Tuesday, 2 July 2024

सुंदरी सवैया-करसी

 सुंदरी सवैया-करसी


घर खोर गली बन बाग बियापय ब्याकुल घाम घरी जिनगानी।

जल धार झरे तन आग बरे जिनगी ह फँदाय लगे जस घानी।

गरमी हबरे करसी रब ले अब लेव बिसाय रही जुड़ पानी।

जुड़ नीर पियास बुझाय तभे हिरदे ह हितावव होवय धानी।


खैरझिटिया

पावस पावन-सवैया


पावस पावन आ बरसावन लागत हे रस धार सखा।

तरिया परिया हरिया भरगे जल लांघत हावय पार सखा।।

गरजे बदरा चमके बिजुरी जस मातय हावय रार सखा।

झिंगुरा खग दादुर मोर ह गावय लागय रोज तिहार सखा।।


पावस के बड़ पावन बूंद ल लावत हे बरसा धरके।

हाँसत हे बखरी अउ रोज नहावत हे परवा घर के।।

ताल खुशी म नाचत हे सुर छेड़त हे डबरा भरके।

मंद फुहार धरे बरसा सब जीव म आस भरे झरके।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा


https://youtu.be/j2V9_XbiozI?si=nW_f6ZdokiZwPjCg

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