प्रवासी साहित्य व साहित्यकार
1.प्रवासी साहित्य एक परिचय---
भारतीय साहित्य असीम है। आदिकाल से आधुनिक काल तक अनेकों साहित्य रचे जा चुकें हैं, और वर्तमान में दोगुनी गति से साहित्य लेखन का कार्य जारी ही है। हिंदी साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर विमर्श पढ़ने सुनने को मिलता है, जैसे स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श, किन्नर विमर्श आदि। इसके साथ-साथ वर्तमान में प्रवासी विमर्श पर भी लगातार कार्य हो रहा है। प्रवासी साहित्य ऐसे साहित्य को कहते हैं जो भारतीय मूल के साहित्यकारों द्वारा भारत के इतर अन्य देशों में निवास करते हुए लिखे जाते हैं। कार्य की तलाश में, पढ़ाई लिखाई, व अच्छे जीवन प्रत्याशा की आस में भारतीय लोग विदेश में निवास करते आ रहें हैं, ऐसे ही लोगों के द्वारा सृजित साहित्य प्रवासी साहित्य है। विभिन्न विद्वानों के मतानुसार प्रवासी शब्द का सबसे पहला ज्ञात प्रयोग 1600 के दशक के अंत में हुआ। प्रवासी के लिए ओईडी का सबसे पहला साक्ष्य चिकित्सक और लेखक थॉमस ब्राउन के लेखन में 1682 से पहले का है। माइग्रेंट लैटिन भाषा से लिया गया शब्द है।
भारतीय जहाँ-जहाँ भी गए, अपने साथ अपनी संस्कृति, संस्कार, साहित्य और अपनी भाषा साथ में ले गए। वे जिस देश में भी रहे, वहाँ की भाषा तो उन्होंने सीख ली, किंतु अपनी मूल भाषा को वे भूले नहीं, अपितु उसे अमूल्य निधि के समान सुरक्षित रखते हुए उसके सम्मान तथा उसकी सुरक्षा के प्रति हमेशा सजग रहे। वे यह मानते रहे कि अपनी संस्कृति को बचाए रखने का मूलमंत्र अपनी भाषा की सुरक्षा तथा उसका सम्मान है। मॉरीशस के प्रतिष्ठित साहित्यकार अभिमन्यु अनत की अपनी भाषा के प्रति प्रतिबद्धता देखिये -
“छीनने नहीं दूँगा, तुम्हें लेकिन
अपनी पहचान, अपनी भाषा”
पहले ज्यादातर भारतीय फ़िजी, मॉरीशस, सूरीनाम, ट्रिनिडाड, गयाना, दक्षिण अफ़्रीका, कनाडा जैसे देशों में गए, पर आज विश्व के लगभग सभी देशों में वास कर रहें हैं, और हिंदी बोलकर, हिंदी में साहित्य लिखकर हिंदी को सम्मानित स्थान दे रहें हैं।
2.हिंदी के आलोचकों व विद्वानों का अभिमत
प्रवासी साहित्य का इतिहास बहुत ज्यादा पुराना नहीं है,लगभग आधुनिक काल से ही इसका उद्भव व विकास हुआ है, इस साहित्य के बारे में हिंदी के अनेक विचारों ने अपने मत प्रस्तुत किए हैं--
*कमलेश्वर* ने प्रवासी साहित्य पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि 'रचना अपने मानदंड खुद तय करती है इसलिए उसके मानदंड बनाए नहीं जाएंगे। उन रचनाओं के मानदंड तय होंगे।'
*मृदुला गर्ग* प्रवासी साहित्य के बारे में कहती हैं कि प्रवासी साहित्य को अलग करके देखने की बजाय उसे हिंदी की मुख्यधारा में स्थान दिया जाए।
