्यौहार के, होवत हावै शोर।

मनखे सँग मुस्कात हे, गाँव गली घर खोर।

गाँव गली घर खोर, करत हे जगमग जगमग।

होवय पूजा पाठ, परे सब माँ लक्ष्मी पग।

लइका लोग सियान, सबे झन खुश हे भारी।

दया मया के बीज, बोत हावय देवारी।


भागे जर डर दुःख हा, छाये खुशी अपार।

देवारी त्यौहार मा, बाढ़े मया दुलार।।

बाढ़े मया दुलार, धान धन बरसे सब घर।

आये नवा अँजोर, होय तन मन सब उज्जर।

बाढ़े ममता मीत, सरग कस धरती लागे।

देवारी के दीप, जले सब आफत भागे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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कुंडलियाँ छंद

 कुंडलियाँ छंद


साल पछत्तर बीत गे, हम ला पाय सुराज।

तभो कई ठन चीज में, पाछू हावन आज।।

पाछू हावन आज, गिनावन काला काला।

बूता दू ठन होय, चार हें गड़बड़ झाला।।

रोजगार बिन रोय, मनुष मन सौ मा सत्तर।

बिगड़े शिक्षा स्वास्थ, बीत गे साल पछत्तर।।


सेवा शिक्षा स्वास्थ हा, बनगे हें बिजनेस।

मनमानी माँगे रकम, लोक लाज ला लेस।

लोक लाज ला लेस, चलत हे कतको बूता।

बड़े बड़े अउ होय, छोट के घींसय जूता।।

कुर्सी वाले खाय, हाँस के सब दिन मेवा।

फुदरत हे वैपार, नाम के हावय सेवा।।


वैपारी के राज हे, रोय किसान जवान।

छोट मोट के हाथ मा, नून तेल ना धान।

नून तेल ना धान, जुटा पावत हे कतको।

महँगाई ला देख, उतर जावत हे पटको।

ना काली ना आज, छोट के आइस बारी।

कर काला बाजार, बढ़त हावयँ वैपारी।


बड़का मन के साथ मा, खड़े हवै सरकार।

भरै खजाना ला उँखर, आम मनुष ला मार।

आम मनुष ला मार, करत हावय मनमर्जी।

कहाँ मरे मोटाय, लाख मांगै वर अर्जी।

शासन अउ सरकार, आम जन ला दै हड़का।

ताल मेल बइठार, बइठ खावैं मिल बड़का।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


आलू राजा साग के, आज रूप देखाय।

किम्मत भारी हे बढ़े, हाड़ी ले दुरिहाय।।

हाड़ी ले दुरिहाय, हाथ नइ आवत हावै।

बिन आलू के संग, साग भाजी नइ भावै।

हे कालाबाजार, काय कर सकही कालू।

एक बहावै नीर, एक हाँसे धर आलू।।


होवत हावय सब जघा, आलू के बड़ बात।

का कहिबे छोटे बड़े, सबला हे रोवात।

सबला हे रोवात, सहारा जे सब दिन के।

आये आलू आज, सैकड़ा मा तक गिन के।

आलू के बिन साग, कई ठन रोवत हावय।

महँगा जम्मों चीज, दिनों दिन होवत हावय।


जादा के अउ चाह मा, बुरा करव ना काम।

होय बुरा के एक दिन, गजब बुरा अंजाम।

गजब बुरा अंजाम, भोगथे बुरा करइया।

का वैपारी सेठ, सबे मनखे अव भइया।

करव बने नित काम, राख के नेक इरादा।

बित्ता भर के पेट, काय कमती अउ जादा।


दाना पानी छीन के, झन लेवव जी हाय।

जीये खाये के जिनिस, सहज सदा मिल जाय।

सहज सदा मिल जाय, अन्न पानी सब झन ला।

मनखे झन कहिलाव, बरो के मनखेपन ला।

फैलाके अफवाह, जेन करथे मनमानी।

हजम कभू नइ होय, उसन ला दाना पानी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" चेला के चरचा चले, बढ़े गुरू के शान।

 कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


चेला के चरचा चले, बढ़े गुरू के शान।

नता गुरू अउ शिष्य के, जग मा हवै महान।

जग मा हवै महान, गुरू के सब जस गावै।

दुःख दरद दुरिहाय, खुशी जीवन मा लावै।

सत के डहर बताय, झड़ाये झोल झमेला।

गुरू हाथ ला थाम, कमावै यस जस चेला।


जीवन मा उल्लास के, रंग गुरू भर जाय।

गुरू भक्ति सबले बड़े, देवन माथ नवाय।

देवन माथ नवाय, गुरू के सुमिरन करके।

अँधियारी दुरिहाय, गुरू दीया कस बरके।

गुणी गुरू के ग्यान, करे निर्मल तन अउ मन।

जौने गुरू बनाय, सुफल हे तेखर जीवन।।


डगमग डगमग पग करे, जिवरा जब घबराय।

रद्दा सबो मुँदाय तब, आशा गुरू जगाय।

आशा गुरू जगाय, उबारे जीवन नैया।

खुशी शांति के ठौर, गुरू के पावन पैया।

डर जर दुख जर जाय, बरे अन्तस मन जगमग।

गुरू कृपा जब होय, पाँव हाले नइ डगमग।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा (छग)

