काल कस तरिया (दोहा चौपाई)
*तरिया के गत देख के, देथँव मुँह ला फार|*
*एक समय सबझन जिहाँ, लगर नहावै मार|*
*आज हाल बेहाल हे, लिख के काय बताँव।*
*जिवरा थरथर काँपथे, सुन तरिया के नाँव।*
कोन जनी काखर हे बद्दी। तरिया भीतर बड़ हे लद्दी।
सुते ढ़ोड़िहा लामा लामी। धँसे मोंगरी रुदवा बामी।।
तुलमुलाय बड़ मेंढक मछरी। काई मा रचगे हे पचरी।
घोंघा घोंघी जोक जमे हे। सुँतई भीतर जीव रमे हे।
कमल सिंघाड़ा जलकुंभी जड़। पानी उप्पर फइले हे बड़।
उरइ ओगला कुकरी काँदा। लामे हावै जइसे फाँदा।।
टूट गिरे हे बम्हरी डाला। पुरे मेकरा जेमा जाला।
सड़ सड़ मरगे थूहा फुड़हर। सांस आखरी लेय कई जर।
गाद ढेंस चीला हे भारी। नरम कई ता कुछ जस आरी।
जड़ उपजे हे कई किसम के। थकगे हावै पानी थमके।
घाट घठौंदा काँपत हावय। जघा केकड़ा नापत हावय।
तुलमुल तुलमुल करे तलबिया। उफले हे मंजन के डबिया।
भैंसा भैंसी तँउरे नइ अब। मनुष कमल बर दँउड़े नइ अब।
कोन पोखरा जरी निकाले। कोन फोकटे आफत पाले।।
किचकिच किचकिच करे केचुआ। पेट गपागप भरे केछुवा।
चले नाँव कस कीरा करिया। रदखद लागै अब्बड़ तरिया।
बतख कोकडा अउ बनकुकरी। दिखय काखरो नइ अब टुकड़ी।
चिरई चिरगुन डर मा काँपे। मनुष तको कोई नइ झाँके।
*दहरा हे लहरा नही, पानी हे जलरंग।*
*जड़ अउ जल के बीच मा, छिड़े हवै बड़ जंग।।*
*पानी के जस हाल हे, तस फँसगे हे पार।*
*कीरा काँटा काँद धर, पारत हे गोहार।।*
पार तको के हालत बद हे। काँटा काँद उगे रदखद हे।
खजुर केकड़ा चाँटा चाँटी। पार उपर पइधे हे खाँटी।।
बम्हरी बोइर अमली बिरवा। बेला मा ढँकगे हे निरवा।
हवै मोखला गुखरू काँटा। चारो कोती हे बन भाँटा।
सोये जागे आड़ा आड़ी। हवै बेसरम अब्बड़ भारी।
झुँझकुर छँइहा बर पीपर के। सुरुज देव तक भागे डरके।
हले हवा मा झूला बर के। फंदा जइसे सर सर सरके।
मटका पीपर मा झूलत हे। पासा जइसे फर ढूलत हे।
बिच्छी रेंगे डाढ़ा टाँगे। चाबे ते पानी नइ माँगे।।
घिरिया झींगुर उद बनबिल्ली। करे रात दिन चिल्लम चिल्ली।
बिखहर नागिन बिरवा नाँपे। देख नेवला थरथर काँपे।
हे दिंयार मन के घरघुँदिया। सरपट दौड़त हे छैबुँदिया।
घउदे हे बड़ निमवा बुचुवा। भिदभिद भिदभिद भागे मुसुवा।
फाँफा चिटरा मुड़ी हलाये। घर खुसरा घुघवा नरियाये।।
भूत प्रेत के लागे माड़ा। कुकुर कोलिहा चुँहके हाड़ा।
डर मा कतको मनुष मरे हे। कतको कइथे जीव परे हे।
देख जुड़ा जावै नस नाड़ी। पार उपर के झुँझकुर झाड़ी।
काल ताल मा डारे डेरा। नइ लगाय मनखे मन फेरा।
*मन्दिर तरिया पार के, हे खँडहर वीरान।*
*पानी बिन भोला घलो, होगे हे हलकान।*
*तरिया आना छोड़ दिस, जबले मनखे जात।*
*तबले खुशी मनात हे, जींव जंतु जर पात।।*
मनखे के नइ पाँव पड़त हे। जींव जंतु जर पेड़ बढ़त हे।
मछरी मेढक बड़ मोटावै। कछुवा पथरा तरी उँघावै।।
करे साँप हा सलमिल सलमिल। हांसे कमल बिहनिया ले खिल।
पेड़ पात घउदत हे भारी। पटय सबे के सब सँग तारी।
रंग रंग के फुलवा महके। चिरई चिरगुन चिंव चिंव चहके।
खड़े पेड़ सब मुड़ी नँवाके, गूँजै सरसर गीत हवा के।
तिरथ बरोबर राहय तरिया। नाहै जिहाँ गोरिया करिया।
बइला भैसा मनखे बूड़े। दया मया सब उप्पर घूरे।।
दार चुरे तरिया पानी मा। राहै शामिल जिनगानी मा।
करे सबो झन दतुन मुखारी। नाहै धोवै ओरी पारी।
घाम घरी दुबला हो जावै। बरसा पानी पी मोटावै।
लहरा गावै गुरतुर गाना। मछरी कस तँउरे बर पाना।
सुबे शाम डुबके लइका मन। तन सँग मन तक होवै पावन।
छोटे बड़े सबे झन नाहै। तरिया के सुख सब झन चाहै।
अब होगे घर मा बोरिंग नल। चौबिस घण्टा निकलत हे जल।
आगे हे अब नवा जमाना। नाहै घर मा दादा नाना।
हाँसय सब सुख सुविधा धरके। मनखे मन अब होगे घर के।
शहर लहुटगे गाँव जिहाँ के। हाल अइसने हवै तिहाँ के।।
*नेता मन जुरियाय हें, देख ताल के हाल।*
*तरिया ला सुघराय बर, फेकत हावै जाल।*
*जीव जंतु मरही गजब, कटही कतको पेड़।*
*हो जाही क्रांकीट के, घाट घठौदा मेड।।*
*सुंदरता जब बाढ़ही, मनखे करही राज।*
*जीव जंतु झूमत हवै,पेड़ पात सँग आज।*
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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