*डॉ. रामदरश मिश्र* ने कहा है कि “प्रवासी साहित्य ने हिंदी को नई जमीन दी है और हमारे साहित्य का दायरा दलित विमर्श और स्त्री विमर्श की तरह विस्तृत किया है।”
*डॉ.शैलजा* के मतानुसार “भारत के बाहर लिखे जाने वाले साहित्य को भारतीय आलोचकों ने ‘प्रवासी साहित्य’ का नाम दिया है। पर ‘प्रवासी साहित्य’ शब्द भारत से बाहर रचे जा रहे सारे साहित्य को पूरी तरह से व्याख्यायित नहीं करता। हर देश की जीवन शैली, राजनैतिक स्थितियां, सामाजिक संदर्भ अलग-अलग होते हैं, अतः वहां का साहित्य भी अलग ही होता है। यदि हम विदेशों में रचे जा रहे हिंदी साहित्य की सही विवेचना करना चाहते हैं तो हमें इस साहित्य को देशों के आधार पर ही देखना चाहिए जैसे, ‘कनाडा का हिंदी साहित्य’, ‘अमेरीका का हिंदी साहित्य’, ‘इंग्लैंड का हिंदी साहित्य’ आदि। इसे यदि हम एक शीर्षक के अंतर्गत रखना चाहते हैं तो इसे ‘भारतीय हिंदी साहित्य’ कहना अधिक उचित होगा।
*डॉ. कमल किशोर गोयनका* के अनुसार “हिंदी के प्रवासी साहित्य का रूप-रंग उसकी चेतना और संवेदना भारत के हिंदी पाठकों के लिए नई वस्तु है, एक नए भाव बोध का साहित्य है, एक नई व्याकुलता और बेचैनी का साहित्य है जो हिंदी साहित्य को अपनी मौलिकता एवं नए साहित्य संसार से समृद्ध करना है। इस प्रवासी साहित्य की बुनियाद भारत तथा स्वदेश परदेश की द्वंद पर टिकी है तथा बार-बार हिंदू जीवन मूल्यों तथा सांस्कृतिक उपलब्धियों तथा उनके प्रति श्रेष्ठता के भाव की अभिव्यक्ति होती है।”
अमेरिका में रहने वाले प्रवासी हिंदी रचनाकार देवी *नागरानी* प्रवासी हिंदी साहित्य के महत्व को रेखांकित करते हुए लिखती हैं कि “हिंदी का जो साहित्य है विश्व में हिंदी की अंतरराष्ट्रीयता को बुलंदी के साथ स्थापित कर रहा है इस बात में कोई शंका नहीं। चाहे वह मॉरीशस का हिंदी साहित्य हो या अमेरिका का सूरीनाम हो या इंग्लैंड का। हिंदी साहित्य की हर धारा उसी में मिलकर एक राष्ट्रीय भाषा हिंदी की सरिता बनकर बहेगी तभी वह सैलाब अंतर्राष्ट्रीय धरातल पर अपना स्थान पा सकेगा। प्रवासी हिंदी साहित्य हिंदी के अंतरराष्ट्रीयकरण का सबसे सशक्त मार्ग है।”
3.प्रवासी साहित्य की विशेषता
*डॉ. कृष्ण कुमार* ने विदेशी प्रवासी साहित्य की निम्नलिखित विशेषताएं बताई है-
1. स्थानीय परिवेश एवं वातावरण का उल्लेख
2. स्थानीय सामाजिक मूल्यों एवं रिश्तो के समीकरणों की प्रस्तुति।
3. देश-विदेश के जीवन-मानव मूल्यों का चित्रण।
4. देश-विदेश परिवेश जनित भिन्नताओं का चित्रण।
5. परिवार, परिजन, प्रियजन देश विछोह की पीड़ा का चित्रण।
6. स्थानीय संस्कृति संस्कारों की झलक।
4.प्रवासी साहित्य व साहित्यकार