कुंडलियाँ छंद-मुँगेसा

 कुंडलियाँ छंद-मुँगेसा


खाजी पहली के हरे, खाय तउन गुण गाय।

जाने लइका आज नइ, रँग रँग के जे खाय।

रँग रँग के जे खाय, मुँगेसा ला का जाने।

ददा दई तक आज, टोरके घर नइ लाने।।

मिले कहूँ ता खाव, मिठाथे फर अउ भाजी।

शहर लगे ना गाँव, रहै पहली के खाजी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

कुंडलियाँ छंद -दरुहा बरसात मा

 कुंडलियाँ छंद -दरुहा बरसात मा


ओधा मा बइठे हवै, अउ पीयत हे मंद।

छलत हवै तन ला अपन, बनके खुद जयचंद।

बनके खुद जयचंद, गुलामी करै काल के।

झगरा झंझट झूठ, चलै लत लोभ पाल के।

संगी साथी संग, पियै बर खोजै गोधा।

पियै हाँस के मंद, बइठ के पथना ओधा।


छपक छपक के रेंगथे, उठउठ अउ गिर जाय।

दरुहा के बरसा घरी, तन मन दुनो सनाय।

तन मन दुनो सनाय, हमाये काखर मुँह मा।

रहिरहि के बस्साय, गिरे डबरा अउ गुह मा।

बुता काम बतलाय, मेघ हा टपक टपक के।

चले हलाके घेंच, मंदहा छपक छपक के।


रोवै लइका लोग हा, पड़े हवै घर खेत।

छोड़ छाँड़ सब काम ला, दरुहा फिरे अचेत।

दरुहा फिरे अचेत, सुनय नइ कखरो बोली।

करै सबे ला तंग, गोठ ले छूटय गोली।

धन दौलत उरकाय, जहर घर बन मा बोवै।

लगगे हे चौमास, लोग लइका सब रोवै।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" बरसात मा लइका

 कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बरसात मा लइका


लइका मन हा नाँचथे, होथे जब बौछार।

माटी मा जाथे सना, रोक रोक जल धार।।

रोक रोक जल धार, खेलथे चिखला पानी।

कखरो सुनयँ न बात, बरजथे दादी नानी।

जायँ कलेचुप खोर, हेर के राचर फइका।

पावयँ जब बरसात, मगन सब नाँचयँ लइका।


पावै जब बरसात ला, लाँघै घर अउ द्वार।

माटे के रँग मा रचे, रोकै जल के धार।

रोकै जल के धार, गली मा भागै पल्ला।

संगी सब सकलायँ, मचावै नंगत हल्ला।

खेलै हँस हँस खेल, पात कागज बोहावै।

नाचै गावै खूब, मजा बरसा के पावै।।


अबके लइकन मन कहाँ, बारिस मा इतराय।

जुड़ जर के डर हे कही, घर भीतर मिटकाय।

घर भीतर मिटकाय, भिंगै का कुरथा चुन्दी।

का कागज के नाव, खेल का घानी मुन्दी।

हवै मुबाइल हाथ, सहारा टीवी सबके।

होगे हे सुखियार, देख लइकन मन अबके।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गीत-पतझड़

 गीत-पतझड़


आथे पतझड़ दे जाथे संदेश रे भैया।

पाके पाना पतउवा ला फेक।।


बनना हे बढ़िया ता, तज दे विकार ला।

अपन बूता खुद कर, झन देख चार ला।

आवत जावत रहिथे, सुख दुख के बेरा।

समय मा चलबे ता, कटथे घन घेरा।।

विधि विधना ला, माथा टेक रे भैया।

पाके पाना पतउवा ला फेक-----


राम अउ माया, संग मा नइ मिले।

सदा दिन बिरवा मा, फुलवा नइ खिले।

परसा सेम्हर, पात झर्रा मुस्काथे।

फागुन महीना, पुरवा संग गाथे।

पूरा पानी ला झन कभू छेक रे भैया।

पाके पाना पतउवा ला फेक-----


नाहे धोये मा नइ, अन्तस् धोवाये।

मन ला उजराये ते, ज्ञानी कहाये।

मन हावै निर्मल ता, जिनगी हे चोखा।

करबे देखावा ता, खुद खाबे धोखा।

देथे प्रकृति संदेशा नेक रे भैया।

पाके पाना पतउवा ला फेक----


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

आ रहे हैं प्रभु राम(माहिया)

 आ रहे हैं प्रभु राम(माहिया)


शबरी तुम्हें आना है।

आ रहे हैं प्रभु राम।

फिर बेर खिलाना है।


केवट तुम्हें आना है।

आ रहे हैं प्रभु राम।

फिर पार लगाना है।।


हनुमान लला आओ।

आ रहे हैं प्रभु राम।

भक्ति में रम जाओ।।


सुग्रीव सुमंत आओ।

आ रहे हैं प्रभु राम।

दर्शन पा हर्षाओ।।


नल नील अंगद आओ।

आ रहे हैं प्रभु राम।

सेवक बन रम जाओ।।


आओ हे जटायु जी।

आ रहे हैं प्रभु राम।

बढ़ा लो आयु जी।।


हे आदि कवि आओ।

आ रहे हैं प्रभु राम।

बधाई गीत गाओ।।


आओ हे गोसाँई जी।

आ रहे हैं प्रभु राम।

है शुभ घड़ी आई जी।।


श्री सीता राम लखन।

आ रहे हैं तीनों।

मंगल गायें जन जन।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


अयोध्या में


राम आ रहे हैं, अयोध्या में।

सब गा रहे हैं, अयोध्या में।।1


सब हाथों में धर्म ध्वजा।

लहरा रहे हैं, अयोध्या में।।2


लाखों दीपक जगमग जगमग।

जगमगा रहे हैं,अयोध्या।।3


बरसों बाद फिर एक बार।

खुशी छा रहें हैं, अयोध्या में।।4


जड़ चेतन सभी हर्षित हो।

मुस्का रहे हैं,अयोध्या में।।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)



