श्री गुरुवैः नमः
पहली गुरु दाई ददा, दूसर ज्ञान अधार।
सीख देय गुरु तीसरा, हें सबला जोहार।।
खैरझिटिया
कुंडलियाँ छंद
पहली गुरु दाई ददा, देइस जे पहिचान।
दूसर गुरु गुण ज्ञान ले, हे बनाय इंसान।
हे बनाय इंसान, हेर तन मन के काई।
बने धराइस पाथ, पाट जिनगी के खाई।
उपर चढ़ाइस रोज, खुदे गुरुवर बन चहली।
बंदौं बारम्बार, उही पद ला मैं पहली।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
जड़ चेतन जेखर ले भी मोला सीखे समझे ल मिलत हे, सब ला गुरु मान, गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर मा बारम्बार प्रणाम।।
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कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
चेला के चरचा चले, बढ़े गुरू के शान।
नता गुरू अउ शिष्य के, जग मा हवै महान।
जग मा हवै महान, गुरू के सब जस गावै।
दुःख दरद दुरिहाय, खुशी जीवन मा लावै।
सत के डहर बताय, झड़ाये झोल झमेला।
गुरू हाथ ला थाम, कमावै यस जस चेला।
जीवन मा उल्लास के, रंग गुरू भर जाय।
गुरू भक्ति सबले बड़े, देवन माथ नँवाय।
देवन माथ नँवाय, गुरू के सुमिरन करके।
अँधियारी दुरिहाय, गुरू दीया कस बरके।
गुणी गुरू के ग्यान, करे निर्मल तन अउ मन।
जौने गुरू बनाय, सुफल हे तेखर जीवन।।
डगमग डगमग पग करे, जिवरा जब घबराय।
रद्दा सबो मुँदाय तब, आशा गुरू जगाय।
आशा गुरू जगाय, उबारे जीवन नैया।
खुशी शांति के ठौर, गुरू के पावन पैया।
डर जर दुख जर जाय, बरे अन्तस मन जगमग।
गुरू कृपा जब होय, पाँव हाले नइ डगमग।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा (छग)
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सरसी छन्द - गुरू महिमा
गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।
भव सागर ले सहज तरे बर,बना गुरू पतवार।
छाँट छाँट के बने चीज ला,अंतस भीतर भेज।
उजियारा करथे जिनगी ला,बन सूरज के तेज।
जल जाथे जर जहर जिया के,लोभ मोह संताप।
भटक जानवर कस झन बइहा,नता गुरू सँग खाप।
ज्ञान आचमन कर रोजे के,पावन गंगा धार।
गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।
धीर वीर ज्ञानी अउ ध्यानी,सबो गुरू के देन।
मानै बात गुरू के हरदम,पावै यस जश तेन।
गुरू बिना ये जग मा काखर,बगरे हावै नाम।
महिनत करले कतको चाहे,बिना गुरू ना दाम।
ठाहिल हीरा असन गुरू हे,गुरू कमल कचनार।
गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।
गुरू बना जीवन मा बढ़िया,कर कारज नित हाँस।
गुरू सहारा जब तक रहही,गड़े कभू नइ फाँस।
नेंव तरी के पथरा बनके,गुरू सदा दब जाय।
यश जश बाढ़े जब चेला के,गुरू मान तब पाय।
गावै गुण सब लोक गुरू के,गुरू करै उपकार।
गुरू चरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।
खैरझिटिया
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रूपमाला छंद
गुरु बिना भव कोन तरथे,कोन करथे राज।
हाथ गुरु के सिर मा होवय,छोट तब सब ताज।
घोर अँधियारी मिटाथे,दुख ल देथे टार।
वो चरण मा मैं नँवावों,माथ बारम्बार।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़
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