भारत के लगातार अनेकों कवि लेखक व चिंतक विदेशों में रहते आ रहें हैं, उनकी अंतरात्मा में बसी हिंदी, उस देश की स्थिति परिस्थिति में ढलकर साहित्य का रूप ले रही है। उनकी कलम से हिंदी के लगभग सभी विधाओं में सृजन कार्य जारी है। फिर भी कहानी, उपन्यास, यात्रा वृतांत, संस्मरण,धर्म ग्रंथ व कविता ज्यादा देखने को मिलता है। सभी प्रवासी साहित्यकारों व साहित्य का जिक्र करना सम्भव नही है, फिर भी कुछ प्रवासी साहित्यकारों का नाम व उनकी साहित्य प्रस्तुत है---
*अभिमन्यु अनत*- अभिमन्यु अनत मॉरीशस का गौरव है। भारत से बाहर मॉरीशस ही एक ऐसा देश है जहां पर हिंदी में पठन-पाठन का कार्य किया जाता है अभिमन्यु अनत मॉरीशस के एकमात्र ऐसे लेखक है जिन्होंने सर्वाधिक विधाओं पर पुस्तके लिखी है अभिमन्यु अनत मॉरीशस में उपन्यास साहित्य की सृष्टि करने वाले अकेले लेखक है इन्हें मौरीशस का प्रेमचन्द कहा जाता है। अभिमन्यु अनत ने लाल पसीना उपन्यास के माध्यम से भारतीय मजदूरों पर अंग्रेजों द्वारा किए गए क्रूर अत्याचारों का चित्रण किया है. उन्होंने अपने समाज की संस्कृति, अस्मिता के संघर्ष का जीवंत चित्रण किया है। अभिमन्यु अनत यथार्थवादी थे, लेकिन जीवन मूल्यों तथा आर्दशवाद के साथ। अभिमन्यु अनत ही सबसे पहले ऐसे प्रवासी साहित्यकार का प्रतिनिधित्व करें चे केवल मॉरीशस के सबसे अधिक सशक्त हिन्दी साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित ही नहीं हुए बल्कि भारत के लोकमानस में मॉरीशस के प्रतीक के रूप में स्वीकृत हुए।
*सुषम बेदी* - सुषम बेदी की रचनाओं में भारतीय और पश्चिमी संस्कृति के बीच झूलते दक्षिण एशियाई देशों के नागरिकों खासकर प्रवासी भारतीयों के मानसिक बंद का बखूबी उल्लेख किया है। सुषम बेदी ने अपनी लेखनी के माध्यम से वैश्विक स्तर पर प्रवासी हिन्दी साहित्य को पहचान दिलायी। हवन डॉ सुषमम बेदी का पहला उपन्यास है, जो भारतीयता तथा अमेरिकावाव के द्वंद का उपन्यास है। पंजाब का एक आर्य समाजी संस्कार बाला परिवार अमेरिका आ जाता है. यह भारतीय सरकार, मर्यादा और नैतिकता से जीवन जीना चाहता है. परन्तु अमेरिका के हवन कुण्ड में उनकी आहुती देनी पड़ती है। हवन और लौटना उपन्यास में सुषम बेदी जी ने नरलवाद जैसी गंभीर संवेदनशील समस्याओं को उठाया है।
*तजेन्द्र शर्मा*- ब्रिटेन में रहने वाले तजेन्द्र शर्मा समकालीन साहित्यकार तजेन्द्र शर्मा पूँजीवादी विचारुशरा एवं मार्क्सवादी विचारधारा को अपने साहित्य का आधार दिया है। तजेन्द्र जी अतुलनीय कथाकार है. तजेन्द्र शर्मा जी बहुमुखी प्रतिमा के धनी कथाकार, गजलकार तथा काव्य रचना भी करते हैं। तजेन्द्र जी ने अपनी कहानियों में कब्र का मुनाफा, कैंसर, हाथ से फिसलती जमीन, कोख का किराया आदि में वैवाहिक बंधन एवं बदलते समाज