सुंदरी सवैया-करसी
घर खोर गली बन बाग बियापय ब्याकुल घाम घरी जिनगानी।
जल धार झरे तन आग बरे जिनगी ह फँदाय लगे जस घानी।
गरमी हबरे करसी रब ले अब लेव बिसाय रही जुड़ पानी।
जुड़ नीर पियास बुझाय तभे हिरदे ह हितावव होवय धानी।
खैरझिटिया
पावस पावन-सवैया
पावस पावन आ बरसावन लागत हे रस धार सखा।
तरिया परिया हरिया भरगे जल लांघत हावय पार सखा।।
गरजे बदरा चमके बिजुरी जस मातय हावय रार सखा।
झिंगुरा खग दादुर मोर ह गावय लागय रोज तिहार सखा।।
पावस के बड़ पावन बूंद ल लावत हे बरसा धरके।
हाँसत हे बखरी अउ रोज नहावत हे परवा घर के।।
ताल खुशी म नाचत हे सुर छेड़त हे डबरा भरके।
मंद फुहार धरे बरसा सब जीव म आस भरे झरके।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा
https://youtu.be/j2V9_XbiozI?si=nW_f6ZdokiZwPjCg
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