लावणी छंद(गीत)
चलचल जोही किरिया खाबों,सेवा करबों माटी के।
साग दार फल अन्न उगाबों,मया छोड़ लोहाटी के।।
चरदिनिया सुख चटक मटक बर, छइयाँ भुइयाँ नइ छोड़न।
पर के काज गुलामी खातिर,माटी ले मुँह नइ मोड़न।।
महल बनाबों जनम भूमि मा,माटी मता मटासी के।।
साग दार अउ अन्न उगाबों,मया छोड़ लोहाटी के।।
सबके पेट भरे के खातिर, दाना पानी फल चाही।
माटी ले सबझन दुरिहाबों,कइसे कोठी भर पाही।
अगिन पेट के काय बुझाही,चना चाँट चौपाटी के।
साग दार अउ अन्न उगाबों,मया छोड़ लोहाटी के।।
जोर मोह माया ला कतको,बिरथा सब दुख के बेरा।
शहर नगर ये चटक चँदैनी, थेभा खेती बन डेरा।
बहिर कमाये बर नइ जाँवन,नत्ता रिस्ता काटी के।
साग दार अउ अन्न उगाबों,मया छोड़ लोहाटी के।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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