के साथ दाम्पत्य जीवन को मनोवैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया है। देह की कीमत कहानी में उन्होंने मानवीय संवेदना को व्यक्त किया है, जो लोग सही तरीके से विदेश नहीं जा पाते वे तरह-तरह के गैर कानूनी तरीकों के द्वारा विदेश जाना चाहते हैं. उन लोगों को समस्याओं का सामना करना पडता है। विबरी टाइट विदेशी भाषा की अज्ञानता के कारण प्रयासी भारतीयों को जो कष्ट उठाने पड़ते है इसका वर्णन मिलता है। तजेन्द्र शर्मा की कैंसर कहानी में पति-पत्नी में परस्पर प्रेम तथा समर्पण सराहनीय है। तजेन्द्र शर्मा हिंदी की वैश्विकता को लंदन में व्यापक रूप से स्थापित किया है उर्दू की रवानगी पंजाब की अस्मिता और हिंदी के सहज प्रवाह उनकी कथा उपन्यास में देखने को मिलते हैं
*स्नेह ठाकुर स्नेह* जी भारतवासियों के लिए संवेदनशील रही, भारतीय प्रवासियों को अपने साहित्य के माध्यम से धर्म के प्रति जागरूक करती रही हैं। उपनिषद दर्शन जो कि ईथोपनिषद एवं आध्यात्मिक भावनाओं पर आधारित है, भारतीय प्रवासियों के लिए एक बहुत बड़ी सौगात है। स्नेह जी वसुधा हिंदी साहित्य की पत्रिका जो कि त्रैमासिक पत्रिका है, जिसमें कविताओं गजलों और अनेक साहित्य का संकलन है, यह कनाडा एवं भारतीय प्रवासी के बीच में एक सेतू का कार्य करती है। कैनाडा की फेडरल गवर्नमेंट के मल्टीकल्चरिजम एण्ड हैरिटेज डिपार्टमेंट द्वारा 'अनमोल हास्य के क्षण पुस्तक हेतु अधिकतम अनुदान से सम्मानित किया गया। वर्ष 2003 में पुस्कार के लिए मनोनीत कवि के रूप में सम्मानित किया गया। मानद फैलोशिप रिसर्च एवं फाउंडेशन इंटरनेशनल से सम्मानित किया गया। कनाडा से विश्व भारती एवं हिन्दी चेतना (1998) से हिन्दी पत्रिकाएँ निकाली गयी, स्नेह ठाकुर का 'कनाडा में प्रवासी साहित्य के रूप में अपना स्थान है। स्नेह ठाकुर ने कनाडा में हिंदी भाषा के विकास पर एवं विस्तार में योगदान दियी। उनके द्वारा टोरंटो में सरकारी और प्राइवेट स्तर पर हिंदी का शिक्षण दिया जा रहा है। स्नेह ठाकुर ने अनेक कविताएं लिखी जिसमें जीवन-निधि अनुभूतियां, जीवन के रंग, काव्यांजलि बहुत लोकप्रिय हैं। स्नेह जी की साहित्यक रचना देश संस्कृति सम्यता मानव रोग, मानव की चिताओं और समाज एवं परिवेश में होने वाली हर घटनाओं से ओतप्रोत है। दिव्या माथुर प्रवासी लेखिकाओं में दिव्या माथुर का नाम उल्लेखनीय है, वे लगभग 15 वर्षों से इंग्लैंड में है. उन्होंने हिन्दी को अपनी सर्जनात्मकता की भाषा बनाया हुआ है। उन्होंने इंग्लैण्ड में रहकर न केवल मातृभाषा को गौरव प्रदान किया है बल्कि हिन्दी को विश्व रंगमंच पर सथापित करने में भी अपना योगदान करती है। दिव्या जी की उपन्यास शाम भर बातें कविता संग्रह रेत का लिखा बहुत ही प्रचलित काव्य संग्रह है जिसमें उन्होंने विभिन्न रूपों को अपनी काव्यात्मक दृष्टि एवं संवेदना से आत्मसात करके अपनी सर्जनात्मक कल्पना की धनीभूतता का प्रमाण दिया है।