हमर भाँचा श्री राम


अवध मा बिराजत हे, हमर भाँचा श्री राम।

देवौ बधाई मंगल गावौ, सुमर सुमर प्रभु नाम।। 


दुई हजार चार आगर कोरी।

पूस द्वादशी पाख अँजोरी।।

भव्य मंदिर मा बइठ प्रभु, दरस दिही सुबे शाम।

अवध मा बिराजत हे, हमर भाँचा श्री राम।।


सरयू जी के निर्मल पानी।

निसदिन कहिथे राम कहानी।।

ऊँच ऊँच मंदिर उँच देवाला, लगथे बैकुंठ धाम।

अवध मा बिराजत हे, हमर भाँचा श्री राम।।


चरण पड़े हे दंडक वन मा।

राम बसे हे हर कण कण मा।।

राम के नाम मा हे बड़ शक्ति, ले ते जाने दाम।

अवध मा बिराजत हे, हमर भाँचा श्री राम।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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मूरत राम नाम के--सार छंद


मन मन्दिर मा राम नाम के, मूरत तैं बइठाले।

भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।


राम नाम के माला जपके, शबरी दाई तरगे।

राम सिया के चरण पखारे, केंवट के दुख झरगे।

बन बजरंगबली कस सेवक, जघा चरण मा पाले।

भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।।


राम नाम के जाप करे ले, सुख समृद्धि सत आथे।

लोहा हा सोना हो जाथे, जहर अमृत बन जाथे।

जिहाँ राम हे तिहाँ कभू भी, दुख नइ डेरा डाले।

भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।


एती ओती चारो कोती, प्रभु श्री राम समाये।

सुर नर मुनि खग गुनी गियानी, जड़ चेतन गुण गाये।

ये मउका नइ मिले दुबारा, जीवन सफल बनाले।

भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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तुलसी तोर रमायण- सार छंद


जग बर अमरित पानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।


शब्द शब्द मा राम रमे हे, शब्द शब्द मा सीता।

गूढ़ ग्यान गुण गोठ गँजाये, चिटिको नइहे रीता।

सत सुख शांति कहानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।


सब दिन बरसे कृपा राम के, दरद दुःख डर भागे।

राम नाम के महिमा भारी, भाग भगत के जागे।।

धर्म ध्वजा धन धानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।


सहज तारथे भवसागर ले, ये डोंगा कलजुग के।

दूर भगाथे अँधियारी ला, सुरुज सहीं नित उगके।

बेघर के छत छानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।


प्रश्न घलो कमती पड़ जाही, उत्तर अतिक भरे हे।

अधम अनाड़ी गुणी गियानी, सबके दुःख हरे हे।

मीठ कलिंदर चानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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दोहा थर-थर कापत हे धरा, का बिहना का शाम। आफत ला झट टार दौ, जयजय जय श्री राम।

 दोहा


थर-थर कापत हे धरा, का बिहना का शाम।

आफत ला झट टार दौ, जयजय जय श्री राम।

खैरझिटिया


घनाक्षरी

आशा विश्वास धर, सियान के पाँव पर।

दया मया डोरी बर, रोज सुबे शाम के।।

घर बन एक जान, जीव सब एक मान।

जिया कखरो न चान, स्वारथ म लाम के।।

मीत ग मितानी बना, गुरतुर बानी बना।

खुद ल ग दानी बना, धर्म ध्वजा थाम के।।

डहर देखात हवे, जग ला बतात हवे।

अलख जगात हवे, चरित्र ह राम के।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


