दुर्मिल सवैया(झरना)
झिरसा हरसावय झाँझ सुनावय गीत धरे झरथे झरना।
सुख के झुलना झुलते नयना मन जीत खुशी भरथे झरना।
दुधिया रँग मा रँग के इठलावत रोज बुता करथे झरना।
निकले जब सूरज हा बिहना तब जोत सही बरथे झरना।
खैरझिटिया
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