*अर्चना पैन्यूली*- डेनमार्क में बसी अर्चना पैन्यूली एक सशक्त हिन्दी लेखिका है. इन्होंने हिन्दी और भारतीय संस्कृति के संरक्षण की दिशा में सारगर्भित शोध लेख लिखे हैं, उनकी रचनाओं में डेनमार्क के मानय जीवन और सामाजिक राजनैतिक परिवेश देखने को मिलता है। उनका उपन्यास वेयर दू आई बिलांग ठेनिश समाज पर लिखा प्रसिद्ध उपन्यास है, जिसमें उन्होंने विस्थापन, प्रवास, संस्कृति भेद, आधुनिकता और पारंपरिक जीवन मूल्यों की अपनी रथनाओं में समाहित किया है। उन्हें डेनमार्क में इंडियन कल्चरल सोसायटी द्वारा प्राइड ऑफ इंडिया सम्मान से सम्मानित किया गया, उन्हें इंडियन कल्वरल एसोसिएशन द्वारा प्रेमचंद पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनका उपन्यास पॉल की तीर्थयात्रका फेमिना सर्वे द्वारा वर्ष 2016 के सर्वश्रेष्ठ दस उपन्यासों में घोषित हुआ है। अर्चना जी प्रवासी भारतीय समाज के सामाजिक और साहित्य कार्यक्रमों की अनिवार्य अंग बनी।
*जकिया जुबेरी*- ब्रिटेन की प्रवासी हिन्दी कथाकार जकिया जुबेरी ब्रिटेन की लेबर पार्टी की सक्रिय सदस्या है एवं वे कई बार चुनाव जीत कर काउंसलर निर्वाचित हो चुकी है। जकिया जुबैरी का अनुभव संसार कई देखों में फैला है वे लखनऊ में जन्मी, आजम में पढ़ी पाकिस्तान में ब्हायी और ब्रिटेन में बसी है। उनके लेखन में यह अनुभव स्पष्ट दिखाई देता है। जकिया जी का पहला कहानी संग्रह 'सांकल' राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। जकिया जुबैरी की एक महत्वपूर्ण कहानी 'मारिया' का उल्लेख करना चाहूँगी। इस कहानी में एक पीड़ादायक सच्चाई हमारे सामने आती है कि वे अपनी जड़ों से जुड़े भारतीय है पर जहाँ रह रहे है वहाँ के जीवन मूल्यों में कहीं कहीं एकदम भिन्न है ऐसे में किसके साथ चलें यह द्वन्द हमेशा उनके सामने एक चुनौती की तरह खड़ा हो जाता है यह द्वन्द उसे दोनों परिवेश से अलग खड़ा कर देता है। ठीक उसी तरह जैसे किस गाड़ी में चढ़ा जाए यह दुविधा अगर आ जाए तो गाड़ी छूट जाती है।इसी तरह जकीया जी की कहानी मन की सांकल, मेरे हिस्से की धूप स्त्री मन की कई बंद सांकलों को खोलती है और ले जाती है। उस और जो उसके हिस्से की धूप यानी ऊर्जा से भर देती है।
*उषा प्रियंवदा*- उषा प्रियंवदा हिंदी की प्रतिष्ठित साहित्यकार है, उषा जी विवाह उपरांत अमेरिका चली गई। जहाँ उन्होंने लेखन कार्य लगातार जारी रखा। चांदी में बर्फ पर, कितना बड़ा झूठ, सागर पार का संगीत उनकी प्रमुख कहानी है।
*कादम्बरी मेहरा*- धर्मपरायण, हिजड़ा, जीटा जीत गया का, कहानी संग्रह है।