रामनवमी की ढेरों बधाइयाँ

नेवता- मातर हे मोर गाँव म -------------------------------

 नेवता- मातर हे मोर गाँव म

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देवारी के बिहान दिन,

मातर हे मोर गाँव  म।

नेवता  हे झारा-झारा,

उघरा राचर हे मोर गाँव म।

देवारी  के  बिहान दिन,

मातर हे  मोर  गाँव  म।


गाँव-गुढ़ी   के  मान  म।

सकलाबोन गऊठान म।

राऊत भाई मन,मातर जागही।

सिंग - दमऊ - दफड़ा बाजही।

खीर-पुड़ी  बरा-सोंहारी संग

घरो-घर चूरे,अंगाकर हे मोर गाँव म।

देवारी  के  बिहान दिन,

मातर हे  मोर  गाँव  म।


गाय-गरु संग,गाँव के गाँव नाचही।

अरे  ररे  हो कहिके,दोहा  बाँचही।

डाँड़   खेलाही , गाय - बछरू   ल,

खीर  -  पुड़ी  के ,परसाद  बाँटही।

अंगना -दुवारी कस, सबके जिया,

चातर हे मोर गाँव म।

देवारी के बिहान दिन,

मातर हे मोर गाँव  म।


घरो-घर गोबरधन,

भगवान  देख ले।

मेमरी-सिलिहारि 

संग खोंचाय हे,

धान  देख   ले।

डोली-डंगरी,गली-खोर संग,

नाचे लइका-सियान देख ले।

मया मोठ हे,

बैर पातर हे मोर गाँव म।

देवारी  के  बिहान  दिन,

मातर  हे  मोर  गाँव  म।

नेवता   हे    झारा-झारा,

घरो-घर   उघरा राचर हे,

मोर   गाँव   म---------।


जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

सरई के सिंगार- दोहा गीत

 सरई के सिंगार- दोहा गीत


सबके जिया लुभात हे, सरई के सिंगार।

रहिरहि के नचवात हे, गा गा गीत बयार।।


फूल लगे कलगी असन, ओन्हा जइसे पात।

माते फागुन मास मा, सरई हा दिन रात।।

नवा फूल अउ पान मा, गमकत हावै खार।

सबके जिया लुभात हे, सरई के सिंगार......


बने रँगोली तरु तरी, झरथे जब जब फूल।

जंगल लेवय जी चुरा, सुधबुध जाये भूल।

अमरत हवय अगास ला, मानत नइहे हार।

सबके जिया लुभात हे, सरई के सिंगार.....


सजे साल ला देख के, गूलर डुमर लजाय।

मउहा सेम्हर मौन हे, परसा जलजल जाय।

बन के जम्मो पेड़ हा, नइ पावत हें पार।

सबके जिया लुभात हे, सरई के सिंगार...


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

दोहा गीत-सम्मान

 दोहा गीत-सम्मान


बँटे रेवड़ी के असन, जघा जघा सम्मान।

आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।


देवइया भरमार हें, लेवइया भरमार।

खुश हें नाम ल देख के,सगा सहोदर यार।

नाम गाँव फोटू छपा, अपने करयँ बखान।

आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।


साहित के संसार मा, चलत हवै ये होड़।

मुँह ताके सम्मान के, लिखना पढ़ना छोड़।

कागज पाथर झोंक के, बनगे हवैं महान।

आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।


धरहा धरहा लेखनी, सरहा होगे आज।

चाटुकार के शब्द हा, पहिनत हावै ताज।

हवै पुछारी ओखरे, जेखर हें पहिचान।

आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


कतको संगी मन ये कविता ले नाराजगी जाहिर करिन,फेर नाराज होय के कोनो बात नइहे। यदि उदिम, लेखन, योगदान अउ प्रतिभा सम्मानित होवत हे ता,ये तो बने बात हे। फेर सम्मान के शान कम होवत हे,यहू तो चिंतनीय हे।


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सम्मान-हरिगीतिका छन्द


सम्मान बर सम्मान ला गिरवी धरौ जी झन कभू।

कागत धरे पाथर धरे रेंगव अकड़ जड़ बन कभू।।

माँगे मिले ता का बता वो लेखनी के शान हे।

जब बस जबे सबके जिया मा ता असल सम्मान हे।।


जूता घिंसे बूता करत तब ले कई पिछुवात हें।

ता चाँट जूता एक दल सम्मान पा अँटियात हें।।

पइसा पहुँच मा नाम पागे काम के नइहे पता।

जेहर असल हकदार हे थकहार घूमत हे बता।।


तुलसी कबीरा सूर मीरा का भला पाये हवै।

लालच जबर बन जर बड़े नव बेर मा छाये हवै।।

ये आज के सम्मान मा छोटे बड़े सब हें रमे।

नभ मा उड़त हावैं कई कोई धरा मा हें जमे।।


साहित्य साहस खेल सेवा खोज होवै या कला।

विद्वान के होवै परख मेडल फभे उँखरें गला।।

जे योग्य हें ते पाय ता सम्मान के सम्मान हे।

पइसा पहुँच बल मा मिले सम्मान ता अपमान हे।।


उपजे सुजानिक देख के सम्मान अइसन भाव ए।

अकड़े जुटा सम्मान पाती फोकटे वो ताव ए।।

सम्मान नोहे सील्ड मेडल धन रतन ईनाम ए।

बूता बताये एक हा ता एक साधे काम ए।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

नेता गिरी

 नेता गिरी


खेमा बदले के खेल जारी हे।

पद पाये बर पेलम पेल जारी हे।।


कोई आत हे ता कोई जात हे,

राजनीति के पटरी मा ये रेल जारी हे।।


मुर्गी चोर मंगलू काटत हे उमरकैद,

खूनी नेता मन के बेल जारी हे।।


वोट पाये बर बाँट देथे जनता ला,

खुद के पेंशन पइसा बर मेल जारी हे।।


सच के होगे हवय राम नाम सत,

झूठ के जघा जघा सेल जारी हे।।


पास होगे नेता पद पाके सब मा,

बिकास बाबू के फेल जारी हे।।


बाँटे बर हे बैर तोर मोर नेता तीर,

सात पीढ़ी बर धन सकेल जारी हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी म धन्यवाद ल का कहिथें, येखर जवाब

