Monday, 8 July 2024

कुंडलियाँ-भीड़

 कुंडलियाँ-भीड़ 


बाबा मन हा बाप कस, देवत हें उपदेश।

धरम करम मुक्ति कहि, होय मनुष मन पेश।

होय मनुष मन पेश, भीड़ के हिस्सा बनके।

भीड़ भाड़ ला देख, चले बाबा मन तनके।।

बिना भीड़ नइ होय, मदीना काशी काबा।

जाति धरम के नाम, सबे कोती हे बाबा।।


झंडा डंडा भीड़ बिन, मान कहाँ ले पाय।

बने बने मा हे बने, गिनहा मा हे बाय।।

गिनहा मा हे बाय, भीड़ हा भेड़ ताय जी।

सहमति साथ विरोध, सबे बर भीड़ आय जी।

मेला नेता खेल, संत राजा का पंडा।

सब ला चाही भीड़, भीड़ हे ता हे झंडा।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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