*उषा राजेश सक्सेना*-- और तुझे क्या चाहिए, जल गया उसका सर्वस्व कहानी संग्रह है।
अरुणा सभरवाल- वे चार पराठे (कहानी)
शैलजा सक्सेना- थोड़ी देर और (कहानी)
नीलम माल कानिया-पिंजरा (कहानी)
पूर्णिमा बर्मन- नमस्ते (कहानी)
महेंद्र दवसरे- लकीर (कहानी)
सुधा ओम ढींगरा-टॉरनेडो(कहानी),छितिज से परे(कहानी),कौन से जमीन अपनी कहानी की(कहानी)
जय वर्मा- सात कदम (कहानी)
रामदेव धुरंधर- पथरीला सोना (उपन्यास)
नीना पाल- तलाश(उपन्यास), कुछ गांव गांव कुछ शहर शहर(उपन्यास)
आओ न; देखो न (कविता)- राज हीरामन (मॉरीशस)
अहंकार (कविता)- अनीता वर्मा(चीन)
शायद एक चाह(कविता)- अनीता कपूर (अमेरिका)
रोशनी की इबादत (कविता)- गुलशन मधुर (अमेरिका)
सब कुछ चाहिए(कविता)- अनिल पुरोहित (कनाडा)
अपनी राह से (कविता)- पुष्पिता अवस्थी (नीदरलैंड)
खड़िया (कविता) मोहन राम(ब्रिटेन)
यह घड़ी (कविता)- सत्येंद्र श्रीवास्तव (ब्रिटेन)
जब माँ कुछ कहती मैं चुप रह सुनता( कविता)- राम तक्षक
5.आंचलिक प्रवासी साहित्य
आज आंचलिक प्रवासी साहित्य का भी बोलबाला है। जो जिस अंचल से विदेश जाते है, वो हिंदी के साथ साथ आंचलिक भाषाओं में भी सृजन कर रहे हैं। जैसे "नाचा" के माध्यम से छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक व साहित्यिक बढ़ोतरी,अमेरिका से सतत हो रही है। वैसे ही अन्य भाषाओं में भी सतत सृजन जारी है। बंगाली,भोजपुरी,कन्नड़, पंजाबी,असमी,अवधी, छत्तीसगढ़ी आदि कई भाषाओं में आंचलिक प्रवासी साहित्य उपलब्ध है। छत्तीसगढ़ के कई कवि लेखक छत्तीसगढ़ी साहित्य के बढ़वार में लगे हैं, जैसे गणेश कर (शिकागो), दीपाली सरोगी (शिकागो), पूजा महतो (कैलिफोर्निया), अमन तिवारी (वॉशिंगटन डीसी), मीनल मिश्रा(अमेरिका), विभा श्री साहू(अमेरिका) आदि।
6.उपसंहार-
वर्तमान समय में प्रवासी साहित्य में लगातार वृद्धि हो रही है। प्रवासी कवि ह्रदय काव्य को जन्म दे रही है, तो विचारक मन गद्य की अनेक विधाओं को पुष्पित पल्लवित कर रही है। फिर भी हिंदी साहित्य के बढ़वार हेतु हिंदुस्तान के सरकार को पहल करना चाहिये। आज लोग बहुतायत संख्या में विदेश में वास कर रहे हैं, और लगातार साहित्य सृजन कर रहें हैं। प्रवासी साहित्य पर कविता, कहानी, उपन्यास, गजल, नारी साहित्यकार आदि शोध का विषय भी बन गया है, जिसमें कई शोधार्थी लगातार लगे हुए हैं।
संदर्भ-
प्रवासी साहित्य एक विकास यात्रा-सुषम बेदी
प्रवासी हिंदी साहित्य की चुनौतियाँ- तजेंद्र शर्मा
हिंदी का प्रवासी साहित्य-डॉ वर्षा गुप्ता
विदेशी धरती पर भारतीय स्त्री-डॉ कविता वाचवनवी
जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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