 छत्तीसगढ़ी म धन्यवाद ल का कहिथें, येखर जवाब


लावणी छंद-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


धन्यवाद कहिके बोचकना,बता हमर का रीत हरे।

देखा देखी हमू कहत हन, इही हमर का जीत हरे।


धन्यवाद कहि बाप ल बेटा, अउ कहि बाप ह बेटा ला।

धन्यवाद कहि लुका जही ता, बने कबे का नेता ला।।

सुख दुख के सब साथी आवन, इही मया अउ मीत हरे।

धन्यवाद कहिके बोचकना,बता हमर का रीत हरे।।।।।।


बखत परे मा काम आय के, करजा हा रथे उधारी।

दीन दुखी के पीरा हरथे, उँखरे होथे नित चारी।।

नेक नियत हा धन दौलत अउ, गुरतुर बानी गीत हरे।

धन्यवाद कहिके बोचकना,बता हमर का रीत हरे।।।


धन्यवाद के बिना घलो तो, पुरखा मन गुणवान रिहिन।

मदद करैया मनखे मन हा, मनखे बीच महान रिहिन।।

बात बात मा बरसत हे ते, शब्द बता सत प्रीत हरे।।

धन्यवाद कहिके बोचकना,बता हमर का रीत हरे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

सुरता मइके के-गीत

 : सुरता मइके के-गीत


सावन काँटेंव मैं गिनगिन, सुरता मा दाई वो।

कि आही तीजा लेय बर, भादो मा भाई वो।।


मइके के सुरता, नजरे नजर म झुलथे।

देखतेंव दसमत पेड़ ल, के फूल फुलथे।

मोर थारी अउ लोटा म, कोन बासी खाथे।

तुलसी चौरा म बिहना, पानी कोन चढ़ाते।

हे का चकचक ले उज्जर, कढ़ाई दाई वो--

आही तीजा------


गाय गरुवा मोर बिन, सुर्हरथे कि नही।

खेकसी कुंदरू बारी म फरथे कि नही।

कुँवा तरिया म पानी कतका भरे रहिथे।

का मोला अगोरत,परोसिन खड़े रहिथे।

कोन करथे मोर कुरिया म पढाई दाई वो---

आही तीजा------


दुरिहा दिये दाई, तैंहर अपन कोरा ले।

मइके लाही कहिके,मोला तीजा पोरा में।

जल्दी भेज न दाई बाट जोहत हँव वो।

मइके के सुरता म मैं हा रोवत हँव वो।

एकेदरी थोरे सुरता भुलाही दाई वो---

आही तीजा---


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा


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मरना हे तीजा मा


सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


लइका लोग ल धरके गय हे,मइके मोर सुवारी।

खुदे बनाये अउ खाये के, अब आ गय हे पारी।


कभू भात चिबरी हो जावै,कभू होय बड़ गिल्ला।

बर्तन भँवड़ा झाड़ू पोछा, हालत होगे ढिल्ला।

एक बेर के भात साग हा,चलथे बिहना संझा।

मिरी मसाला नून मिले नइ,मति हा जाथे कंझा।

दिखै खोर घर अँगना रदखद, रदखद हाँड़ी बारी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आ गय हे पारी।1।


सुते उठे के समय बिगड़गे,घर बड़ लागै सुन्ना।

नवा पेंट कुर्था मइलागे, पहिरँव ओन्हा जुन्ना।

कतको कन कपड़ा कुढ़वागे,मूड़ी देख पिरावै।

ताजा पानी ताजा खाना, नोहर हो गय हावै।

कान सुने बर तरसत हावै,लइकन के किलकारी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आ गय हे पारी।2।


खाय पिये बर कहिही कहिके,ताकँव मुँह साथी के।

चना चबेना मा अब कइसे,पेट भरे हाथी के।

मोर उमर बढ़ावत हावै,मइके मा वो जाके।

राखे तीजा के उपास हे,करू करेला खाके।

चारे दिन मा चितियागे हँव,चले जिया मा आरी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आ गय हे पारी।3।


छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)

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लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


तीजा पोरा


मुचुर मुचुर मन मोर करत हे, देख करत तोला जोरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


कभू अकेल्ला कहाँ रहे हँव, तोर बिना मैं महतारी।

जावन नइ दँव मैंहर तोला, देवत रह कतको गारी।

बेटी बर हे सरग बरोबर, दाई के पावन कोरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


अपन पीठ मा ममा चघाके, मोला ननिहाल घुमाही।

भाई बहिनी संग खेलहूँ, मोसी मन सब झन आही।

मया ममा दाऊ के पाहूँ, खाहूँ खाजी अउ होरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


कइसे रथे उपास तीज के, नियम धियम होथे कइसन।

सीखे पढ़े महूँ ला लगही, नारी मैं तोरे जइसन।

गिनगिन सावन मास काटहूँ, भादो के करत अगोरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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छंद त्रिभंगी- छत्तीसगढ़ी भाँखा

 https://youtu.be/4Cg8K-SM8kA?feature=shared


छंद त्रिभंगी- छत्तीसगढ़ी भाँखा


सबके मन भावय, गजब सुहावय हमर गोठ, छत्तीसगढ़ी।

झन गा बिसरावव,सब गुण गावव,करव पोठ,छत्तीसगढ़ी।

भर भर के झोली, बाँटव बोली, सबे तीर, छत्तीसगढ़ी।

कमती हे का के, देखव खाके, मीठ खीर, छत्तीसगढ़ी।

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महतारी भाँखा- दोहा गीत


दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।

मधुरस कस गुरतुर गजब, छत्तीसगढ़ी बोल।


खुशबू माटी के उड़े, बसे हवै सब रंग।

तन अउ मन ला रंग ले, रख ले हरदम संग।

हरे दवा नित खा खवा, बोल बने तैं तोल।

दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।


परेवना पँड़की रटय, बोले बछरू गाय।

गुरतुर भाँखा हा हमर, सबके मन ला भाय।

जंगल झाड़ी डोंगरी, गावय महिमा डोल।

दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।


इहिमे कवि अउ संत मन, करिन सियानी गोठ।

कहे सुने मा रोज के, भाँखा होही पोठ।।

महतारी ले कर मया, देखावा ला छोल।

दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।

 

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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छत्तीसगढ़ी बानी(लावणी छंद)- जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।

पी के नरी जुड़ा लौ सबझन, सबके मिही निशानी अँव।


महानदी के मैं लहरा अँव, गंगरेल के दहरा अँव।

मैं बन झाड़ी ऊँच डोंगरी, ठिहा ठौर के पहरा अँव।

दया मया सुख शांति खुशी बर, हरियर धरती धानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।।।।।


बनके सुवा ददरिया कर्मा, माँदर के सँग मा नाचौं।

नाचा गम्मत पंथी मा बस, द्वेष दरद दुख ला काचौं।

बरा सुँहारी फरा अँगाकर, बिही कलिंदर चानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।


फुलवा के रस चुँहकत भौंरा, मोरे सँग भिनभिन गाथे।

तीतुर मैना सुवा परेवना, बोली ला मोर सुनाथे।

परसा पीपर नीम नँचइया, मैं पुरवइया रानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।


मैं गेंड़ी के रुचरुच आवौं, लोरी सेवा जस गाना।

झाँझ मँजीरा माँदर बँसुरी, छेड़े नित मोर तराना।

रास रमायण रामधुनी अउ, मैं अक्ती अगवानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।


ग्रंथ दानलीला ला पढ़लौ, गोठ सियानी धरलौ जी।

संत गुणी कवि ज्ञानी मनके, अंतस बयना भरलौ जी।

मिही अमीर गरीब सबे के, महतारी अभिमानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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बिसराथे भाँखा बोली


मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे, बिसराथे भांखा बोली । 

बड़ई नइ करे अपन भांखा के, करथें नित ठिठोली ।।


गिल्ली भँवरा बांटी भुलाके, खेले किरकेट हॉकी । 

माटी ले दुरिहाके रातदिन, मारत रहिथें फाँकी ।। 

चिरई के पिला चिंव-चिंव करथें, कँउवा के काँव-काँव ।

गइया के बछरू हम्मा कइथें, हुँड़रा के हाँव-हाँव ।।

मंदरस कस गुत्तुर बोली बन, बरसत हवय गोली ।

मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे, बिसराथे भांखा बोली ।


हरर-हरर जिनगी भर करें, छोड़े मीत मितानी ।

देखावा ह आगी लगे हे, मारे बस फुटानी ।।

पाके माया गरब करत हे, बरोवत हवैं पिरीत ला ।

नइ जाने सत दया-मया ल, तोड़त फिरथें रीत ला।।

होटल-ढाबा लाज ह भाये, नइ झांके रंधनी खोली। 

मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे, बिसरात हे भांखा बोली।।


छत्तीसगढ़ महतारी के भला, कोवने नाम जगाही ?

हमर छोड़ के कोन भला, छत्तीसगढ़िया कहाही ?

सनहन पेज, मही बासी, अउ अंगाकर अब नइ चुरे ।

सिंगार करे बर माटी के, छत्तीसगढ़िया मन नइ जुरें ।।

तीजा-पोरा ल कइसे मनाही ? नइ जाने देवारी-होली।

मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे, बिसरात हे भांखा बोली।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


राजभाषा दिवस के सादर बधाई

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लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं

 विश्व महतारी भाषा दिवस, के पावन अवसर म


लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


 मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं


मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं।

पीके नरी जुड़ालौ सबझन,सबके मिही निसानी औं।


महानदी के मैं लहरा औं,गंगरेल के दहरा औं।

मैं बन झाड़ी ऊँच डोंगरी,ठिहा ठौर के पहरा औं।

दया मया सुख शांति खुसी बर,हरियर धरती धानी औं।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं-----।


बनके सुवा ददरिया कर्मा,मांदर के सँग मा नाचौं।

नाचा गम्मत पंथी मा बस,द्वेष दरद दुख ला बॉचौं।

बरा सुहाँरी फरा अँगाकर,बिही कलिंदर चानी औं।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं-।


मैं गेंड़ी के रुचरुच आवौं, लोरी सेवा जस गाना।

झाँझ मँजीरा माँदर बँसुरी,छेड़े नित मोर तराना।

रास रमायण रामधुनी मैं, मैं अक्ती अगवानी औं।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं-।


ग्रंथ दान लीला ला पढ़लौ,गोठ सियानी ला गढ़लौ।

संत गुनी कवि ज्ञानी मनके,अन्तस् मा बैना भरलौ।

मिही अमीर गरीब सबे के,महतारी अभिमानी औं।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं--।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा

तीजा पोरा

 लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


तीजा पोरा


मुचुर मुचुर मन मोर करत हे, देख करत तोला जोरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


कभू अकेल्ला कहाँ रहे हँव, तोर बिना मैं महतारी।

जावन नइ दँव मैंहर तोला, देवत रह कतको गारी।

बेटी बर हे सरग बरोबर, दाई के पावन कोरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


अपन पीठ मा ममा चघाके, मोला ननिहाल घुमाही।

भाई बहिनी संग खेलहूँ, मोसी मन सब झन आही।

मया ममा दाऊ के पाहूँ, खाहूँ खाजी अउ होरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


कइसे रथे उपास तीज के, नियम धियम होथे कइसन।

सीखे पढ़े महूँ ला लगही, नारी मैं तोरे जइसन।

गिनगिन सावन मास काटहूँ, भादो के करत अगोरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

लावणी छंद(गीत)

 लावणी छंद(गीत)


चलचल जोही किरिया खाबों,सेवा करबों माटी के।

साग दार फल अन्न उगाबों,मया छोड़ लोहाटी के।।


चरदिनिया सुख चटक मटक बर, छइयाँ भुइयाँ नइ छोड़न।

पर के काज गुलामी खातिर,माटी ले मुँह नइ मोड़न।।

महल बनाबों जनम भूमि मा,माटी मता मटासी के।।

साग दार अउ अन्न उगाबों,मया छोड़ लोहाटी के।।


सबके पेट भरे के खातिर, दाना पानी फल चाही।

माटी ले सबझन दुरिहाबों,कइसे कोठी भर पाही।

अगिन पेट के काय बुझाही,चना चाँट चौपाटी के।

साग दार अउ अन्न उगाबों,मया छोड़ लोहाटी के।।


जोर मोह माया ला कतको,बिरथा सब दुख के बेरा।

शहर नगर ये चटक चँदैनी, थेभा खेती बन डेरा।

बहिर कमाये बर नइ जाँवन,नत्ता रिस्ता काटी के।

साग दार अउ अन्न उगाबों,मया छोड़ लोहाटी के।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

लावणी छंद- गीत (कइसन छत्तीसगढ़)

 लावणी छंद- गीत (कइसन छत्तीसगढ़)


पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया।

अंतर्मन ला पबरित रख अउ, चाल चलन ला कर बढ़िया।


धरम करम धर जिनगी जीथें, सत के नित थामें झंडा।

खेत खार परिवार पार के, सेवा करथें बन पंडा।

मनुष मनुष ला एक मानथें, बुनें नहीं ताना बाना।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, नोहे ये नारा हाना।

छत्तीगढ़िया के परिभाषा, दानी जइसे औघड़िया।

पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया----


माटी ला महतारी कइथें, गारी कइथें चारी ला।

हाड़ टोड़ के सरग बनाथें, घर दुवार बन बारी ला।

देखावा ले दुरिहा रइथें, नइ जोरो धन बन जादा।

सिधवा मनखे बनके सबदिन, जीथें बस जिनगी सादा।

मेल मया मन माटी सँग मा, ले सेल्फी बस झन मड़िया।

पाटी पागा बपारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया----


कतको दुःख समाये रइथे, लाली लुगा किनारी मा।

महुर मेंहदी टिकली फुँदरी, लाल रचे कट आरी मा।

सुवा ददरिया करमा साल्हो, दवा दुःख पीरा के ए।

महल अटारी सब माटी ए, काया बस हीरा के ए।

सबदिन चमकन दे बस चमचम, जान बूझके झन करिया।

पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया-----


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


*छत्तीसगढ़िया(414) ल मात्रा भार मिलाय के सेती छत्तिसगढ़िया(44) पढ़े के कृपा करहू*


राज स्थापना दिवस के आप सबो ला सादर बधाई


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छत्तीसगढ़ महतारी


मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।

नरियर दूबी पान फूल धर, आरती  करौं।।


रथे लबालब धान कोटरा, महिमा तोर बड़ भारी।

जंगल झाड़ी नदिया नरवा, आये तोर चिन्हारी।।

तोर डेरउठी मा दियना बन,नित रिगबिग बरौं।।

मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।।


महानदी अरपा के पानी, अमृत सही बोहावै।

साल्हो सुवा ददरिया कर्मा, मन ला तोरे भावै।

सरइ सइगोंन बन नभ अमरौं, गोंदा सही झरौं।

मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।।


होरी हरेली तीजा पोरा, हँस हँस तैं मनवाथस।

सत सुमता के बीजहा बोथस, फरा अँगाकर खाथस।

भौंरा बांटी फुगड़ी खेलौं, जब जब जनम धरौं।

मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।।


बनभैसा के गुँजे गरजना, मैना के किलकारी।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, जानै दुनिया सारी।

तोर कृपा ले बन खरतरिहा, कोठि काठा भरौं।

मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)


राज स्थापना दिवस के आप सबो ला सादर बधाई

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गीत


..........मोर छत्तीसगढ़ महतारी..............

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लोहा धरे हे, कोइला धरे हे ,हीरा धरे  हे रे।

तभो मोर छ.ग. महतारी,जिया म,पीरा धरे हे रे।


हरियर    लुगरा  लाल  होगे।

जंगल  - झाड़ी  काल  होगे।

बैरी लुकाय हे ,पेड़ ओधा म,

निच्चट महतारी के हाल होगे।


होगे  धान   के , कटोरा   रीता।

डोली-डंगरी बेंचागे,बीता-बीता।

घर - घर  म, महाभारत माते हे,

रोवत हे देख,सबरी - सीता।

महानदी, अरपा ,पइरी  म, आंसू भरे हे रे।

मोर छ.ग. महतारी,जिया म,पीरा धरे हे रे।


बम्लाई , महामाई , का  करे?

बाल्मिकी , सृंगी,नइ अवतरे।

नइ मिले अब,धनी-धरमदास,

कोन  बीर नारायन,बन लड़े?


कोन  संत  बने , घासी  कस?

कोन राज बनाय,कासी कस?

कोन करे ,सिंगार महतारी के?

कोन सोहे , शुभ गुण  रासी  कस?

सेवा-सत्कार भूलाके,तोर-मोर म पड़े हे रे।

मोर छ.ग. महतारी,जिया म,पीरा धरे हे रे।


बर बिरवा बुचवा होगे ,सइगोन-सरई सिरात हे।

पीपर-लीम-आमा तरी मा,अब कोन ह थिरात हे?

गाँव गंवई के नांव  भर  हे, गंवागे हे सबो गुन रे।

बरा - भजिया भूलागे मनखे, भूलागे बासी-नून रे।


महतारी    के   गोरिया  अंग  म,

करिया-करिया  केरवस  जमगे।

कुंदरा उझरगे, खेत परिया परगे,

उधोग,महल ,लाज,टावर लमगे।

छेद   के   छाती   महतारी    के,

लहू   ल      घलो    डुमत    हे।

करमा  -  ददरिया  म  नइ नाचे,

मंद  -  मऊहा   म    झूमत   हे।

जतन करे बर विधाता तोला,छ.ग.म गढ़े हे रे।

मोर छ.ग. महतारी,जिया  म  पीरा  धरे हे रे।

           जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

            बालको(कोरबा)

            9981441795

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छतीसगढ़ी महतारी भाँखा(गीत)


मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे,बिसरात हे भाँखा बोली।

     बड़ई नइ करे अपन भाँखा के,करथे खुद ठिठोली।


गिल्ली भँवरा बाँटी भुलाके,खेले क्रिकेट हाँकी।

       माटी   ले दुरिहाके   संगी,मारत रइथे  फाँकी।

चिरई के पिला चींव चींव कइथे,कँउवा के काँव काँव।

    गइया के बछरू हम्मा कइथे,हुँड़ड़ा के हाँव हाँव।     

मंदरस कस गुरतुर बोली मा,मिंझरत हे अब गोली। 

  मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे,बिसरात--------।


     हटर हटर जिनगी भर करे,छोड़े मीत मितानी।

देखावा  हा  आगी  लगे हे,मारे  बड़   फुटानी।

    पाके माया गरब करत हे,बरोवत  हवे  पिरीत ला।

नइ  जाने  दया मया ला,तोड़त  हावय  रीत  ला।

   होटल ढाबा लॉज ह भाये,नइ भाये रँधनी खोली।

मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे,बिसरात--------।


सनहन पेज महिरी बासी,अउ अँगाकर नइ खाये।

    अपन मुख ले अपन भाँखा के,गुण घलो नइ गाये।       

छत्तीसगढ़ महतारी के अब,कोन ह नाँव जगाही।

   हमर छोड़ अउ कोन भला,छत्तीसगढ़िया कहाही।  

तीजा पोरा ल काय जानही,नइ जाने देवारी होली। 

   मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे,बिसरात-------।


जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


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लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


 मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं


मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं।

पीके नरी जुड़ालौ सबझन,सबके मिही निसानी औं।


महानदी के मैं लहरा औं,गंगरेल के दहरा औं।

मैं बन झाड़ी ऊँच डोंगरी,ठिहा ठौर के पहरा औं।

दया मया सुख शांति खुसी बर,हरियर धरती धानी औं।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं-----।


बनके सुवा ददरिया कर्मा,मांदर के सँग मा नाचौं।

नाचा गम्मत पंथी मा बस,द्वेष दरद दुख ला बॉचौं।

बरा सुहाँरी फरा अँगाकर,बिही कलिंदर चानी औं।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं-।


मैं गेंड़ी के रुचरुच आवौं, लोरी सेवा जस गाना।

झाँझ मँजीरा माँदर बँसुरी,छेड़े नित मोर तराना।

रास रमायण रामधुनी मैं, मैं अक्ती अगवानी औं।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं-।


ग्रंथ दान लीला ला पढ़लौ,गोठ सियानी ला गढ़लौ।

संत गुनी कवि ज्ञानी मनके,अन्तस् मा बैना भरलौ।

मिही अमीर गरीब सबे के,महतारी अभिमानी औं।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं--।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा


💐छत्तीसगढ़ी बोलव, लिखवा अउ पढ़व💐


छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस के आप सबला बहुत बहुत बधाई